2023 : राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों और अवसरों का वर्ष

सीता राम शर्मा ” चेतन “

नववर्ष मंगलमय हो ! नववर्ष की हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनाएँ ! आज जब पूरा विश्व नववर्ष की ऐसी मंगल कामनाओं, शुभकामनाओं का आदान प्रदान कर रहा है तब चाहे-अनचाहे बहुतायत लोगों के मन-मस्तिष्क में आपसी मानवीय वैमनस्यता और हिंसा के साथ वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में व्याप्त आतंकवाद और आंतरिक तथा बाह्य युद्धों को लेकर अज्ञात भय भी व्याप्त है । देश-विदेश के कई शासक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और बुद्धिजीवी रूस युक्रेन युद्ध को लेकर निरंतर विचार मंथन और विमर्श कर रहे हैं तो दूसरी तरफ दुनिया के कई देश एक बार फिर कोरोना महामारी की वापसी और वापसी की आशंका से भय की स्थिति में हैं । नववर्ष 2023 को लेकर यदि भारत की बात करें तो वर्ष के प्रारंभ में एक तरफ जहां कोरोना संकट की आशंकाओं से देश आंशिकत है वहीं दूसरी तरफ कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की चर्चा और चिंतन से कड़ाके की ठंड में भी अंदरुनी तौर पर राजनीतिक तापमान का बढ़ना प्रारंभ हो चुका है । मौसम चाहे जितना और जैसे बदले पर इस पूरे वर्ष में राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की गर्मी निरंतर बढ़ती ही जाएगी इसमें किसी भी तरह के संदेह की कोई गुंजाइश ना के बराबर रहेगी । भ्रष्टाचार के विरुद्ध 2022 की दूसरी छमाही से जारी तेज कार्रवाई का सिलसिला 2023 में भी ना सिर्फ अनवरत जारी रहने की प्रबल संभावना है बल्कि उम्मीद तो यही है कि इन कार्रवाईयों के कुछ बड़े, कठोर परिणाम भी इस वर्ष भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को बहुत गहराई से प्रभावित करने वाले सिद्ध होंगे । कोई आश्चर्य नहीं होगा, जब जनता कुछ बड़े राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं को इस वर्ष जेल जाते और उनकी राजनीतिक यात्रा को उनकी घोर विवशता में समाप्त होते देखेगी । केंद्र सरकार की बात करें तो इस वर्ष राष्ट्र और जनहित में कुछ कठोर और बड़े संवैधानिक नीतिगत फैसले लिए जाने की भी प्रबल संभावना है ।

गौरतलब है कि बड़ी और अत्यंत प्रभावशाली चुनावी सरगर्मी के वर्तमान कालखंड में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में कुछ बड़े राजनीतिक षड्यंत्र रचे जाने और राष्ट्रीय तथा राज्य स्तरीय अराजकता फैलाने के प्रयास भी किए जा सकते हैं । गौरतलब है कि वर्तमान समय में तेजी से बदलते राष्ट्रीय राजनीतिक हालात और बढ़ते अतंरराष्ट्रीय रुतबे से ना सिर्फ देश के कुछ राजनीतिक दल अपने अस्तित्व को बचाने की अंतिम लड़ाई लड़ते परेशान हुए कुछ भी करने को तैयार हैं वहीं इनकी इस स्थिति का लाभ लेने के लिए बहुत संभावित है कि कुछ शत्रु देश भी इनका फायदा उठाएं, जैसा लाभ पाकिस्तान कश्मीर में बहुत पहले से उठाता रहा है । इसको लेकर राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार, खुफिया तंत्र और सभी जांच एजेंसियों को सतर्क और ज्यादा सक्रिय बने रहने की जरूरत है । यहां राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रहित के लिए एक बात बहुत जरूरी तौर पर कहना चाहूंगा कि भारत को अब पूरी प्राथमिकता के साथ देश भर में एक बेहद मजबूत, सक्षम और सक्रिय खुफिया तंत्र विकसित करने की जरूरत है, क्योंकि यह सर्वाधिक चिंतनीय सत्य है कि तेजी से बदलते और बढ़ते भारत को रोकने के लिए कई शत्रु राष्ट्र, जिसमें स्वाभाविक और पुराने शत्रु राष्ट्र के साथ मित्रता के वेश में नये गुप्त शत्रु राष्ट्र भी हो सकते हैं, भारत को निकट भविष्य में कमजोर और अव्यवस्थित, बाधित करने का हर संभव प्रयास कर सकते हैं, जिसमें वे हमारे देश की तमाम गलत, परेशान और षड्यंत्रकारी ताकतों का उपयोग करने का भी भरपूर प्रयास करेंगे । यह सर्वमान्य सत्य है कि अतंरराष्ट्रीय बड़ी और शक्तिशाली ताकतें ना सिर्फ आपसी प्रतिस्पर्धा करती है बल्कि नए प्रतिस्पर्धी के उदय की स्थिति में कई बार आपसी प्रतिस्पर्धा को भूल कर एकजुटता के साथ उसके अभ्युदय को रोकने में भी लग जाती है और यह अब प्रत्यक्ष तौर पर कम ही होता है । ऐसी ताकतें अकसर प्रतिस्पर्धी की अंदरुणी कमजोरियों को तलाशती और उसका सदुपयोग करती है, जो वर्तमान भारतीय स्थिति में कौन सी है या हो सकती है, बहुत स्पष्ट है । इसलिए जरुरी है कि अब भारत समय रहते एक बेेहद सशक्त खुफिया तंत्र का निर्माण कर ले । यहां एक बात बहुत स्पष्टता के साथ समझने की जरूरत है कि वर्तमान समय में भारतीय केंद्रीय सत्ता से जितने ज्यादा भारतीय राजनीतिक विपक्षी दल परेशान हैं उससे कहीं ज्यादा परेशान कुछ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शत्रु राष्ट्र भी हैं, जो 2024 में मोदी सरकार की पुनर्वापसी कतई नहीं चाहेंगे । हालांकि भारतीय जनता अब इतनी जागरूक हो चुकी है कि वह बहुत सरलता से किसी भी देशी-विदेशी षड्यंत्र का शिकार नहीं हो सकती बावजूद इसके सरकार को चौकन्ना और सक्रिय रहना जरुरी है क्योंकि सशक्त खुफिया तंत्र की जरूरत संभावित बहुतायत षड्यंत्रों के लिए अब बहुत जरुरी है ।

2023 प्रमुख वैश्विक संगठन जी 20 की भारतीय अध्यक्षता का भी वर्ष है । जिसके तहत देश भर में कई बैठकों का आयोजन होना है । इन आयोजनों की सुरक्षात्मक, व्यवसायिक और कूटनीतिक सफलता के लिए भारत को कई स्तर पर वृहद तैयारी करनी है । मुझे लगता है इन बैठकों के अधिकांश स्थान का चयन अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों में हो और वो भी राज्यों की राजधानी से दूर सीमाओं के सन्निकट क्षेत्रों में, तो बेहतर होगा । यहां सीमावर्ती क्षेत्रों को लेकर एक बहुत जरुरी बात यह कि बेहतर होगा कि मोदी सरकार अपने स्मार्ट सिटि के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत इसी दौरान कुछ स्मार्ट सिटि का निर्माण भी उन सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रारंभ करे । स्मार्ट सिटि के साथ उन इलाकों में कुछ क्षेत्रों को पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित करने की एक योजना बना कर उसकी शुरुआत इसी वर्ष हो, तो वह कूटनीतिक और सामरिक दृष्टि से बेहतर सिद्ध होगी ।

2023 में यदि संभावित अतंरराष्ट्रीय स्थिति-परिस्थिति की बात करें तो सबसे पहले ध्यान रुस युक्रेन युद्ध पर जाता है, जिसे अप्रत्यक्ष रूप से रुस युक्रेन युद्ध ना कहकर अमेरिका रुस युद्ध भी कहा जा सकता है । अमेरिकी कूटनीति और उकसावे से प्रारंभ हुए जारी इस युद्ध का खात्मा तब तक नहीं होगा, जब तक अमेरिका सच्चे मायने में इसे खत्म करना नहीं चाहेगा या फिर इस बात की समझ युक्रेन के नासमझ राष्ट्रपति की समझ में नहीं आएगी । यह स्वाभाविक और स्पष्ट सत्य है कि युक्रेन अमेरिका, ईयू या नाटो के पूर्ण समर्थन के बाद भी रूस से बहुत आसानी से जीत नहीं पाएगा और अमेरिका, ईयू और नाटो का पूर्ण खुुला समर्थन पाना उसके लिए बेहद मुश्किल है क्योंकि ऐसा होने का मतलब होगा तृतीय विश्वयुद्ध, जिसकी कल्पना वर्तमान परिस्थितियों में अमेरिका भी नहीं कर सकता । तब सवाल यह उठता है कि जैसी दुनियाभर में चर्चा है कि इस युद्ध को समाप्त करने की क्षमता भारत और भारतीय प्रधानमंत्री में है ? क्या ऐसा संभव है ? और क्या अमेरिका सचमुच ऐसा चाहता है ? होने देगा ? प्रथम दृष्टया इसका जवाब ना ही है पर ऐसा संभव हो सकता है । इसके लिए मोदी को युक्रेन और रुस के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति को भी इसके दूरगामी नतीजों और नुकसान को समझाना होगा । बेहतर होगा कि वे फ्रांस, जापान, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों के माध्यम से भी युक्रेन और अमेरिका को समझाने का प्रयास करें । क्या मोदी को ऐसा करना चाहिए और हां, तो कब करना चाहिए, यह देशहित को ध्यान में रखते हुए मोदी को समझने की जरूरत है । रुस युक्रेन युद्ध से अलग भी कई ऐसी समस्याएं हैं जो 2023 में नई और बड़ी वैश्विक मुश्किलें पैदा कर सकती हैं । इस दृष्टिकोण से देखें समझें तो पाकिस्तानी आतंकवाद, चीनी साम्राज्यवाद, उत्तर कोरिया – दक्षिण कोरिया विवाद, इजराइल सीरिया टकराव के साथ गर्त में जाती अमेरिकन प्रतिष्ठा और रुतबे को उबारने के लिए नई अमेरिकन कूटनीति का संकट भी 2023 में नए रुप और तेवर में सामने आ सकता है । वैश्विक व्यवस्था को संकटग्रस्त कर सकता है । कुल मिलाकर कहें, समझें या वर्तमान राष्ट्रीय अतंरराष्ट्रीय परिस्थितियों के हिसाब से अनुमान लगाएं तो 2023 का वर्ष भारत के लिए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने का भी है और उसमें अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करने के सुनहरे अवसर का भी । भारतीय दृष्टिकोण से सबसे अच्छी बात यह है कि इन तमाम बातों और सच कहें तो इनसे कहीं आगे तक की सोचने समझने की योग्यता और क्षमता अभी केंद्र सरकार और केंद्रीय नेतृत्व के पास है । जरूरत है तो उसे बहुत सरल, सुनियोजित और प्रभावी तरीके से अमल में लाने की । हर सच्चे भारतीय की ऐसी ही शुभकामनाएं भी है ।