मंज़िल की जुस्तुजू में मेरा कारवां तो है ?

तनवीर जाफ़री

कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के नेतृत्व में कन्याकुमारी से कश्मीर तक चल रही “भारत जोड़ो यात्रा” अब अपने समापन की ओर अग्रसर है। लगभग 3700 किलोमीटर लंबी इस यात्रा के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के पद चिन्हों चलते हुये जहां राहुल गांधी ने देश के प्रत्येक क्षेत्र व वर्ग के लोगों से संवाद स्थापित कर देश का मिज़ाज जानने की सफल कोशिश की वहीं इस पूरी यात्रा के दौरान भाव विह्वल कर देने वाले भी कई क्षण देखने को मिले। रास्ते में जहां लाखों दुखी,संकटग्रस्त,बेरोज़गार,ग़रीब व परेशान हाल लोग राहुल गाँधी से गले मिलकर रोते व सिसकियाँ लेते दिखाई दिये वहीं राहुल गाँधी इसी यात्रा के दौरान कभी अपनी मां सोनिया गाँधी के तो कभी यात्रा में साथ चलने वाले अन्य बच्चों के जूते के फ़ीते ज़मीन पर बैठ कर बांधते नज़र आये। कभी राहुल किसी बुज़ुर्ग का सहारा बनते दिखाई दिये तो कभी किसी बच्चे को अपने कंधे पर बिठा कर पैदल यात्रा करते नज़र आये। गोया नफ़रतों को मिटाकर जिस मुहब्बत का पैग़ाम देने के लिये राहुल ने देश के दक्षिण छोर से उत्तरी छोर तक की यात्रा की उस पूरे रास्ते में वे स्वयं भी मुहब्बत की बरसात ‘ करते हुये चले।

राहुल गांधी ने इस यात्रा के दौरान कई जगह यह बात दोहराई कि -‘मैं नफ़रत के इस बाज़ार में मोहब्बत की दुकान खोल रहा हूं ‘। राहुल के इस कथन के बाद देश के कई इलाक़ों से समाचार प्राप्त होने लगे हैं कि लोग अपनी दुकानों व संस्थाओं के बाहर ‘मुहब्बत की दुकान ‘ लिखा हुआ बोर्ड लगाने लगे हैं। उदाहरण के तौर पर पानीपत के एक ऐसे हैंडलूम दुकानदार ने जो पूर्व में किसी अन्य राजनैतिक दल का समर्थक था, उसने भी अपनी दुकान के बाहर राहुल गांधी की फ़ोटो के साथ ‘मोहब्बत की दुकान’ का साइन बोर्ड लगवाया दिया है। उस हैंडलूम दुकान के मालिक ने बताया कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने अलवर में जब कहा कि ‘मैं नफ़रत के इस बाज़ार में मोहब्बत की दुकान खोल रहा हूं ‘। उनकी इस बात से मैं बहुत प्रभावित हुआ। राहुल ने मुहब्बत का यही पैग़ाम पानीपत में भी दिया।

अब जब यह यात्रा अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँचने के क़रीब है राहुल गाँधी ने देश के लोगों को संबोधित करते हुये एक भावुक कर देने वाला पत्र जारी किया है। इस पत्र में उन्होंने जहां यात्रा के अपने अनुभव साँझा किये हैं वहीं यात्रा को अपार स्नेह व समर्थन देने के लिये देशवासियों का आभार भी व्यक्त किया है। राहुल ने अपने पत्र में लिखा है कि -‘इस यात्रा में लाखों भारतीय हमारे साथ कन्याकुमारी से कश्मीर तक चले। यह मेरे जीवन की सबसे समृद्ध यात्रा थी, और मैं उस प्यार और स्नेह से अभिभूत हूं, जो हर एक भारतीय ने हम पर बरसाया है। मैंने रास्ते में आप सभी की कहानियां ध्यान से सुनीं। एक सुस्पष्ट आर्थिक संकट मंडरा रहा है। युवाओं में बेरोज़गारी, असहनीय महंगाई, गंभीर कृषि संकट है और देश की संपत्ति पूरी तरह से कॉर्पोरेट वाले लोगों के हाथ में चली गई है।” राहुल ने यह भी लिखा कि ” लोग अपनी नौकरी खोने के बारे में चिंतित हैं, उनकी आय में और गिरावट आ रही है, और उनके बेहतर भविष्य के सपने चकनाचूर हो रहे हैं। देश भर में निराशा की गहरी भावना है। आज हमारी अनेकता भी ख़तरे में है। विभाजनकारी ताक़तें हमारी विविधता को हमारे ख़िलाफ़ करने की कोशिश कर रही हैं – विभिन्न धर्मों, समुदायों, क्षेत्रों को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा किया जा रहा है। ये ताक़तें, जो संख्या में मुट्ठी भर हैं, जानती हैं कि जब लोग असुरक्षित और डरे हुए महसूस करते हैं, तभी वे ‘दूसरे’ के लिए नफ़रत के बीज बो सकते हैं। लेकिन इस यात्रा के बाद मुझे विश्वास हो गया है कि इस शातिर एजेंडे की अपनी सीमाएं हैं और यह अब और नहीं चल सकता।”

राहुल गांधी ने इस पत्र में संकल्प लिया कि -“मैं हर दिन इन बुराइयों को ख़त्म करने के लिए सड़कों से लेकर संसद तक लड़ूंगा। मैं देश को आर्थिक तौर पर मज़बूत बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं। सबके लिए समृद्धि, किसानों की उपज का सही दाम, हमारे युवाओं को रोज़गार, देश के धन का उचित वितरण, एक समर्थता, एमएसएमई और उद्यमियों के लिए पर्यावरण, सस्ता डीज़ल, मज़बूत रुपया और 500 रुपये में गैस सिलेंडर।” राहुल ने आगे लिखा कि, “हमारे देश के लोग महसूस करते हैं कि जब तक हम अपनी विविधता को नहीं अपनाते और कंधे से कंधा मिलाकर काम नहीं करते तब तक हम अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच सकते है। मुझे विश्वास है कि भारत नफ़रत को ख़ारिज कर देगा। हम जाति, धर्म, भाषा, लिंग और अन्य सभी मतभेदों से ऊपर उठेंगे जो समाज में दरार पैदा करते हैं। हमारी महानता हमारी ‘अनेकता में एकता’ में निहित है। आप में से हर एक को मेरा संदेश है कि – डरो मत! अपने हृदय से भय को निकाल दो, और तुम्हारे भीतर से घृणा मिट जाएगी। इस यात्रा ने आप सभी के लिए लड़ने की मेरी शक्ति को ताज़ा किया है। यह मेरी तपस्या रही है। मैं समझता हूं कि मेरी व्यक्तिगत और राजनीतिक यात्रा एक है – बेज़ुबानों को आवाज़ देना, कमज़ोरों का हथियार बनना, भारत को अंधकार से प्रकाश की ओर, घृणा से प्रेम की ओर, पीड़ा से समृद्धि की ओर ले जाना। मैं उन लोगों के वीज़न और मूल्यों को आगे बढ़ाऊंगा जिन्होंने हमें हमारा असाधारण संविधान दिया।”

सवाल यह है कि भयंकर गर्मी,बारिश और कड़ाके की सर्दी के बीच भारत जोड़ो यात्रा के रूप में की गयी एक कठिन तपस्या राहुल गाँधी की सोच के अनुरूप गाँधी-नेहरू-पटेल के सपनों के अनुरूप एक संविधान सम्मत एकीकृत भारत का निर्माण कर पाने में सफल हो सकेंगे ? जनता के बेपनाह समर्थन व स्नेह के बावजूद क्या स्वयं को धर्मनिरपेक्ष बताने वाले विपक्षी राजनैतिक दल अपने सत्ता स्वार्थ की भावनाओं से ऊपर उठकर राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के अनुभव व इसके मर्म को समझते हुये देश में फैल रहे नफ़रत व घृणा के इस वातावरण के बीच प्यार व मुहब्बत की दुकानें खोलने के लिये राहुल के हाथ से हाथ जोड़ने के अभियान में शरीक होंगे ? आने वाले हालात जो भी हों परन्तु राहुल गांधी की मौजूदा तर्ज़-ए-सियासत से तो यह सन्देश साफ़ है कि – मंज़िल मिले,मिले न मिले,इसका ग़म नहीं = मंज़िल की जुस्तुजू में मेरा कारवां तो है ?
तनवीर जाफ़री