पिंकी सिंघल
कहा जाता है कि हम जिन लोगों की सोहबत में रहते हैं उनके व्यक्तित्व का हमारे व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। जिन लोगों के संपर्क में हम अक्सर रहते हैं उनकी बोलचाल ,भाषा शैली हाव-भाव और आदतों का हम पर काफी गहरा असर होता है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता ।इसका कारण यह है कि मनुष्य मनुष्य के सानिध्य में रहता है और सीखने की प्रवृत्ति मनुष्य में जन्मजात होती है ,इसलिए एक दूसरे के संपर्क में आने पर हम सभी काफी कुछ सीखते हैं और दूसरों को सिखाते भी हैं,फिर चाहे वह हमारा व्यवहार हो ,हमारी आदतें हों अथवा हमारे व्यक्तित्व का अन्य कोई पहलू।
आज के हमारे इस आलेख का मुख्य बिंदु है निंदा अर्थात दूसरों की आलोचना करना, उनकी बुराई करना और सरल भाषा में कहा जाए तो किसी की अनुपस्थिति में उसकी किसी दूसरे से चुगली करना। निंदा करते वक्त हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि जिस व्यक्ति की निंदा या बुराई हम कर रहे हैं हो सकता है हमारी अनुपस्थिति में वह शख्स भी हमारी किसी अन्य के सामने निंदा करता हो। परंतु इन सब बातों को यदि हम जान भी लें तभी भी कभी कभी अपनी आदतवश हम निंदा करने की आदत को सहजता से छोड़ नहीं पाते। निंदा करने में कई लोगों को आनंद की अनुभूति होती है ।उनके अनुसार निंदा करने से एक असीम संतोष प्राप्त होता है ।निंदा रस से बढ़कर उनके लिए कोई दूसरा नहीं है ।कभी-कभी तो बिना वजह भी दूसरों की बुराई करने में उन्हें मजा आता है। किंतु निंदा करने वाले को यह बात सदैव अपने मस्तिष्क में रखनी चाहिए कि निंदा करना बेहद आसान काम है ,परंतु किसी व्यक्ति के किसी भी गुण या छोटी से छोटी विशेषता को सराहना या तारीफ करना अत्यंत कठिन कार्य। किसी की तारीफ करने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए होता है जो हर एक के पास नहीं होता है।
वास्तविक रूप में यदि सोचा जाए तो निंदा केवल और केवल वही व्यक्ति करते हैं जिनके पास आवश्यकता से अधिक फ्री समय होता है और वे अपने उसी समय को रचनात्मक कार्यों में ना लगा कर निंदा जैसे बेकार के कामों में लगाते हैं। निंदा करने वाले की सच्चाई जब दूसरों के सामने आती है तो वह परिहास का पात्र भी बनता है यह जानते हुए भी कि कभी ना कभी उसकी इस निंदा करने की विशेषता दूसरों के सामने स्पष्ट होगी, निंदक निंदा करने से बाज नहीं आते।
इस बात से हम सभी सहमत होंगे कि हम चाहे किसी की निंदा करते हो परंतु यदि कोई व्यक्ति हमारे सामने किसी अन्य व्यक्ति की निंदा करता है तो कहीं ना कहीं हमारे मन में उसके प्रति अविश्वास और अनादर की भावना घर कर लेती है। हम उस पर जल्दी से विश्वास नहीं करते और उसके व्यक्तित्व के इस निंदा करने वाले अवगुण को हम सदैव अपने मस्तिष्क में रखते हैं और उसके संपर्क में कम से कम रहना चाहते हैं।
आखिर क्या वजह है कि निंदा करने वाले लोगों से हम मन ही मन दूरी बनाना चाहते हैं इसका केवल और केवल एक यही कारण स्पष्ट होता है कि हम चाहे ऊपरी मन से समय व्यतीत करने के लिए अथवा रस लेने के लिए बेशक दूसरों की बुराई करने में समय गंवाते हैं किंतु हमारा अंतर्मन जानता है कि निंदा करना गलत है। कभी-कभी हमें मजबूरी वश निंदक लोगों के संपर्क में रहना पड़ता है किंतु ऐसे में हमें अत्यंत सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है ।हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि निंदा करने वाले की इस गलत आदत का हमारे व्यक्तित्व पर कोई दुष्प्रभाव ना पड़ने पाए।
कभी न कभी हम सभी ने किताबों में यह अवश्य पढ़ा होगा कि निंदक नियरे राखिए किंतु आज के संदर्भ में मैं स्वयं व्यक्तिगत तौर पर इस बात से कतई सरोकार नहीं रखती कि हमें निंदा करने वालों को अपने आसपास रखना चाहिए क्योंकि यदि हम आत्म विश्लेषण करने में समर्थ है तो हमें किसी निंदा करने वाले की कोई आवश्यकता नहीं ।निंदा करने वाले के सानिध्य में रहने से नकारात्मक ऊर्जा का हमारे भीतर ही संचार होता है ।स्वयं को नकारात्मक ऊर्जा से दूर रखने के लिए हमें निंदा करने वाले लोगों से दूरी बनानी चाहिए।
यहां एक बात और स्पष्ट कर देनी अति आवश्यक है कि केवल निंदा करना ही अवगुण नहीं माना जाता,अपितु निंदा सुनना भी एक बेहद शर्मनाक अवगुण है ,इससे हमें सदैव स्वयं को बचाना चाहिए। इसका कारण यह है कि यदि आप निंदा नहीं करते हैं किंतु निंदा करने वालों की बातें चुपचाप सुनते हैं तो उसे यही लगता है कि उसकी बातों में आप की सहमति भी शामिल है। यदि आप स्वयं को क्लीन चिट देना चाहते हैं और अपने भीतर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश चाहते हैं तो न तो स्वयं निंदा करें और न ही किसी निंदा करने वाले की संगति में रहें। निंदा कर कर अपना समय बर्बाद करने से बेहतर है कि हम अपने समय को रचनात्मक कार्य में लगाएं, कुछ नया और बेहतर सृजन करें।
अब बात आती है कि आखिर व्यक्ति निंदा करते क्यों हैं। इस प्रश्न के उत्तर में सभी की प्रतिक्रियाएं और जवाब अपने अपने अनुभवों के आधार पर भिन्न भिन्न हो सकते हैं। परंतु कुछ कारण जो सभी के संदर्भ में समानता रखते हैं,वे इस प्रकार हो सकते हैं : जैसे, निंदा अक्सर वही लोग करते हैं जिनके भीतर कुछ खास करने की काबिलियत नहीं होती। वे लोग भी निंदा करते हैं जिन्हें स्वयं पर विश्वास नहीं होता अर्थात उनके भीतर आत्मविश्वास की भारी कमी पाई जाती है ।दूसरों को अपने से अधिक आत्मविश्वासी देखकर उन्हें ईर्ष्या का अनुभव होता है और वह उनकी बुराई करना शुरू कर देते हैं। अपने से अधिक संपन्न लोगों की बुराई करने में भी लोगों को परम आनंद की अनुभूति होती है ।जब आप किसी के स्तर तक नहीं पहुंच पाते तो भी आप उनकी निंदा करने से नहीं चूकते और वजह बेवजह उनकी बुराई का ढोल पीटना शुरू कर देते हैं। कुछ लोग फालतू समय का सदुपयोग करने के लिए भी निंदा करते हैं क्योंकि जब उनके पास कुछ रचनात्मक करने को नहीं होता तो वे अपना सारा समय दूसरों की निंदा करने में गंवा देते हैं। ऐसा करके उन्हें चाहे कोई फायदा ना होता हो किंतु एक प्रकार के आत्म संतोष का अनुभव जरूर होता है। समाज में अपने आप से अधिक योग्य और कुशल लोगों की बुराई भी अक्सर लोग करते हैं ।दूसरों के विषय में अनाप-शनाप बोलकर ,अनर्गल बातें कर कर और झूठ सच का सहारा लेकर वह दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं परंतु यह करते हुए यह भूल जाते हैं कि संभव है कि सामने वाला उनकी निंदा करने की आदत से भली प्रकार वाकिफ हो।
कभी-कभी निंदा करने की आदत अत्यधिक घातक सिद्ध होती है क्योंकि निंदा करना कभी-कभी केवल एक पीढ़ी को ही नहीं अपितु आगे आने वाली कई पीढ़ियों को संक्रमित कर सकती है और इसके भयावह परिणाम भी उन्हें भुगतने पड़ते हैं। अपने परिवार ,अपने मित्रों ,सगे संबंधियों,दोस्तों और अपनी आगे आने वाली नव पीढ़ियों को इस लाइलाज संक्रमित बीमारी अर्थात निंदा करने की लत से बचाने के लिए हमें आज से ही अति सतर्क रहना होगा क्योंकि इस संक्रमित निंदा करने की बीमारी का इलाज नीम हकीम,वैद्य,चिकित्सक किसी के पास नहीं है ।यदि आप या हम भी इस बीमारी का शिकार हैं तो हमें आज से नहीं,अपितु अभी से ही इस ऐब को अपने व्यक्तित्व से बाहर निकाल फेंकना होगा।
अंत में यही कहा जा सकता है कि निंदा करने वाले लोगों से उचित दूरी बनाए रखें ,उनकी बातें ना सुनें और ना ही खुद को निंदा करने की आदत में संलिप्त करें ।अपने फ्री समय का सदुपयोग करें ,कुछ नया ,कुछ बेहतर, कुछ रचनात्मक करने का प्रयास करें ।अपने परिवार और मित्रों के साथ समय बिताएं और सभी के लिए अच्छा सोचें । यदि हम दूसरों के लिए अच्छा सोचेंगे तो निसंदेह दूसरे भी हमारे बारे में अच्छा सोचेंगे और फिर वह समय दूर नहीं जब निंदा करने की प्रवृत्ति लोगों के मन से धीरे धीरे खत्म होती जाएगी और हमारा समाज एक स्वस्थ समाज बन पाएगा।