अरुण कुमार चौबे
मध्यप्रदेश के विधायकों का वेतन बढ़ाने के बाद उन्हें लगभग बढ़ाने के बाद अब विधायकों को प्रतिमाह लगभग डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा वेतन प्रतिमाह मिलेगा। जो अब तक मिल रहे वेतन के दुगने से ज्यादा है। सरकारी मातहतों को भी ९प्रतिशत महंगाई भत्ता बढ़ाया गया है। जिसका भार आम लोगों पर ही होगा।
जो विधायक हैं उनमें से कोई भी दीन सुदामा जैसा गरीब नहीं है बल्कि सभी विधायकों के पास कुबेर के खजाने से भी ज्यादा अकूत चल अचल धन संपत्ति है। मुख्यमंत्री सहित कोई भी विधायक इतना लाचार नहीं है कि यदि उसे मासिक वेतन नहीं मिला तो उसके घर का चूल्हा नहीं जलेगा और घर में फांके पड़ने लगेंगे। जो विधायक मंत्री मुख्यमंत्री हैं उनकी तो पांचों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में है उन्हें मुफ्त/नाम मात्र के किराए पर राजधानी में बंगला मिला है। यादि बंगले का किराया भी लगता है तो उसे चुकाया ही नहीं जाता है, किस पर कितना किराया बाकी है समाचार पत्रों में प्रकाशित होता है। मुफ्त की वाहन सुविधा है। पेट्रोल डीजल चाहे कितना महंगा हो इसका भार मंत्रियों और मुख्यमंत्री पर निजी तौर पर आता ही नहीं है। विधानसभा के सत्रों में चाहे जितना हंगामा हो इन्हें विधानसभा सत्र का पूरा भत्ता मिलता है। विधानसभा के अधिकांश सत्र हंगामे के कारण अनिश्चित काल के लिए स्थगित होते है। विधानसभा सत्र का भत्ता पूरा मिलता है, हम सत्ता में हैं तो विपक्ष को बोलने नहीं देंगे हंगामा करके अनसुना कर देंगे, और विपक्ष में हैं तो भी इतना हंगामा करेंगे कि जब विधानसभा आगामी सत्र तक अनिश्चित काल के लिए स्थगित नहीं हो जाए विधायकों को आत्मशांति नहीं मिलती है। २३० विधायकों में कोई भी कंगाल नहीं है, सभी करोड़ों रुपया खर्च करके चुनाव जीता है, चुनाव आयोग को दिया गया खर्च का विवरण तो महज खानापूर्ति की औपचारिकता है।
ये सभी जग जाहिर है, अब विधायक चुनाव हारते हैं तब भी उन्हें भारी भरकम पेंशन जीवन भर मिलती रहेगी, यदि लोकसभा/राज्यसभा के सदस्य बन जाएं अथवा राज्यपाल/राष्ट्रपति/उपराष्ट्रपति बन जाएं या किसी निगम मंडल/आयोग के अध्यक्ष बन जाएं विधानसभा की पेंशन अंतिम सांस तक बंद नहीं होगी।
अभी इसमें वो ऊपरी धन सम्मिलित नहीं है जो राजनीति और सत्ता में रहकर कमाया जाता है। राजनीति भ्रष्टता से आय कमाने का सफेदपोश व्यवसाय है। यह बताना चाहिए कि इतनी भारी आय के बाद विधायकों का वेतन बढ़ाने की क्यों जरुरत पड़ी है। इसका जवाब तो इंसान और भगवान दोनों ही सत्ता से नहीं मांग सकते हैं।
कर्मचारियों को भी भरपूर वेतन मिलता है, बिना लिए दिए कोई भी काम नहीं होता है तो वो लिया दिया नीचे से ऊपर तक इन्हीं के पास से बफेट सिस्टम में जाता है, सबको पता है कितना खाना है और कितना खिलाना है। जो पकड़ में आ जाय वही भ्रष्ट है बाकी जो बचे हैं या बच निकलते हैं वो सब दूध के धुले हैं।
राजनीतिक दल के खजाने से या मुख्यमंत्री के निजी खजाने से यदि पैसा खर्च होता तो कभी ना तो विधायकों का वेतन बढ़ता न ही कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ता।
महंगाई से मध्यम वर्ग परेशान है। सत्ता के नुमाइंदे और सरकारी मातहत खुश हैं।
यह सब जनता से ही वसूला जाता है फिर भी नागरिक बेबस और चुप हैं क्योंकि इन्हें भारी बहुमत हमने ही दिया है देते आए हैं और देते रहेंगे क्योंकि भ्रष्टाता का कोई भी विकल्प नहीं है।