आतंक के सरपरस्त को मिले मुंहतोड़ जवाब

शिशिर शुक्ला

बीते दिनों एक बार पुनः जम्मू-कश्मीर की धरती आतंकवादियों के हमले के कारण हमारे वीर जवानों के रक्त से लाल हो गई। जम्मू कश्मीर के राजौरी जिले के कांडी वन क्षेत्र में आतंकवादियों द्वारा किए गए विस्फोट में सेना के पांच जवान शहीद हो गए और एक अधिकारी घायल हो गए। ऐसी घटना कोई पहली बार नहीं हुई है। अनगिनत बार मृत्यु का जीता जागता रूप लेकर खूंखार आतंकी संगठनों ने ऐसी दिल दहलाने वाली घटनाओं को अंजाम दिया है, और हमने अपने न जाने कितने वीर सपूतों को खोया है। यह सिलसिला अनवरत रूप से जारी है। गत दिनों पुंछ में हुए हमले की जांच के दौरान यह खुलासा हुआ है कि जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों तक घातक हथियार पाकिस्तान की मार्फत पहुंच रहे हैं। यद्यपि यह कोई ऐसा सच नहीं है जिसके ऊपर से पर्दा आज हटा हो, अपितु सारा विश्व इस बात से अवगत है कि पाकिस्तान आतंकवाद का पुरजोर पोषक है। भारत के साथ घात करना एवं वैश्विक शांति को भंग करने की अनवरत साजिशें करना उसकी फितरत बन चुकी है।

हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो पर आक्रामक अंदाज में वार करते हुए कहा कि बिलावल आतंकवाद उद्योग के प्रवर्तक एवं प्रवक्ता हैं। दरअसल गोवा में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में आतंकवाद मुद्दे को उठाना एवं स्वयं को आतंकवाद से पीड़ित बताना बिलावल भुट्टो ही नहीं बल्कि संपूर्ण पाकिस्तान के दोगले चरित्र एवं मानसिकता का परिचायक है। गौरतलब है कि बिलावल भुट्टो के द्वारा कश्मीर में जी-20 बैठक के आयोजन पर भी आपत्ति जताई गई थी। बिलावल को करारा जवाब देते हुए भारत के विदेश मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान से केवल और केवल पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने के मुद्दे को लेकर ही बात होगी। निसंदेह यह बात सौ फ़ीसदी सच है कि भारत स्वतंत्रता के बाद से जिस आतंकवाद की अग्नि में जल रहा है, वह अग्नि पाकिस्तान के द्वारा ही जलाई गई और निरंतर उसमें छोटी-बड़ी दहशतपूर्ण खूंखार गतिविधियों को अंजाम देते हुए आग में घी डालने का काम भी किया गया। आज यह आग इतना विकराल रूप धारण कर चुकी है कि इसके शांत होने की कोई संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती। हालांकि भारत के द्वारा पाकिस्तान की धूर्ततापूर्ण साजिशों का सदैव मुंहतोड़ जवाब दिया गया है। 1965 का युद्ध, कारगिल युद्ध, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, और भी न जाने कितनी बार भारत के द्वारा पाक की नापाक हरकतों को नाकाम किया गया है। पाकिस्तान के साथ साथ चीन को भी यह रास नहीं आ रहा कि जी-20 की बैठक जम्मू कश्मीर में आयोजित हो। ऐसा इसलिए है कि चीन और पाकिस्तान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और उस सिक्के का नाम है- भारत विरोध। पाकिस्तान एक ओर तो जम्मू कश्मीर में जमे हुए आतंकवादी संगठनों को हथियार, वित्त एवं नाना प्रकार से पोषण देता ही है, साथ ही साथ वह अपनी जमीन पर भी आतंक को निरंतर संरक्षण एवं प्रशिक्षण प्रदान करता है।

पड़ोसी के साथ शांति एवं मैत्रीपूर्ण रवैया रखना भारतवर्ष की पुरानी परंपरा व सिद्धांत है। किंतु यह एक कटु सत्य है कि चीन व पाकिस्तान जैसे पड़ोसी इस सिद्धांत के लायक कदापि नहीं हैं। शठे शाठ्यम समाचरेत को हथियार बनाकर ही इन दुष्टों से निपटा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले से निपटने में भारत को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी और इस अभियान में भारत के एक एनएसजी कमांडो को भी शहीद होना पड़ा था। अभियान खत्म होने के बाद आतंकी अजमल आमिर कसाब को जिंदा पकड़ने में सफलता मिली थी। किंतु ध्यातव्य है कि कसाब के पकड़े जाने एवं उसे फांसी के तख्ते पर लटकाए जाने के बीच वर्षों का समयान्तराल था। यह कहीं न कहीं हमारे कानून की कमजोरी ही है, जिसका फायदा आतंक के जीते जागते पर्याय कसाब जैसे उग्रवादियों को मिलता है। भारत को आतंकवाद एवं पाकिस्तान के प्रति अपने रुख को बदलना होगा। ईंट का जवाब पत्थर से देने वाली नीति को अपनाकर ही इस ज्वलंत समस्या से निजात पाई जा सकती है। महज एक बैठक में पाक को खरी-खोटी सुना देने से उसकी धूर्तता पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। उसके द्वारा भारत विरोधी हरकतें निरंतर जारी रहेंगी। आतंकवाद को खाद पानी देकर पोषित करना तथा उसे विध्वंसक रूप में तैयार हो जाने पर भारत में गिरा देना, उसके खून में शामिल हो चुका है। निश्चित रूप से भारत सरकार को आतंकवाद से निजात पाने के लिए शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाते हुए, घर में घुसकर मारने वाला तरीका अपनाना होगा, अन्यथा भारत की अखंडता एवं संप्रभुता के ऊपर खतरा सदैव मंडराता रहेगा।