गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित कराने के लिए कई दशकों से प्रदेश की जनता,जन प्रतिनिधियों, साहित्यकारों और मातृभाषा प्रेमियों द्वारा अथक प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन लगता नहीं कि चालू बजट सत्र में भी राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल कराने के लिए भारत सरकार कोई विधेयक लाकर उसे पारित कराएंगी। करोड़ों राजस्थान वासियों को और कितने वर्षों तक इसके लिए इन्तजार करना पड़ेगा? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। हालांकि राजस्थान के लिए वर्तमान समय जैसा आदर्श और अनुकूल समय शायद ही फिर से लौट कर आएगा ।
वर्तमान में संसद के दोनों सदनों उपरी सदन राज्यसभा और लोकसभा के सभापति
और देश के कानून और संस्कृति मंत्री भी राजस्थान से ही हैं।
राज्यसभा के सभापति राजस्थान के शेखावाटी के लाल उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ है। इसी प्रकार लोकसभा के अध्यक्ष राज्य के हाड़ौती अंचल के देश के शिक्षा जब कोटा के ओम बिरला है जबकि देश के कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल प्रदेश के बीकाणा क्षेत्र से और केन्द्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जोधपुर, मारवाड़ से चुन कर आते है। ओम बिरला और अर्जुन राम मेघवाल दोनों अपने वर्तमान पदों पर दूसरी बार आए है। मेघवाल के पास तो लगातार संसदीय राज्य मंत्री का प्रभार भी है। शेखावत को इस बार संस्कृति मंत्रालय मिला है। इसलिए माना जा रहा है कि राजस्थान के लिए इससे अच्छा आदर्श वातावरण और कोई नहीं हो सकता है।
आज से 21 वर्षों पहले 2003 में राजस्थान विधानसभा में जब राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए पक्ष विपक्ष के सदस्यों ने सामूहिक रूप से संकल्प पत्र पारित किया था तब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला स्वयं राजस्थान विधान सभा के सदस्य और कोटा दक्षिण से विधायक थे। इसी प्रकार राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने की मांग को लेकर 2014 में नई दिल्ली के जंतर मंतर पर हुए धरना प्रदर्शन एवं आंदोलन में भी ओम बिरला,गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल,पी पी चौधरी आदि सभी भाजपा सांसदों ने राजस्थान भाषा मान्यता समिति के अध्यक्ष के.सी.मालू, राजस्थानी भाषा की इकलौती पत्रिका माणक के प्रधान संपादक पदम मेहता, राजस्थान की प्रवासी संस्थाओं और इससे जुड़े अन्य संगठनों आदि का सक्रिय सहयोग किया था। इस प्रदर्शन में प्रदेश के विभिन्न भागों से कई बसें भर कर सैकडों लोग दिल्ली पहुचें थे और जंतर मंतर पर एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। बाद में अर्जुन राम मेघवाल के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह,गृह राज्य मंत्री किरण रिजूजू और सम्बन्धित विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से भेंट कर उन्हें ज्ञापन भी दिए थे।
इसके उपरान्त अन्य प्रदेशों के नेता भी इस मांग के समर्थन में शामिल हो गए और सभी ने राजस्थानी,भोजपुरी,भोती भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित कराने के लिए सामूहिक प्रयास किए। बताया जाता है कि इन भाषाओं को संवैधानिक मान्यता के लिए संसद में विधेयक लाने संबंधी प्रस्ताव के लिए कैबिनेट नोट भी बन गया था लेकिन गृह मंत्रालय में तब तैनात राजस्थान केडर के एक सर्वोच्च अधिकारी ने यह कह कर उसे रुकवा दिया कि राजस्थान में बृज के अलावा कोई भाषा नहीं है बाकी सभी तो बोलियां है और इस प्रकार अंतिम पड़ाव तक पहुंची यह तेज मुहिम असफल हो गई।
वर्तमान में संसद का बजट और मानसून सत्र चल रहा है, हालांकि इस सत्र में हंगामे के कारण विशेष कार्य नहीं हो रहे हैं, किंतु फिर भी सरकार द्वारा कई विधेयक पारित कराए गये हैं और कई और विधेयक पारित होने वाले हैं। इस सत्र के शेष दिनों में इन विधेयकों के साथ ही राजस्थानी, भोजपुरी और भोती को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करवाने के लिए सामूहिक प्रयास किया जाता है तो यह विधेयक इसी सत्र में पारित हो सकता है। भोजपुरी मंत्रियों, सांसदों एवं भोती के सांसद केन्द्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू का भी प्रभावी साथ भी इस मुहिम को मिल सकता है, जिससे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह इसे पारित करवाने को राजी हो सकते हैं।
संसद के पिछले विभिन्न सत्रों में राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए समय-समय पर राजस्थान से निर्वाचित सांसदों द्वारा जोरदार मांग की जाती रही है, केन्द्र में भाजपानीत सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के आश्वासन के बावजूद भी वर्षों में मान्यता का यह सपना साकार नहीं हो सका है। राजस्थान की जनता ने 2019 के लोकसभा चुनाव में पुन:राज्य की सभी 25 सीटों पर (24 भाजपा एवं 1 सहयोगी दल) को भारी मतों से विजयश्री प्रदान की थी,किंतु इस बार 2023 के आम चुनाव में भाजपा को राजस्थान में 14 सीटों पर ही विजय मिली है तथा राजस्थान की जनता ने प्रतिपक्ष को 11 सीटें प्रदान कर एक प्रकार से संदेश दिया है। अभी भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिल कर राजस्थान के सभी सांसद सामूहिक प्रयास कर संसद के वर्तमान बजट सत्र में अपनी मातृभाषा राजस्थानी को मान्यता का मान दिलाते है तो करोड़ों राजस्थानियों के इस चिर प्रतीक्षित सपने को साकार कर सकते हैं।
इस मध्य एक शख्स दैनिक जलते दीप समूह और माणक राजस्थानी पत्रिका के प्रधान संपादक पदम मेहता जो कि राजस्थानी भाषा आंदोलन से शुरू से ही जुड़े हुए है, वे संसद के हर सत्र में सांसदों के नाम एक पत्र लिख तथा उनसे व्यक्तिश भेंट कर उन्हें राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने का मुद्दा याद दिलाते है। साथ ही उन्हें अपनी मातृभाषा राजस्थानी को मान्यता के लिए पूर्व में किए प्रयासों का सार-संक्षेप भी अपने पत्र के साथ संलग्न कर देते है। पदम मेहता बताते है कि बारह वर्ष पूर्व 17 मई, 2012 को तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने लोकसभा में जगदम्बिका पाल एवं डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह आदि के एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के उत्तर में स्पष्ट घोषणा की थी कि संसद के आगामी मानसून सत्र में भोजपुरी एवं राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में सम्मिलित करने संबंधी विधेयक लाया जाएगा। तत्कालीन सरकार अपने पूरे कार्यकाल में यह कार्य पूरा नहीं कर सकी। इसी प्रकार कुछ वर्ष पूर्व तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने समय-समय पर उनसे मिलने आये प्रतिनिधि मंडलों को एवं तत्कालीन गृहराज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने 18 दिसम्बर 06 को लोकसभा में एवं अन्य कई अवसरों पर संसद में स्पष्ट आश्वासन दिया था कि राजस्थानी और भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए सीताकांत महापात्र समिति की सिफारिशों के आधार पर मानदंड निर्धारित करते हुए प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। लोकसभा में दी गई इस जानकारी को भी 16 वर्ष बीत चुके हैं, किंतु विधेयक नहीं लाया गया।
पदम मेहता बताते है कि 11वीं राजस्थान विधानसभा के अंतिम दिन 25 अगस्त 2003 को सर्वसम्मति से सदन में एक संकल्प पारित कर राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूचि में सम्मिलित करने का केन्द्र से अनुरोध किया गया था। तत्कालीन केंद्र सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम सत्र में अपनी नीतियों से हटते हुए तथा राज्यसभा एवं लोकसभा में समय समय पर सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता डॉ. लक्ष्मीमल्लजी सिंघवी सहित कई सांसदों को दिये अपने आश्वासनों के बावजूद आनन-फानन में बोडो भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में सम्मिलित करने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के एजेन्डा में परिवर्तन कर वर्ष 2003 में इसके साथ ही डोगरी, मैथिली एवं संथाली को तो इसमें सम्मिलित कर लिया, किन्तु राजस्थानी के साथ भेदभाव बरतते हुए राजस्थान विधानसभा द्वारा पारित संकल्प पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि राजस्थानी भाषा हर दृष्टि से संविधान की आठवीं अनुसूचि में सम्मिलित करने के मापदंडों को पूरा करती थी और उसके बोलने वालों की संख्या इन सभी भाषाओं के बोलने वालों से कई गुणा अधिक होने के साथ ही अन्य पात्रता भी रखती थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा वर्ष 2003 के बाद में अपने दूसरे कार्यकाल में तथा भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ ही गत वर्ष पुन: मुख्यमंत्री गहलोत ने प्रधानमंत्री मोदी को उक्त प्रस्ताव के साथ पत्र लिखकर राजस्थानी को संविधानिक मान्यता देने की बार-बार मांग की थी।
मेहता बताते है कि राजस्थान विधानसभा द्वारा 25 अगस्त 2003 को सर्वसम्मति से पारित संकल्प में राजस्थान के सभी जिलों में बोली जाने वाली उपभाषाओं को (भारतीय भाषायी सर्वेक्षण एवं प्रमाणिक जनगणना आंकड़ों अनुसार) राजस्थानी में समाहित किया हुआ है। राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने से प्रदेश के हर जिले (हर संसदीय क्षेत्र सहित) की जनता को नई शिक्षा नीति के अनुरूप शिक्षा एवं रोजगार (रीट व प्रतियोगी परीक्षाओं) में सरकारी नौकरियों के लिए अन्य प्रान्तों की मातृभाषाओं के समान ही राजस्थान में भी मातृभाषा को प्राथमिकता मिल सकेगी।
वे बताते है कि राजस्थानी भाषा को देश-विदेश के भाषाविदों द्वारा एक महान देशप्रेम सिखाने वाली, विपुल शब्द भंडार युक्त, समृद्ध तथा स्वतंत्र भाषा माना है। जिसके बारे में अनगिनत अकाट्य प्रमाण केन्द्रीय गृह मंत्रालय को समय-समय पर प्रेषित किये हुए हैं। केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त 24 भाषाओं में अंग्रेजी को छोड कर राजस्थानी ही एकमात्र ऐसी भाषा रह गई है जो संविधान की आठवीं अनुुसूची में सम्मिलित होने से वंचित है। मान्यता प्राप्त 22 में से 10 भाषाओं की भांति ही राजस्थानी भाषा की लिपि भी देवनागरी है। भारत सरकार द्वारा जारी प्रमाणिक नवीनतम भाषायी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2011 की जनगणना में राजस्थानी भाषा (उपभाषाओं सहित) बोलने वालों की संख्या पूरे भारत में 5,67,62,808 है, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्तमान में सम्मिलित 22 भाषाओं में से 17 भाषाओं से अधिक एवं हिंदी सहित 5 अन्य भाषाओं से कम है। इन प्रमाणिक आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में हिंदी से दोगुना जनसंख्या राजस्थानी भाषा (विधानसभा द्वारा पारित उक्त संकल्प एवं जनगणना तथा भारतीय भाषायी सर्वेक्षण में राजस्थानी भाषा समूह में सम्मिलित उपभाषाओं सहित) मातृभाषा लिखाने वालों की है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा/स्थानीय भाषा में ही दिये जाने का प्रावधान किया हुआ है, किंतु राजस्थान में राजस्थानी को मातृभाषा की मान्यता के अभाव में अभी तक इस ओर वांछित कार्रवाई नहीं हुई है। यहां तक कि रीट-2021 एवं रीट-2022 में भी मातृभाषा राजस्थानी सम्मिलित नहीं किये जाने से उक्त राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा प्रदत्त हक से प्रदेश के बालक प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में लेनेे से वंचित हो रहे हैं।
गत 44 वर्षों से राजस्थानी भाषा में प्रकाशित एकमात्र मासिक पत्रिका माणक मातृभाषा राजस्थानी को संरक्षण, इसके प्रचार-प्रसार तथा राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करवाने के लिए कई दशकों से प्रदेश की जनता, जनप्रतिनिधियों, साहित्यकारों, मातृभाषा प्रेमियों को अवगत करा रही हैं। पदम मेहता ने प्रदेश के सभी सांसदों से आग्रह किया है कि देश-विदेश में फैले करोड़ों राजस्थानियों की पीड़ा को समझते हुए कई दशकों से लंबित उक्त मांग को पूरी करने हेतु संसद के बजट सत्र में राजस्थानी, भोजपुरी, भोती को आठवीं सूची में सम्मिलित करवाने हेतु सभी सांसदों द्वारा सामूहिक प्रयास कर इस सत्र में यह सपना साकार करवावें। इससे करोड़ों राजस्थानी इस ऐतिहासिक कार्रवाई के लिए सदैव आभारी रहेंगे।राजस्थानी भाषा देश विदेश में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती है और इसकी देवनागरी लिपि हिन्दी है । इसे आठवीं अनुसूची में शामिल करने से हिन्दी और अधिक मज़बूत होगी । नेपाल की संसद में राजस्थानी भाषा में शपथ लेने की छूट है साथ ही अन्य देशों में भी राजस्थानी की अच्छी साख है। प्रदेश की लुगाइयों (महिलाओं) और टाबरों (बच्चों) में लोकप्रिय राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने से राजभाषा हिन्दी की समृद्धि के साथ ही राजस्थान के गौरवशाली इतिहास, कला संस्कृति और साहित्य को भी मज़बूती मिलेगी।
इधर राजस्थान विधानसभा के पक्ष विपक्ष के 112 विधायकों ने अपने हस्ताक्षरों के साथ मुख्य मंत्री भजन लाल शर्मा से आग्रह किया है कि वे विधानसभा में एक विधेयक लाकर राजस्थानी को राजभाषा का दर्जा दिलाए। उनकी इस मांग को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी तथा प्रदेश के दोनों उप मुख्यमंत्रियों दियाकुमारी एवं प्रेम चंद बैरवा के साथ ही सरकार के आठ मंत्रियों का भी समर्थन बताया जा रहा है।दियाकुमारी तो बताती है कि मैं तो सांसद रहते इस सन्दर्भ में संसद में एक निजी बिल भी लाई थीं। आजादी के 75 वर्षों के बाद भी राजस्थान के 8 करोड़ लोगों को उनका हक नहीं मिलने विशेष कर गांवों में रहने वाले 5.18 करोड़ लोग जो कि राजस्थानी में ही बात करते है के मध्य भी भारी असंतोष बताया जाता हैं । उधर लक्ष्य राज सिंह मेवाड़ ने कहा है कि मुझे मेवाड़ का होने का गर्व है तथा मैं भी राजस्थानी भाषा की मान्यता का पक्षधर हूं। देखना है अब केंद्र सरकार राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने और राजस्थान सरकार इसे राजभाषा का दर्जा देने की गंभीर मांग पर कब और क्या कार्यवाही करती है?