सीता राम शर्मा ” चेतन “
सपनों पर किसी का एकाधिकार नहीं । दुनिया का हर व्यक्ति सपने देखता है । कोई अच्छे और अच्छाई के तो कोई बुरे और बुराई के । कोई आत्म केंद्रित और स्वार्थी हो तो कोई अपने घर-समाज और सारे संसार की भलाई के सपने । कई बार कोई एक ही व्यक्ति कभी अच्छे सपने देखता है तो कभी बुरे भी, पर ऐसी स्थिति में वह करता वही है, जिससे ज्यादा प्रभावित होता है । मनुष्य जाति के सपनों का परिणाम और यथार्थ देखना समझना हो तो हम अपने मानवीय संसार के अतीत, वर्तमान और भविष्य का गंभीर अध्ययन, चिंतन कर समझ सकते हैं । एक बहुप्रचलित कहावत है कि मनुष्य वही बनता है जैसा वह सोचता है । अर्थात अतीत, वर्तमान और भविष्य की सारी अच्छाईयों और बुराईयों, अच्छी और बुरी स्थितियों – परिस्थितियों का मूल कारण उस दौरान जी रहे अधिकांश लोगों के सपने होते हैं । ये सपने उनकी सोच से बनते या बनाए जाते हैं और फिर उनके प्रभाव से उत्पन्न कर्म से सत्कर्म या कुकर्म में तब्दील होते हैं । उन सत्कर्मों और कुकर्मों के पीछे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शक्तिशाली पहलू होता है उस दौरान की मनुष्य जाति के द्वारा देखे और दिखाए जाने वाले सपने । उनमें गढ़े जाने वाले सपने । स्पष्ट कर दूं कि दिखाए जाने वाले और गढ़े जाने वाले सपनों का आशय यह है कि कई बड़े सदगुणी, प्रभावशाली, महान या फिर ताकतवर षड्यंत्रकारी लोग अपने अच्छे और बुरे सपनों का विस्तार कई लोगों में बहुत सुनियोजित तरीके से आसानी से कर देते हैं । अपने अच्छे सपनों के बुते ये लोग एक तरफ जहां सभ्य, विकसित मानवीय समूह या देश समाज का निर्माण करते है तो दूसरी तरफ बुरे सपनों के बूते घोर अमानवीय हिंसक और आतंकवादी समूहों को गढ़ने में भी क़ामयाब हो जाते हैं । अतः यदि हमें एक अच्छे सभ्य, सद्गुणी, शांतिपूर्ण, सुरक्षित, देश समाज या मानवीय संसार का निर्माण करना है तो सबसे पहले एक ऐसे सुंदर संसार के गुण और उसकी विशेषता, उपयोगिता को बताते समझाते हुए अपनी दुनिया के अधिकांश लोगो को उसके सपने दिखाने होंगे, जैसा हम अपने मानवीय संसार को बनाना चाहते हैं । उन सपनों को उनकी खुली आँखों में, उनके मन-मस्तिष्क में गढ़ने होंगे । यदि हम ऐसे सुंदर सपनों को हर मानव के मन-मस्तिष्क में गढ़ने में सफल हुए तो निःसंदेह हम भविष्य के एक सभ्य, संस्कारी, सुंदर, शांतिपूर्ण और सुरक्षित मानवीय संसार को बनाने में भी अवश्य सफल होंगे । मुझे लगता है कि दुनिया के अधिकांश लोग स्वाभाविक रूप से या चिंतित अवस्था में ऐसे सपने कभी ना कभी देखते जरूर हैं । देखने का प्रयास करते हैं, पर उसे पूरा देखने, देखते रहने और फिर उसे फलीभूत करने का प्रयास बिल्कुल नहीं करते, क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि वर्तमान परिस्थितियों में वे ऐसा कर पाएंगे, ऐसा संभव है, जबकि सच यह है कि मनुष्य जाति के लिए इस संसार में ऐसा करना कतई असंभव नहीं है । कम से कम यह तो कदापि असंभव नहीं है कि वह खुद के लिए, अपनी अगली पीढ़ियों के लिए, अपने मानव समाज और मानवीय दुनिया के लिए एक घृणा और हिंसा से मुक्त, आदर्श, प्रेमपूर्ण, सभ्य, सुंदर, सुरक्षित और समृद्ध जीवन शैली के नियम सिद्धांतों, नीतियों और फिर उसके अनुसार ही कर्मों से परिपूर्ण मानवीय दुनिया का निर्माण कर पाए । अपने लिए एक आदर्श और कठोर वैश्विक मानवीय संविधान बना पाए । यहां कठोर संविधान का तात्पर्य स्पष्ट कर दूं, यह सर्वविदित और सर्वमान्य सत्य है कि बिना अनुशासन के ना आत्मिक विकास संभव है और ना सामाजिक, राष्ट्रीय और सांसारिक ही । चंचलता मानवीय स्वभाव है । उसे बुराईयाँ अच्छाईयों से ज्यादा और शीघ्र प्रभावित करती है, इसलिए अनुशासन हेतु कठोरता अनिवार्य है । अनुशासन और कठोरता की इस अनिवार्य शर्त के साथ एक शांतिपूर्ण, सुरक्षित और समग्र विकास वाला वैश्विक मानवीय संविधान वर्तमान समय की विषम वैश्विक परिस्थितियों में थोड़ा कठिन अवश्य है, पर असंभव तो कदापि नहीं । आइए, आज इस पर थोड़ा सोचें और फिर इस सोच को निरंतरता देने, विस्तार देने का हर संभव प्रयास करें । करते रहें- – –
वर्तमान समय में जब मैं मेरे सपनों की दुनिया या सच कहूँ तो मेरे जैसे बेहद शांति पसंद, प्रेमपूर्ण जीवन जीने और वसुधैव कुटुम्बकम की व्यवहारिक धरातल पर एक शांत और भव्य संसार की कल्पना करने वाले दुनिया के करोड़ों लोगों के समानांतर सपनों की दुनिया की बात कर रहा हूँ तब पूरी दुनिया के लोगों की चिंता का सबसे बड़ा कारण कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों के साथ रूस और युक्रेन के बीच चल रहा युद्ध है । कई अन्य देशों के बीच भी युद्ध की प्रबल संभावनाए बनी हुई है तो कई देश आतंकवाद से बुरी तरह पीड़ित हैं । वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में तेजी से पनपते आपसी वैमनस्य, युद्धोनमाद और स्वार्थों के परिणामस्वरूप जिस अनियंत्रित अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और कटुता का विस्तार हो रहा है वह अत्यंत अमानवीय और विनाशकारी ही सिद्ध होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है । होना भी नहीं चाहिए । विज्ञान के विनाशकारी हथियारों के विकास का दंभ भरती दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के दहलीज पर खड़ी है, जिसे लांघने की धमकियाँ आए दिन करोड़ों मानवीय हृदय को आतंकित कर रही हैं । परमाणु युद्ध की आशंकाओं ने पूरी दुनिया को चिंतित और भयभीत कर रखा है । यदि समय रहते मानवीय जीवन और दुनिया की स्थाई शांति, सुरक्षा और खुशहाली के लिए हम किसी विशेष उत्कृष्ट वैश्विक मानवीय व्यवस्था वाले वैश्विक संविधान के तहत कुछ जरूरी अंतरराष्ट्रीय नियम कानून बनाने के साथ उसे सफलतापूर्वक व्यवहार में लाने की बाध्यता वाली व्यवस्था नहीं बना पाए तो यह निःसंदेह हमारी दुनिया के लिए एक बड़ी और अत्यंत विनाशकारी भूल सिद्ध होगी । दुनिया के कुछ शक्तिशाली, निरंकुश, षड्यंत्रकारी और हिंसक शासक और संगठन अपनी स्वार्थ सिद्धि, शत्रुता और अंध महत्वाकांक्षाओं के लिए कभी भी पूरी मनुष्य जाति के लिए एक महाविनाशकारी कृत्य को अंजाम दे सकते हैं, जिससे हमें बचने की जरूरत है । कैसे आनेवाले उस महाविनाश से बचा जाए ? कैसे शत-प्रतिशत होने वाले मनुष्य जाति के उस भीषण रक्तपात की निश्चितता को संभावना के स्तर पर भी शुन्य में बदल दिया जाए ? आखिर इसके लिए क्या-क्या और किस-किस स्तर पर कैसे सफलतापूर्वक चिंतन, मंथन, प्रयास और शत-प्रतिशत सफलतम कार्य हो ? इन प्रश्नों पर दुनियाभर के लोगों, विद्वानों, धर्मगुरूओं और राजनीतिज्ञों को तत्काल अपनी-अपनी समझ और क्षमता के अनुसार सोचना, समझना, लिखना, कहना और फिर कुछ ठोस करने का प्रयास प्रारंभ कर देना चाहिए । ऐसा हो और हम अपने दुनियाभर के लोगों में आपसी प्रेम, करूणा, दया, परोपकार और क्षमा का भाव कर्म विकसित कर पाएं, यही है मेरे सपनों की दुनिया ! मेरे सपनों की शांतिपूर्ण, सुरक्षित, प्रेमपूर्ण, विकसित मानवीय दुनिया का मूल आधार है एक वैश्विक मानवीय संविधान की रचना और उसकी वैश्विक स्वीकार्यता !