दीपक कुमार त्यागी
- राजनीति में विरले ही मिलती ‘शरद यादव’ जैसे स्पष्टवादी व ईमानदार व्यक्तित्व की शख्सियत
- सड़क से लेकर संसद तक देश के आम जनमानस की बेहद सशक्त बुलंद आवाज बनकर सिंह गर्जना करने वाली दमदार राजनीतिक शख्सियत थे ‘शरद यादव’
- भारतीय राजनीति के विशाल वट-वृक्ष माने जाते थे समाजवादी पुरोधा ‘शरद यादव’, देश में उनकी छांव में बने हैं बहुत सारे राजनेता
देश व दुनिया में समाजवादी विचारधारा के प्रखर राजनेता के रूप में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाने वाले दिग्गज राजनेता ‘शरद यादव’ का निधन हो गया है। लगभग 50 वर्ष तक भारतीय राजनीति में सक्रिय रहने वाले इस समाजवादी विचारधारा के दिग्गज पुरोधा ने 75 वर्ष की आयु में हरियाणा के गुड़गांव में स्थित फ़ोर्टिस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में गुरुवार की रात को अंतिम सांस ली। सूत्रों के अनुसार ‘शरद यादव’ का पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य खराब चल रहा था, वह कुछ समय पूर्व से स्वास्थ्य संबंधित मुश्किलों का सामना कर रहे थे, लेकिन पिछले चार महीने से उनके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार होने लगा था, उसकी चलते ही लगभग चार महीने पहले शरद यादव के दक्षिण दिल्ली के आवास पर बिहार व देश के विभिन्न नेताओं ने उनसे मुलाकात भी की थी, उस समय सभी को लगने लगा था कि ‘शरद यादव’ बहुत जल्द ही देश में एकबार फिर से सक्रिय राजनीति में नज़र आयेंगे और 2024 के आगामी लोकसभा चुनावों में वह अपनी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। लेकिन ईश्वर की इच्छा पर किसी की बस नहीं चलता है, अचानक ही ‘शरद यादव’ का निधन हो गया। सूत्रों की मानें तो ‘शरद यादव’ को कुछ सांस लेने में तकलीफ की समस्या के चलते अचेतावस्था में ही अस्पताल लाया गया था और डॉक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। इस दुखद खबर की जानकारी ‘शरद यादव’ की बेटी ‘सुभाषिनी शरद यादव’ ने 12 जनवरी गुरुवार रात को ही 10.48 बजे “पापा नहीं रहे” का ट्वीट करके देशवासियों को दी थी। इस ट्वीट के साथ ही यह तय हो गया कि भारतीय राजनीति की दिग्गज शख्सियत वाला विशाल वट-वृक्ष अब दुनिया में नहीं रहा है, जिस वट-वृक्ष की राजनीतिक छांव में देश के अनगिनत राजनेता बड़े हुए और आज देश के दिग्गज राजनेताओं में उन लोगों का नाम भी शुमार है, वह सब ‘शरद यादव’ के राजनीतिक प्रयासों का ही परिणाम है। ‘शरद यादव’ भारतीय राजनीति की एक ऐसी शख्सियत रहे हैं, जिनका जीवन हमेशा एक खुली किताब की तरह रहा है, आज देश के छोटे से लेकर के बड़े सत्ता पक्ष व विपक्ष तक के भी राजनेताओं में ‘शरद यादव’ को श्रद्धांजलि अर्पित करने की होड़ लगी हुई है। लेकिन बहुत ही दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि सड़क से लेकर संसद तक देश के आम जनमानस की बेहद सशक्त बुलंद आवाज को पिछले कुछ वर्षों में अपने ही पाले पोसे हुए राजनेताओं से बहुत छल मिला था, उस वक्त जब ‘शरद यादव’ को एक मात्र तिनके के सहारे की जरूरत थी, तब उनके अपने ही कुछ राजनेताओं ने उनकी पीठ में छुरा घोपने का कार्य किया था, उस वक्त उनकी किसी भी राजनेता ने मदद नहीं की थी, अधिकांश राजनेताओं ने उनको राजनीतिक चक्रव्यूह अकेले छोड़ कर छल से उनका राजनीतिक वध करने का कार्य किया था। जिस व्यक्ति ‘शरद यादव’ की अपनी लगभग 50 वर्ष की राजनीतिक तपस्या के बलबूते राजनीतिक जीवन में राजनीति के गलियारों में हर वक्त तूती बोलती हो, उसके साथ भी इतना बड़ा छल हो जाये यह मौकापरस्त भारतीय राजनीति में ही संभव है।
इसलिए भारत की राजनीति में एक प्राचीन कहावत है कि ‘ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर’ यहां अधिकांश राजनेता आपस में अपना क्षणिक स्वार्थ देखकर ही जुड़ते हैं।
मध्य प्रदेश के होशांगाबाद में 1 जुलाई, 1947 में जन्मे ‘शरद यादव’ जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के गोल्ड मेडलिस्ट थे।
15 फरवरी 1989 को ‘शरद यादव’ की शादी सुभाषिनी राज राव से हुई थी। उनके परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी है। उनके बेटे का नाम शांतनु और बेटी का नाम सुभाषिनी हैं। उनके बेटे शांतनु ने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से की है। वहीं ‘शरद यादव’ की बेटी राजनीति में सक्रिय हैं, वह वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा के चुनाव होने से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुड़ गयी थी और सुभाषिनी ने ‘आरजेडी’ के टिकट पर बिहारीगंज विधानसभा सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वह चुनाव हार गई थी। वह अब भी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में निरंतर सक्रिय हैं, लोगों को उम्मीद है कि सुभाषिनी भविष्य में ‘शरद यादव’ की राजनीतिक विरासत संभाल सकती है।
अपने आचरण से ‘शरद यादव’ देश में समाजवादी विचारधारा के एक बहुत बड़े प्रतीक बन गये थे, वैसे भी वह दिग्गज समाजवादी नेता ‘राम मनोहर लोहिया’ व ‘जय प्रकाश नारायण’ के समाजवाद से बेहद प्रभावित थे, जिसके चलते ही उन्होंने देश के हालात को देखकर राजनीति में आना उचित समझा था। जिसके चलते ही ‘शरद यादव’ को वर्ष 1969-70, 1972 और 1975 में हिरासत में लिया गया था। जिसके बाद ‘शरद यादव’ ने सक्रिय राजनीति में वर्ष 1974 में कदम रखा था। ‘शरद यादव’ जिस समय मात्र 27 वर्ष की आयु में जबलपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष के रूप में छात्र आंदोलन के चलते जेल में बंद थे, तो छात्र आंदोलन के बाद हुए चुनावों में ‘जय प्रकाश नारायण’ ने जिस पहले उम्मीदवार को ‘हलधर किसान’ के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वाया वह महत्वपूर्ण शख्सियत ‘शरद यादव’ ही थे, उस वक्त ‘शरद यादव’ ने जेल में बंद रहते हुए ही जबलपुर का चुनाव जीत लिया था, देश के मतदाताओं को जनता पार्टी की आंधी की पहली झलक ‘शरद यादव’ की जीत के रूप में ही देखने को मिली थी। हालांकि बाद में उन्होंने भारतीय राजनीति में अपना एक अलग आयाम स्थापित करते हुए केन्द्रीय मंत्री बनने तक का राजनीतिक सफर तय किया था, अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्षों को छोड़कर ‘शरद यादव’ भारत की राजनीति में हमेशा मुख्य धुरी में बने रहे थे।
आज मैं भारतीय राजनीति के इस विशाल वट-वृक्ष ‘शरद यादव’ के निधन पर उनको अपनी चंद पंक्तियों के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं :-
राजनीति की पथरीली राहों पर,
जब निकला एक निड़र शख्स।
जनता के बीच बनकर मसीहा,
उभरा जब एक निर्भीक शख्स।
बनकर के वह आम जनमानस, जरूरतमंदों की बुलंद आवाज।
सिंह गर्जना करके गूंगी सत्ता को, चुनौती देने निकाल एक शख्स।
आम लोगों के हक की लड़ाई में, जेल जाने से ना डरा एक शख्स।
पांव में छाले देंह में दर्द के बाद भी,
मुश्किलों पर विजय करता एक शख्स।
वट-वृक्ष बनकर विशाल छांव में,
लोगों को शरण देता था एक शख्स।
राष्ट्र व समाज के हित के लिए,
हर पल तैयार रहता था एक शख्स।
अपनी व्यवहार कुशलता मेहनत के दम पर ही ‘शरद यादव’ ने देश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया था। ‘शरद यादव’ ने देश में समाजवादी विचारधारा की राजनीति को आधार बनाकर ही जनता के दिल में जगह बनाने का कार्य किया था। देश व दुनिया के राजनीतिक गलियारों में ‘शरद यादव’ को स्पष्टवादी, ईमानदार व सुलझे व्यक्तित्व का राजनेता माना जाता है। अपनी इस छवि के दम पर ही ‘शरद यादव’ मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे तीन राज्यों से सांसद रहें। वह अपने गृहराज्य मध्यप्रदेश के गृहक्षेत्र जबलपुर लोकसभा से वर्ष 1974 और 1977 में दो बार जीत दर्ज कर सांसद चुने गये थे। वह वर्ष 1989 में उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट से जीतकर तीसरी बार सांसद बने थे। लेकिन बंदायू से जीत के बाद उन्होंने बिहार का रुख किया और ‘शरद यादव’ का संसदीय क्षेत्र बिहार का मधेपुरा बन गया, वह मधेपुरा से चार बार वर्ष 1991, 1996, 1999 और 2009 में सांसद चुने गये। वह बीपी सिंह की केन्द्र सरकार में भी केन्द्रीय मंत्री भी बने थे। उनको देश में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करवाने का सबसे अहम व्यक्ति माना जाता है, जिसके बाद वह देश के राजनीतिक गलियारों में सामाजिक न्याय के बड़े योद्धा बनकर उभरे थे। हालांकि वह भारतीय राजनीति के एक ऐसे शख्स रहें हैं, जिन्हें जीवन भर राजनीति की आंखमिचौली और उसकी धूप-छांव को करीब से देखा और जीवन के अपने अंतिम समय में अपने ही द्वारा बनाए गये राजनेताओं के छल-कपट व धोखे को भी बहुत करीब से देखा।