कांग्रेस के पास भी तो राष्ट्रीय दृष्टि का अभाव है

सुशील दीक्षित विचित्र

भारत जोड़ों यात्रा के दौरान एक प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने जो कुछ कहा वह सामंती मानसिकता से निकले पराजित दंभ के अलावा और कुछ नहीं है | उनका कहना है कि भाजपा को हराने का वैचारिक ढांचा कांग्रेस ही दे सकती है जबकि पिछले कमोवेश आठ साल से राहुल गांधी खुद कांग्रेस के लिए कोई वैचारिक भावभूमि नहीं बना सके | उनका यह भी कहना है कि कांग्रेस के अलावा और किसी के पास राष्ट्रीय दृष्टि नहीं | इस संदर्भ में समाजवादी पार्टी का नाम भी लिया कि उनकी आइडियोलॉजी केरल-कर्नाटक में नहीं चल सकती | जबकि असलियत यह है कि 2017 के चुनाव में सपा की पिछलग्गू थी | 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने गठबंधन में शामिल नहीं होने दिया जबकि इसके लिए उन्होंने मायावती से प्रार्थना तक की थी |

असल में गांधी परिवार अभी भी देश की बदली हुई राजनीतिक बयार को पहचान नहीं पाया है | बल्कि यह कहना ठीक होगा कि ऐसी उसने कोई कोशिश तक नहीं की | उम्मीद थी कि भारत जोड़ों यात्रा के दौरान राहुल गांधी मोदी सरकार के खिलाफ कोई विमर्श गढ़ेंगे | जनता के सामने कोई ऐसा मैप रख सकेंगे जो मोदी के आभामंडल को काट सकेगा | ऐसा हुआ कुछ भी नहीं | राहुल गांधी ने अब तक की पूरी यात्रा के दौरान ऐसा कुछ नया नहीं कहा जो वह पहले से न कहते आ रहे हों | अब तो जनता को उनके भाषण का लिस्ट याद भी हो गई होगी कि देश अडानी , अम्बानी चला रहे हैं , भाजपा नफरत फैला रही है , संविधान खतरे में हैं , विरोधियों को बोलने नहीं दिया जाता , भाजपा के खिलाफ लोगों में गुस्सा है , चीन ने भारत की जमीन हड़प ली आदि आदि | अब राहुल गांधी भले ही मानते हों कि यह कांग्रेस की राष्ट्रीय दृष्टि है लेकिन जनता ने पिछले दर्जनों चुनावों में कांग्रेस को बार-बार बताया कि उसकी यह दृष्टि स्वीकार नहीं | हिंदी पट्टी के प्रमुख बड़े राज्यों से लेकर धुर पूर्वोत्तर भारत तक कांग्रेस पिछले आठ वर्षों से तेजी से अपना बजूद खोती जा रही है | एक कहावत है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है | उस यूपी में कांग्रेस का एक सांसद सोनियां गांधी हैं जबकि स्मृति ईरानी के भय से खुद राहुल केरल से भी लड़े और अमेठी की पुश्तैनी सीट हार गए |

इस में कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस को अभी भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल है | जनाधार भी देश भर में है और पहचान भी | राहुल गांधी भी देश भर में कांग्रेस के स्वीकार्य नेता हैं लेकिन उन्हें यदि गंभीरता से नहीं लिया जाता तो उसके पीछे उनकी वही आइडियोलॉजी है जिसे वे सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं | जिस भारत जोड़ों यात्रा को वे नफरत के बाजार में प्यार की दूकान खोलना बताते हैं उससे अन्य विपक्षी दलों को अलग रखना उनकी प्यार के मुलम्मे में लिपटी नफरत को ही बयान करता है | उनके भाषण ही बताते हैं कि उन्हें भारत के उन उद्योगपतियों से कितनी नफरत है जो लाखों लोगों को रोजगार दिए हुए हैं और उन्हें भारत में मनमोहन सिंह की उदार अर्थव्यवस्था लाई थी और उन्हें बड़े-बड़े ठेके दिए | गैस की खदानों के सबसे बड़े मालिक अंबानी हैं और इन्हें भी मोदी ने नहीं कांग्रेस ने ही बनाया था |

इन सबको नजरंदाज कर दें तो अभी तक भारत जोड़ों यात्रा के दौरान कांग्रेस की जो राष्ट्रीय दृष्टि सामने आई है वह देश के शुभेच्छुओं की अपेक्षा देश को तोड़ने वालों को अधिक महत्व देती है | देशद्रोह के आरोप में जमानत पर छूटे कन्हैया कुमार कांग्रेस के पदाधिकारी हैं | कश्मीर से धारा 370 हटना राष्ट्रीय दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण घटना थी | इससे ने केवल वहां पाकिस्तान कमजोर हुआ बल्कि सही अर्थों में उसका देश के साथ विलय हुआ | इस मुद्दे पर कांग्रेस से खुल कर समर्थन की आशा थी | कांग्रेस ने इसका विरोध ही नहीं किया बल्कि यहां तक घोषणा कर दी कि जब उनकी सरकार केंद्र में आयेगी तो धारा 370 को फिर बहाल कर दिया जायेगा | राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ों यात्रा का समापन श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहरा कर करेंगे | तिरंगा फहराते समय उन्हें इस बात को भी याद रखना चाहिए कि ऐसा वे धारा 370 हटने के बाद ही करने में समर्थ होंगे वरना इससे पहले कभी किसी कांग्रेसी नेता की वहां तिरंगा फहराने की हिम्मत नहीं पड़ी | मनमोहन सिंह के समय भाजपा के मुरली मनोहर जोशी ने तिरंगा यात्रा निकाल कर जब लाल चौक पर झंडा फहराया था तो कांग्रेस ने इसका विरोध किया था |

क्षेत्रीय दलों को अपमानित करके विपक्षी एकता की धारणा राहुल गांधी ही पाल सकते हैं | उन्हें ही भ्रम हो सकता है कि वे विपक्षी एकता के इंजन बनने की योग्यता रखते हैं लेकिन ऐसे कई दल है जो कांग्रेस और राहुल गांधी को अपने पास भी नहीं फटकने देना चाहते | कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने , जिनमें ममता बनर्जी प्रमुख हैं , भाजपा के खिलाफ विपक्षी मोर्चा बनाने की कोशिशों के दौरान कांग्रेस से दूरी बनाये रखी | नितीश कुमार ने जरूर सोनिया गांधी से मुलाक़ात की थी लेकिन कांग्रेस को भी तो ऐसा कोई नेता स्वीकार नहीं होगा जो विपक्षी एकता का इंजन बनने का इच्छुक हो और जो खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार समझता हो |
स्थिति यह है कि भारत जोड़ों यात्रा राजनीतिक गलियारों में ही नहीं जनता के बीच भी कोई हलचल नहीं पैदा कर सकी | कांग्रेसियों को भले लगता हो कि यात्रा को अपार सफलता मिल रही है लेकिन सेलीब्रेटीज के शामिल होने और टी शर्ट पहन कर चलने से सफलता के कोई मानदंड नहीं माने जा सकते | दुर्भाग्य यह कि कांग्रेस टी शर्ट को ही मुद्दा बनाने पर तुली हुई है | यह भी बताता है कि अपनी दशा की दिशा बदलने में न राहुल गांधी में सहालियत और न उनके पास ऐसा कोई फार्मूला है जिससे भाजपा को हराया जा सके | ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में ऐसे नेताओं का अभाव था जो बाजी पलट सकते थे | बहुत नेता ऐसे थे | उन्होंने समय-समय पर राहुल गांधी को आगाह भी किया कि मोदी के खिलाफ शत्रु जैसी राजनीति घातक होगी | राजनीति में व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिये कोई जगह नहीं होती | उन्होंने यह भी कहा मोदी ने कई योजनाओं को जमीन पर उतारा है | इन योजनाओं में खामियों को मुद्दा बनाया जाए , सरकार के कामकाज को मुद्दा बनाया जाए | राहुल गांधी और उनके दरबारियों ने अपनी सस्ती राजनीति को दरकिनार करने की जगह इन परिपक्व नेताओं को ही दरकिनार कर दिया |

प्रेम शब्द का उच्चारण करने और देश में कथित नफरत होने की अफवाह फैलाने से न प्रेम हो जाता है और नफरत फैलती है | राहुल गांधी ने खुद स्वीकारा कि उनकी अब तक की यात्रा के दौरान उन्हें कहीं भी नफरत यहीं मिली | इसके बाबजूद वे कहते हैं कि देश में नफरत का माहौल है तो वे एक ही मुद्दे पर दो बातें कह कर खुद को ही अविश्वसनीय बनाते हैं | एक बात तो वे सही कहते हैं कि देश में हिंसा नफरत का फायदा दुसरे देश उठाते हैं | काश यह बात कहते हुए राहुल को याद आना चाहिए था कि उनकी मोदी से हो कर देश की सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ पहुंची नफरत का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान ने उन्हें अपना पोस्टर बॉय बनाया था | उनकी बातों का अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने हक में खुल कर इस्तेमाल किया था | सरकार की जिस विदेश नीति को भ्रमित बता रहे हैं , यह उसी नीति का दम था कि देश ने उसके आरोपों का ऐसा मुंह तोड़ जबाब दिया कि आज दुनिया अलग थलग पड़ गया | इसलिए राहुल गांधी को ईर्ष्याजनक राजनीति को छोड़ कर इस सत्य को स्वीकारना चाहिए कि अफवाहे उड़ा कर या गालियां दे कर वे मोदी को नहीं हरा सकते | यह भी समझना चाहिए कि अब तो यूपीए के घटक ही कांग्रेस के साथ नहीं रहना चाहते फिर अन्य दल कांग्रेस के झंडे के नीचे कैसे आयेंगे | अभी तो कांग्रेस ही अपना अस्तित्व बचाने के लिये तमाम राज्यों में क्षेत्रीय दलों के झंडे के नीचे खड़ी है | इसलिए विपक्षी एकता का इंजन बनने से पहले राहुल गांधी खुद अपनी पार्टी के इंजन बनें और अपने पीछे कार्यकर्ता और शुभचिंतक नताओं को जोड़ कर चलें अन्यथा इन हवा हवाई बातों से कांग्रेस का कोई भला होगा यह फिलहाल तो नहीं दिखता |