आखिर हिमालय क्यों उजाड़ा जा रहा है?

ओम प्रकाश उनियाल

हिमालयी क्षेत्र एक तो पहले से ही प्राकृतिक आपदाएं झेलता आ रहा है दूसरे विकास के नाम पर हिमालय की जड़ को कुरेद-कुरेद कर पूरी तरह खत्म करने का निरंतर प्रयास जारी है। हिमालय अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए है। जिसका वर्णन जितना किया जाए उतना ही कम है। फिर भी न जाने क्यों हिमालयी क्षेत्र से छेड़छाड़ की जा रही है? यह गंभीरता का विषय है? परिणाम हम कई बार देख और भुगत चुके हैं। माना कि प्राकृतिक आपदाओं पर इंसान का वश नहीं है मगर यह भी सच है कि मानवजनित कारणों से ही भयंकर आपदाओं का सामना भी करते आ रहे हैं। जो खिलवाड़ जानबूझकर किया जा रहा है उसका जिम्मेदार तो पूरी तरह इंसान ही है। हिमालय के आंचल में पनपी सभ्यता व संस्कृति को जिस तरह से उजाड़ने का प्रयास चल रहा है उससे भविष्य में और भी भयावह स्थिति पैदा हो सकती है। हिमालय एक संवेदनशील क्षेत्र है। जिसमें भूगर्भीय हलचल अक्सर होती ही रहती है। यह धरती का अपना स्वभाव है। इसके बावजूद भी बिना भूगर्भीय सर्वेक्षण के विकास कार्य थोपे जा रहे हैं। पहाड़ों की स्थिति एक समान नहीं है। कहीं ठोस पहाड़ हैं तो कहीं नाजुक। नाजुक पहाड़ तो पृथ्वी की हल्की-सी हलचल से ही दरकने लगते हैं। बरसात के मौसम में पहाड़ जिस प्रकार से दरकते व धंसते हैं उससे हर साल हर तरह से भारी क्षति उठानी पड़ती है। विकास की किरण अंतिम छोर तक पहुंचाने में किसी प्रकार की बुराई नहीं है किन्तु नियोजित तरीके अपनाकर। वहां की भौगोलिक स्थिति को जांचकर। उत्तराखंड के आध्यात्मिक नगर जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव केे कारण भवनों में पड़ी दरारें विकास के नीति-नियंताओं की पोल खोल रही है। वहां के वासिंदे भय से सहमे हुए हैं। अपने जीवन की पूरी कमाई घर बनाने में झोंककर आज बेघर हो चुके हैं। यहां के लोगों का मानना है कि जोशीमठ के नीचे टनल निर्माण के कारण यह स्थिति बनी है। भू-धंसाव का कारण जो भी हो लेकिन हालत तो खतरे वाले बन ही चुके हैं। पहाड़ों से विकास के नाम पर जितनी छेड़छाड़ होगी उसका खामियाजा पहाड़वासियों को ही भुगतना पड़ेगा।
उत्तराखंड को देवभूमि माना जाता है। लोगों की अगाध श्रद्धा का केन्द्र है देवभूमि। तमाम तरह के झंझावत झेलते हुए भी यदि हम सजग नहीं होंगे तो जो हमारा ताज है उसका अस्तित्व ही मिट जाएगा।