दरबार साहिब पर मुसलमानों के हमले को बलराम दास टंडन ने किया था नाकाम

पूर्व राज्यपाल बलराम टंडन के बेटे संजय टंडन हैं चंडीगढ़ से भाजपा के उम्मीदवार

चंडीगढ़ : जन्म से कोई किसी का न तो मित्र होता है और न ही शत्रु, मनुष्य के व्यवहार से ही शत्रु और मित्र बनते हैं। इस उक्ति को अपने जीवन में अनुकरण करते हुए पूर्व राज्यपाल बलराम दास टंडन हिंदू, सिख भाई चारे की अद्भभुत मिसाल बने थे। बात 1946—47 की है जब हिंदू—मुस्लिम तनाव बढ़ रहा था। इन्हीं दिनों मुसलमानों ने दरबार साहिब पर आक्रमण करने की योजना बनायी। उसके लिए एक दिन निश्चित किया गया। इसकी सूचना दरबार साहिब के अधिकारियों को भी मिली। उन दिनों ऐसी किसी भी स्थिति के निदान हेतु लोग केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर देखते थे। इसलिए उन्होंने तत्काल ही संघ कार्यालय से संपर्क किया और सहायता के लिए कहा। उसी रात लगभग दो सौ स्वयंसेवकों को दरबार साहिब भेज दिया गया।

जब अधिकारियों ने पूछा कि इस कठिन कार्यक्रम का दायित्व किसे दिया जाए, तब बलराम टंडन ने सबसे पहले हाथ खड़ा करके जिम्मेवारी ली। अपनी आन की रक्षा हेतु सर कलम करवाना, आकाश भी फट जाए परंतु अन्याय के आगे न झुकना, मृत्यु एक बार ही आती है। इस प्रकार स्वयंसेवकों को ललकारते हुए टंडन जी कहने लगे, हे साथियों तुम स्वयं मृत्यु के मुंह पर अपने पांव रखकर आगे बढ़ो। यदि जिंदगी जीना चाहते हो तो मृत्यु से मत डरो, बल्कि उसे गले लगाओ। 300 कार्यकर्ताओं की टंडन जी ने ड्यूटी लगा दी, साथ ही उन्हें यह भी कहा कि जहां पर भी संघर्ष होगा, उस स्थान पर आप मुझे सबसे आगे देखोगो। तत्पश्चात उन्होंने स्वयंसेवको को बांट दिया। 200 स्वयंसेवक दरबार साहिब में रहे और लगभग 100 स्वयंसेवक को उस रास्ते पर लगा दिया, जिधर से आक्रामकों के आने की संभावना थी। जैसे ही मुस्लिम लीगी उस रास्ते से आगे बढ़े, तो बोतलों और पथराव ने ही उनका स्वागत किया। इस अनपेक्षित पथराव से वे इतने घबराए कि दरबार साहिब तक पहुंचने का उनका स्वप्न अधूरा ही रह गया।

बलराम टंडन के बेटे हैं संजय टंडन चंडीगढ़ से भाजपा उम्मीदवार। बलराम दास टंडन के प्रेरक चरित्र को लेकर उनके बेटे संजय टंडन ने एक पुस्तक का लेखन भी किया है, जिसमें उन्होंने बलराम दास टंडन के व्यक्तित्व की सरलता, कुशल राजनेता के चरित्र को कलमबद्ध किया है। आज संजय टंडन चंडीगढ़ लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हैं। संजय टंडन कहते हैं कि आज मैं जो कुछ भी हूं, पिताजी की प्रेरणा से हूं और आज मुझे जो अवसर मिला है वो मेरे पिताजी द्वारा दी गई प्रेरणा है। मुझे अगर चंडीगढ़ की जनता का सेवा का अवसर मिला है तो वह भी पिताजी की ही प्रेरणा होगी।