आरटीआई कार्यान्वयन के 17 साल पूरे : देश भर में सूचना तंत्र निष्क्रिय,लाखाें मामले लंबित,जवाब देने वाला कोई नहीं

संदीप ठाकुर

देश में तीन लाख से अधिक मामलों की सुनवाई का लंबित होना यह साबित करने
के लिए काफी है कि सूचना के आदान प्रदान काे लेकर सरकार व प्रशासन किस
तरह ढ़ीला है। लंबित मामलों का ढेर यह भी बताता है कि संबंधित विभाग व
जिम्मेदार अधिकारी भी किस तरह सूचना के अधिकार कानून को ठेंगे पर रखने
लगे हैं। सूचना का अधिकार कानून लागू करते समय माना गया था कि इससे
प्रशासनिक व्यवस्था पारदर्शी होगी। लेकिन जब व्यवस्था ही लचर है तो आमजन
काे सूचना कौन देगा। यह तो स्पष्ट है कि सूचना के अधिकार कानून के तहत
जानकारी मांगने सामान्य व्यक्ति तभी जाता है, जब उसे हर तरफ से दुत्कार
दिया जाता है। लेकिन अब उसे सूचना देने वाले विभाग से भी न सिर्फ
जानकारियां घुमा-फिराकर दी जाने लगीं हैं बल्कि सूचना के अधिकार कानून की
कई धाराओं और उप धाराओं का हवाला देकर सूचना मांगने वाले को हतोत्साहित
करने का सिलसिला भी चल पड़ा है। इतना ही नहीं संबंधित विभाग से व्यक्ति
काे संदर्भहीन जानकारियां देकर टरका दिए जाने या उसे गुमराह करने के
मामले भी सामने आने लगे हैं। जवाब के इंतजार में सूचना आयोग में लंबित
मामलों में ज्यादातर मामले ऐसे ही हैं।

12 अक्टूबर, 2022 यानी आज आरटीआई कार्यान्वयन के 17 साल पूरे हाे गए।
सतर्क नागरिक संगठन की ओर से मांगी गई जानकारी के मुताबिक देश के 26
सूचना आयोगों में 30 जून, 2022 को लंबित अपीलों और शिकायतों की संख्या
3,14,323 थी। 2019 के आकलन में पाया गया था कि 31 मार्च, 2019 तक 26
सूचना आयोगों में कुल 2,18,347 अपील / शिकायतें लंबित थीं । देश में 2
सूचना आयोग झारखंड और त्रिपुरा पूरी तरह से निष्क्रिय हैं क्योंकि सूचना
आयुक्त के पद रिक्त होने के बावजूद किसी भी नए आयुक्त की नियुक्ति नहीं
हुई है । 4 आयोग वर्तमान में बिना मुख्य सूचना आयुक्त के काम कर रहे हैं-
मणिपुर, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के आयोग। 25 सूचना
आयोगों द्वारा 1 जुलाई, 2021 और 30 जून, 2022 के बीच 2,12,443 अपीलें और
शिकायतें दर्ज की गईं। इसी अवधि के दौरान, 27 आयोगों द्वारा 2,27,950
मामलों का निपटारा किया गया।

सूचना आयोग में अपील पर जैसी फौरी कार्रवाई होनी चाहिए, वैसी नहीं हो
रही। सतर्क नागरिक संगठन के मुताबिक, एक अगस्त, 2020 से 30 जून 2021, तक
देश के 25 सूचना आयोग के सामने 1,56,309 मामले दायर हुए, जबकि 27 आयोग ने
इसी दौरान 1,35,979 मामले निपटाए। निपटाने की इस प्रक्रिया में जानकारों
ने देखा है कि सूचना के अधिकार कानून की धारा 20 के तहत जिन मामलों में
सूचना अधिकारी पर अर्थदंड लगना चाहिए, उन्हें भी छोड़ दिया गया है। औसत
मासिक निपटान दर और कमीशन में लंबित मामलों का उपयोग करते हुए,
अपील/शिकायत के निपटारे में लगने वाले समय की गणना के परिणाम तो बेहद
चौंकाने वाले निकले। आकलन से पता चला कि पश्चिम बंगाल सूचना आयोग को एक
मामले को निपटाने में अनुमानित 24 साल और 3 महीने लगेंगे। 1 जुलाई 2022
को दर्ज मामले का निस्तारण वर्तमान मासिक दर पर वर्ष 2046 में होगा!
ओडिशा और महाराष्ट्र आयोगों में, निपटान के लिए अनुमानित समय 5 वर्ष से
अधिक और बिहार में 2 वर्ष से अधिक है। आकलन से पता चलता है कि 12 आयोगों
को किसी मामले को निपटाने में 1 साल या उससे अधिक समय लगेगा।