प्रो. नीलम महाजन सिंह
मेरे पिछले लेख में मैंने अध्ययन किया था कि मध्य प्रदेश व राजस्थान में भाजपा की सरकारें बनेंगीं। अनेक चुनावी विश्लेषक फेल हो गए। 5 राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी के सामने लोकसभा चुनाव को लेकर क्या चुनौतियां होंगी? मेरा मध्य प्रदेश का विश्लेषण शत प्रतिशत सही निकला। ’78 वर्षीय कॉंग्रेस के युवा नेता, दिग्विजय सिंह’ को; साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से, भोपाल में ही 3,64,822 वोटों की शर्मसार हार, कौंग्रेस कार्यकर्ता; सरला मिश्रा की भयानक आग में रहस्यमयी मौत, पत्नी आशा सिंह की कैंसर से अंतिम दिनों में; अमृता राय के साथ व्यक्तिगत तस्वीरों का सोशल मीडिया व ज़ी न्यूज पर प्रसारण, जिससे पूर्व मुख्य मंत्री उमा भारती के ब्यान, “डिग्गी भैय्या, भाभी की चिता तो ठंडी हो जाने देते” व अमृता राय के ट्वीट, मध्य प्रदेश की जनता कभी भूल नहीं पाएगी। कॉंग्रेस पार्टी को दिग्विजय सिंह को विधान सभा 2023 के चुनावों से परे रखना चाहिए था। पर सोनिया गांधी के चहते ने पहले ‘कमल’ नाथ को, ज्योतिरादित्य सिंधिया को आहात कर, मुख्यमंत्री पद से दरकिनार किया व अपने बेटे जयवर्धन सिंह (जे.वी.) को उप-मुख्यमंत्री बनवा कर कांग्रेस में सालों से कार्यरत नेताओं को नाराज़ किया। दिग्विजय सिंह के पुत्र जय वर्धन सिंह ने अपने ‘राजघराने – राघोगड़’ से जीत प्राप्त की है। बात वंशवाद की भी तो है, जो कांग्रेस की नींव है? उधर 69 वर्षीय लक्ष्मण सिंह, दिग्विजय सिंह के छोटे भ्राता, चाचौड़ा से बीजेपी कैंडिडेट प्रियंका मीना से बुरी तरह पराजित हो गए हैं। ‘कॉंग्रेस तो मुह दिखाने के काबिल तक नहीं रही,” यह कांग्रेसी नेता ही कह रहे हैं। प्रियंका मीना का कहना है, ‘राजा साहब’ के पास शिकायत लेकर लोगों की समस्याओं का निवारण नहीं होता। प्रियंका गांधी को पराजित कर, प्रियंका मीणा की जनता ने जीता दिया है”। देश में पांच राज्यों के चुनाव के नतीजों के ऐलान के साथ स्थिति स्पष्ट हो गई है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना व मिज़ोराम में से किस प्रदेश में किस दल की सरकार बनेगी, ये तस्वीर भी साफ हो चुकी है। राज्यों के चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव पर नजरें हैं। पांच में से हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में जीत से भारतीय जनता पार्टी उत्साहित है तो वहीं कांग्रेस के नेता राज्यों की हार पर चिंतन-मनन कर लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए जुट रहे हैं। बीजेपी के सामने लोकसभा चुनाव में इन पांच राज्यों में क्या चुनौतियां होंगी? राजस्थान में लोकसभा की 25, मध्य प्रदेश में 29, छत्तीसगढ़ में 11, तेलंगाना में 17 और मिज़राम में एक सीट है। इन पांच राज्यों में कुल सीटों का आंकड़ा 83 है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 83 में से 65 सीटों पर जीत मिली थी। इन 65 में से चार सीटें बीजेपी ने तेलंगाना में जीती थीं। यानी बीजेपी के 61 लोकसभा सांसद तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से ही आते हैं। अब, जब इन राज्यों के चुनाव में जीत के साथ बीजेपी ने सत्ता में वापसी कर ली है व लोकसभा चुनाव में पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती होगी। पिछले लोकसभा चुनाव और इस बार के लोकसभा चुनाव में तस्वीर अलग है। 2019 में बीजेपी पांच साल सरकार चलाने के बाद चुनाव मैदान में उतरी थी, वहीं इस बार 10 साल की सरकार के साथ पार्टी चुनाव में जा रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी, इस बार बीजेपी सत्ताधारी दल हैं। तेलंगाना में केसीआर सरकार थी, अबकी सीएम की कुर्सी पर कांग्रेस के रेवंत रेड्डी हैं। हिंदी पट्टी के तीनों राज्यों को बीजेपी के लिए प्रबल माना जा रहा है। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं और इनमें से 28 पर बीजेपी का कब्ज़ा है। इसी तरह राजस्थान की 25 में से 24, छत्तीसगढ़ की 11 में से नौ सीटों पर बीजेपी काबिज है। बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पिछले चुनाव की जीती अपनी सीटें बचाए रखने की होगी। अब सवाल ये भी है कि बीजेपी क्या रणनीति अपनाती है? कहा जाता है कि बीजेपी ऐसी पार्टी है जिसकी हर चाल चुनावी होती है। भाजपा 24 ×7 चुनावी मोड में ही रहती है। पांच राज्यों के चुनाव में बीजेपी ने केंद्रीय मंत्रियों और पूर्व मंत्रियों समेत लोकसभा के 21 सांसदों को चुनाव मैदान में उतारा था जिनमें से 9 सांसद हार गए हैं। अब चुनाव हारने वाले सांसद 2024 में टिकट की रेस से ऐसे ही बाहर माने जा रहे हैं, जो जीतकर आए हैं उन्होंने भी संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है यानी बीजेपी ने विधानसभा चुनाव जीतने वाले सांसदों को दिल्ली की सियासत से बाहर कर दिया है। इसे ऐंटी इनकम्बेंसी से निपटने के लिए बीजेपी की टिकट काटने वाली रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। बीजेपी न सिर्फ माइक्रो लेवल पर काम करती है, उसकी रणनीति भी माइक्रो ही होती है। पार्टी ने विधानसभा चुनावों में किसी भी नेता को सीएम फेस घोषित किए बिना पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा व जीता है। ये पीएम मोदी की लोकप्रियता व एंटी इनकम्बेंसी का ‘लिटमस टेस्ट’ सफल रहा। चुनावी नतीजों से एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि पीएम नरेंद्र मोदी या केंद्र सरकार को लेकर एंटी इनकम्बेंसी नहीं है। लोकल लेवल पर सांसद के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी होगी भी तो बीजेपी 30 फीसदी से अधिक टिकट काटने का फॉर्मूला अपनाती रही है। इस बार भी बीजेपी ने पहले ही 21 नए चेहरे उतारने की ज़मीनी तैयारी कर ली है। विधानसभा चुनाव में हारे उम्मीदवारों के लिए 2024 में टिकट पाने की संभावनाएं ना के बराबर हैं। वहीं जो जीत गए उन्हें संसद की सदस्यता से इस्तीफा दिलवाकर पार्टी ने एक तरह से स्टेट पॉलिटिक्स में एक्टिव रहने का संदेश दे दिया है। बीजेपी के पक्ष में बढ़े वोटिंग परसेंट के संकेत हैं। विधानसभा चुनाव भी अब बाइपोलर हो रहे हैं। लोगों का भरोसा क्षेत्रीय दलों पर कम हो रहा है व जो ताकतवर हैं, वह क्षेत्रीय पार्टियों के वोट में भी सेंध लगा सकते हैं। कर्नाटक के बाद बीजेपी के लिए तेलंगाना को सबसे अधिक संभावनाओं वाला राज्य माना जाता है। बीजेपी तेलंगाना के पिछले चुनाव में महज एक सीट पर सिमट गई थी। इस बार पार्टी 14 फीसदी वोट शेयर के साथ 8 सीटें जीतने में सफल रही है। लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी को 2019 में 19.65 फीसदी वोट शेयर के साथ चार सीटों पर जीत मिली थी। टिकट बंटवारे व चुनाव प्रचार का जिक्र करते हुए, गृह मंत्री अमित शाह ने सत्ता में आने पर ओबीसी सीएम का वादा कर लाइन क्लियर कर दी थी। तेलंगाना में पिछड़ों की राजनीति में एक शून्य है। बीजेपी तेलंगाना में ओबीसी पॉलिटिक्स की धुरी बनने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी का फोकस अर्बन, एसटी व ओबीसी पर है। लेकिन लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा होगा जो खुद ओबीसी ही हैं। ऐसे में बीजेपी को इसका फायदा मिल सकता है। शीर्षाअर्थ में यह कहा जा सकता है कि भारत के मध्य स्थित, राज्यों के चुनावों के परिणाम भावी 2024 के आम चुनावों के लिए सार्थक सहायक होंगे। इन्हें हिन्दी हार्ट लेंड तो माना ही जाता है परंतु ये राज्य हिंदुत्व के भी सूचक हैं।
प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, दूरदर्शन व्यक्तित्व व मानवाधिकार संरक्षण सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स)