शिशिर शुक्ला
केंद्र सरकार के द्वारा बुधवार को 19744 करोड़ रुपए के व्यय को हरी झंडी दिखाते हुए “राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन” को मंजूरी दे दी गई। स्वच्छ ऊर्जा (क्लीन एनर्जी) की दिशा में प्रगति के तौर पर बढ़ने वाले कदम के रूप में यह योजना वस्तुतः एक मील का पत्थर है। इस महत्वपूर्ण योजना के सफल क्रियान्वयन से वैसे तो अनेक उद्देश्यों की पूर्ति होगी तथापि योजना के केंद्र में भारत के कार्बन उत्सर्जन को शून्य करते हुए देश को स्वच्छ ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) के उत्पादन के वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित करने का लक्ष्य निहित है।
प्रयुक्त ऊर्जा स्रोत एवं उत्पादन विधि के आधार पर हाइड्रोजन ईंधन को ग्रे हाइड्रोजन, ब्लू हाइड्रोजन एवं ग्रीन हाइड्रोजन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ग्रे हाइड्रोजन जोकि विश्व के कुल उत्पादित हाइड्रोजन का 95 प्रतिशत है, प्राकृतिक गैस या कोयले से जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके उत्पादित की जाती है। जीवाश्म ईंधन के प्रयोग के कारण इसके उत्पादन की प्रक्रिया में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जिस कारण ग्रे हाइड्रोजन स्वच्छता के पैमाने पर निम्न कोटि में आता है। ब्लू हाइड्रोजन में, उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल में न छोड़कर संगृहीत कर लिया जाता है, जिस वजह से स्वच्छता स्केल पर ब्लू हाइड्रोजन ग्रे हाइड्रोजन की अपेक्षा बेहतर माना जाता है। यदि जल के वैद्युत अपघटन हेतु इस्तेमाल की जाने वाली बिजली हरित ऊर्जा स्रोतों (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा इत्यादि) से प्राप्त की जाए तो ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन न के बराबर होता है। इस विधि से उत्पादित हाइड्रोजन को हरित हाइड्रोजन (ग्रीन हाइड्रोजन) अथवा शून्य उत्सर्जन हाइड्रोजन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो बिना पर्यावरण प्रदूषण किए, उत्पादित हाइड्रोजन ही ग्रीन हाइड्रोजन है। वर्तमान में ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन कुल उत्पादन का 0.1प्रतिशत से भी कम है क्योंकि इसके उत्पादन में बहुत उच्च लागत की आवश्यकता होती है। भारत की वर्तमान स्थिति पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो एक नकारात्मक निष्कर्ष यह प्राप्त होता है कि आने वाले कुछ ही वर्षों में भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़कर विश्व में शीर्ष स्थान पर काबिज होगा। यह आंकड़ा चौंकाने वाला तो है ही, साथ ही साथ चिंता का एक गंभीर विषय भी है। जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि के साथ ही ऊर्जा आवश्यकता का भी द्रुतगति से बढ़ना एक स्वाभाविक बात है। ऊर्जा के अनवीकरणीय अथवा परंपरागत संसाधनों का भंडार सीमित है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि इसी दर से जनसंख्या एवं इस कारण ऊर्जा आवश्यकता में वृद्धि होती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब परंपरागत संसाधनों का भंडार लुप्त हो चुका होगा। ऐसी स्थिति आने से पूर्व ही हमें ऊर्जा का बेहतर विकल्प व्यवस्थित करना होगा।
प्रकृति ने हमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा इत्यादि के रूप में अनेक ऐसे बेहतर विकल्प उपलब्ध कराए हैं, जिनमें हमारे भविष्य की संभावनाएं समाहित हैं। परंतु मुश्किल यह है कि इन स्रोतों से उपयोग योग्य ऊर्जा के निष्कर्षण की तकनीक अभी उन्नत दशा को प्राप्त नहीं कर पाई है। हरित हाइड्रोजन भी इन्हीं विकल्पों में से एक है। अप्रैल 2022 में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ऑयल इंडिया लिमिटेड ने असम में जोरहाट पंप स्टेशन पर भारत का प्रथम शुद्ध हरित हाइड्रोजन पायलट प्लांट स्थापित किया। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का प्रमुख लक्ष्य भारत को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग एवं निर्यात के वैश्विक हब के रूप में विकसित करना है। इस मिशन में, आने वाले पांच वर्षों में सालाना 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन के उत्पादन का लक्ष्य रखते हुए वर्ष 2030 तक देश में 1.25 लाख मेगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। भारत वर्तमान में अपनी तेल आवश्यकता का 80 प्रतिशत से भी अधिक आयात करता है। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के सफल क्रियान्वयन से 2050 तक जीवाश्म ईंधन के आयात में 1000 अरब डॉलर से भी अधिक की कमी का अनुमान लगाया गया है। भारत के द्वारा वर्ष 2070 तक “नेट जीरो” अर्थात शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा गया है। ऐसा अनुमान है कि यदि हरित हाइड्रोजन को केवल लोहा एवं इस्पात उद्योग में ही प्रयोग कर लिया जाए तो वर्ष 2050 तक कार्बन उत्सर्जन में 35% की कमी आएगी। इस बहुआयामी योजना के क्रियान्वयन हेतु दिशानिर्देश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा तैयार किए जाएंगे। समग्र अवलोकन करने पर नतीजा यह निकलता है कि राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन एक ऐसी योजना है जिसमें निवेश से कई गुना अधिक लाभ प्राप्त होने की पूर्ण आशा की जा सकती है। भविष्य में पेट्रोल एवं डीजल का विकल्प हरित हाइड्रोजन ही होगी। आयातित जीवाश्म ईंधन में कमी आने के साथ-साथ देश की विनिर्माण क्षमता में भी वृद्धि होगी। एक बार ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन सफल हो जाने पर भारत इसके उपयोग एवं निर्यात की तरफ भी कदम बढ़ाएगा। प्रत्येक क्षेत्र में हरित हाइड्रोजन के उपयोग से ग्रीनहाउस उत्सर्जन में निश्चित रूप से कमी देखने को मिलेगी जोकि पर्यावरण की सबसे बड़ी मांग है। एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस मिशन से वर्ष 2030 तक 6 लाख से अधिक नौकरियों के सृजन की उम्मीद की गई है। दिन प्रतिदिन बढ़ती जनसंख्या वाले देश में नवीन रोजगारों का सृजन एक बड़ी एवं अनिवार्य आवश्यकता बन गया है। विभिन्न उद्योगों में ऊर्जा स्रोत एवं वाहनों में ईंधन के रूप में ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग होने से भारत पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सक्रिय योगदान कर सकेगा एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां स्वतः समाप्त हो जाएंगी।
हमारे लिए यह चिंता की बात है कि हमारा पड़ोसी व प्रतिद्वंद्वी चीन, वैश्विक हरित हाइड्रोजन बाजार का नेता है। यद्यपि रिलायंस एवं अडानी समूह के द्वारा 2021 में हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में पहल की गई है किंतु राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के माध्यम से बड़े पैमाने पर हरित हाइड्रोजन के उपयोग एवं जीवाश्म ईंधन से मुक्ति को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि इस योजना के समक्ष कुछ चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं, उदाहरणार्थ, “द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट” (TERI) के अनुसार हरित हाइड्रोजन का वर्तमान मूल्य ₹340 से ₹400 प्रति किलोग्राम है जोकि वास्तव में बहुत अधिक है। किंतु धीरे-धीरे समग्र प्रयासों के माध्यम से निश्चित ही हम सन 2050 तक ग्रीन हाइड्रोजन की कुल ऊर्जा में 12 प्रतिशत हिस्सेदारी के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होंगे।