नीम करौली व गोलु देवता के दरबार से

भारतीय जन संचार संस्थान में प्रोफेसर डॉ गोविंद सिंह जी की बिटिया के विवाहपरांत हलद्वानी में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित होने के बाद नैनीताल क्षेत्र में भ्रमण का अवसर मिला। सोमवार की सुबह 20 फरवरी को मोटाहल्दू, लालकुआं, हल्द्वानी में अपने मित्र के बड़े से घर से जहाँ मैंने दो दिन से डेरा डाल रखा था, वहाँ से उनकी स्कूटी से निकल पड़े कैंची धाम और घोड़ा खाल के लिए। हल्द्वानी से मात्र 50 किलोमीटर दूर कैंची धाम नैनीताल – अल्मोडा मार्ग पर नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर एवं भवाली से 9 किलोमीटर पर अवस्थित है । इस आधुनिक तीर्थ स्थल पर बाबा नीब करौली महाराज का आश्रम है । प्रत्येक वर्ष की 15 जून को यहां पर बहुत बडे मेले का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश के श्रद्धालु भाग लेते हैं । 15 जून को 1964 को बाबा नीम करोरी महाराज ने यहां हनुमानजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी । इस स्थान का नाम कैंची मोटर मार्ग के दो तीव्र मोडों के कारण रखा गया है । यहाँ बाबा के दिव्य दर्शन के उपरांत घोड़ा खाल में गोलू देवता के मंदिर के लिए प्रस्थान किया

घोड़ाखाल गोलू देवता (Goljyu Devta ) मंदिर में वैसे तो वर्ष भर भक्त पूजा पाठ के लिए आते है, लेकिन नवरात्रि में वहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं। उत्तराखंड में, इन्हे “गोलू देवता”, “गोलजू महाराज” और न्याय देवता के रूप में पूजा जाता है। घोड़ाखाल मंदिर नैनीताल जिले के भवाली ( Bhowali ) से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। “घोड़ाखाल” का शाब्दिक अर्थ है “घोड़ों के लिए पानी का तालाब”। घोड़ाखाल, एक छोटा सा गाँव एक सुंदर पहाड़ी क्षेत्र है,
स्थानीय लोगों के अनुसार, घोड़ाखाल मंदिर में “गोलजू देवता” की स्थापना का श्रेय महरागाँव की एक महिला को माना जाता है ।
घोड़ाखाल मंदिर की विशेषता यह है कि श्रद्धालु मंदिर में अपनी अपनी मन्नते कागज और पत्रों में लिखकर एक स्थान पर टांगते हैं और माना जाता है की गोल्ज्यू देवता उन मन्नतो में अपना न्याय देकर भगतो की पुकार सुनते है । और जब मन्नत पूरी होती है, तो लोग उपहार के रूप में “घंटियाँ” चढ़ाते हैं।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा और नैनीताल जिले के घोड़ाखाल मंदिर में स्थित गोलू देवता के मंदिर में एक पत्र भेजकर ही मुराद पूरी होती है।
साभारः विनोद गुप्ता जी सूचना अधिकारी दिल्ली सरकार की फेसबुक वाल से।