निलेश शुक्ला
2025 भारत की विदेश नीति के इतिहास में केवल एक कैलेंडर वर्ष नहीं, बल्कि एक निर्णायक अध्याय के रूप में दर्ज होगा। यह वह साल रहा जब दुनिया के तीन सबसे प्रभावशाली शक्ति केंद्र—रूस, चीन और अमेरिका—अपने-अपने मोर्चों पर आक्रामक थे, और भारत उन तीनों के बीच खड़ा होकर यह साबित कर रहा था कि वह अब किसी वैश्विक ध्रुव की परछाईं नहीं, बल्कि स्वयं एक उभरता हुआ ध्रुव है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार की कूटनीति 2025 में प्रतिक्रियाओं से आगे निकलकर निर्णयों की नीति बन गई।
जनवरी–मार्च 2025: साल की शुरुआत, दबावों के बीच स्पष्ट संकेत
2025 की शुरुआत ही भारत के लिए आसान नहीं रही। पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंधों को और सख़्त किया गया, और उसके साथ ही भारत पर यह दबाव बढ़ा कि वह रूसी तेल और रक्षा सहयोग से दूरी बनाए। अमेरिका और यूरोप के कूटनीतिक संकेत साफ़ थे—या तो ‘पश्चिमी खेमे’ के साथ खड़े होइए या परिणाम भुगतिए।
नई दिल्ली ने इस दबाव को न तो सार्वजनिक टकराव में बदला और न ही चुप्पी साधी। प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्रालय ने बार-बार यह दोहराया कि भारत की विदेश नीति उसकी ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा से संचालित होगी। जनवरी–फरवरी में रूसी तेल आयात जारी रहा, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत अपने निर्णयों पर अडिग है।
इसी अवधि में चीन के साथ सीमा वार्ता का एक और दौर हुआ। कोई बड़ी सफलता नहीं मिली, लेकिन यह संदेश ज़रूर गया कि भारत संवाद का दरवाज़ा बंद नहीं कर रहा।
अप्रैल–जून 2025: चुनावी माहौल और वैश्विक संदेश
लोकसभा चुनाव के बाद बने राजनीतिक माहौल के बीच भी विदेश नीति में निरंतरता बनी रही। नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के संकेत के साथ ही दुनिया यह समझ चुकी थी कि भारत की कूटनीति में अचानक यू-टर्न की संभावना नहीं है।
अप्रैल–मई में अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव खुलकर सामने आया। भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाए गए, जिसे नई दिल्ली ने ‘अनुचित और एकतरफा’ बताया। इसके बावजूद भारत ने क्वाड और रक्षा सहयोग को ठप नहीं होने दिया। यह संतुलन ही 2025 की नीति का मूल स्वर बना—जहाँ असहमति हो, वहाँ टकराव नहीं; जहाँ सहयोग हो, वहाँ आत्मसमर्पण नहीं।
इसी दौरान रूस के साथ द्विपक्षीय बैठकों में व्यापार को 100 अरब डॉलर तक ले जाने की बात दोहराई गई। स्थानीय मुद्रा में व्यापार और वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों पर चर्चा ने पश्चिमी वित्तीय दबावों को अप्रासंगिक करने का संकेत दिया।
जुलाई–सितंबर 2025: चीन, हिंद-प्रशांत और शक्ति संतुलन
साल के मध्य में चीन का रुख फिर से सख़्त दिखाई देने लगा। एलएसी के कुछ क्षेत्रों में गतिविधियाँ बढ़ीं, जिसके जवाब में भारत ने भी अपनी सैन्य तैयारियों को और मज़बूत किया। यह एक मौन संदेश था—भारत शांति चाहता है, लेकिन कमजोरी नहीं।
इसी समय हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका और स्पष्ट हुई। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ नौसैनिक अभ्यास हुए, जिससे चीन को यह संकेत गया कि भारत विकल्पहीन नहीं है। लेकिन भारत ने किसी भी मंच से चीन-विरोधी बयानबाज़ी से दूरी बनाए रखी।
यह महीना इस बात का प्रतीक बना कि भारत अब शक्ति संतुलन को केवल बयान नहीं, बल्कि व्यवहार में साध रहा है।
अक्टूबर–नवंबर 2025: वैश्विक दक्षिण और भारत का उभार
साल के अंतिम चरण में भारत ने वैश्विक दक्षिण के नेता के रूप में अपनी भूमिका और मुखर की। विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त, कर्ज राहत और तकनीकी सहयोग जैसे मुद्दों पर भारत ने पश्चिमी देशों से अलग रुख अपनाया।
यह वही समय था जब भारत ने स्पष्ट किया कि वह केवल बड़ी शक्तियों के साथ रिश्ते नहीं निभा रहा, बल्कि छोटे और मध्यम देशों की आवाज़ भी बन रहा है। यह कूटनीति भारत को नैतिक और रणनीतिक—दोनों स्तरों पर मज़बूत करती है।
दिसंबर 2025: साल का निष्कर्ष और स्पष्ट संदेश
साल के अंत तक यह साफ़ हो गया कि 2025 भारत के लिए किसी संकट का वर्ष नहीं, बल्कि परिपक्वता का वर्ष रहा। रूस के साथ रिश्ते बने रहे, चीन के साथ टकराव नियंत्रित रहा और अमेरिका के साथ सहयोग जारी रहा—बिना किसी के सामने झुके।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने यह सिद्ध किया कि वह दबाव में फैसले नहीं बदलता, लेकिन संवाद के दरवाज़े भी बंद नहीं करता।
रणनीतिक स्वायत्तता: 2025 की सबसे बड़ी उपलब्धि
2025 की सबसे बड़ी उपलब्धि किसी एक समझौते या दौरे में नहीं, बल्कि इस तथ्य में है कि भारत ने पूरे वर्ष अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को व्यवहार में उतारा। यह वर्ष बताता है कि भारत अब विदेश नीति को घरेलू राजनीति या बाहरी दबावों के अधीन नहीं रखता।
निष्कर्ष: इतिहास में दर्ज होने वाला वर्ष
2025 को भविष्य में उस वर्ष के रूप में याद किया जाएगा जब भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह न तो किसी का अनुयायी है और न ही किसी का विरोधी—वह केवल भारत है। रूस, चीन और अमेरिका—तीनों के साथ रिश्तों में भारत ने अपनी शर्तों पर चलने की क्षमता दिखाई।





