बेटियों पर बढ़ता भरोसा, पितृसत्तात्मक सोच में आ रहा बदलाव

सोनम लववंशी

हमारे समाज में महिलाओं ने दशकों तक अन्याय और पूर्वाग्रह को झेला है। महिलाओं को चारदीवारी में भी लंबे समय तक कैद रखा गया। धीरे-धीरे इस परिस्थिति में बदलाव आना शुरू हुआ। जिसके बाद मातृशक्ति ने लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए अपनी एक पहचान बना ली! आज वैश्विक परिदृश्य पर महिलाएं बेड़ियों को तोड़कर अपने सपनों और लक्ष्यों को साकार कर रही हैं। जिसमें हमारे देश की महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। सुखद पहलू यह है कि हमारे समाज की सोच और धारणा भी अब मातृ शक्ति के प्रति बदल रही है। आज महिलाओं को भरपूर अवसर उपलब्ध कराए जा रहें हैं। पहले स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव किया जाता था, महिलाओं को घर के कामों तक ही सीमित रखा जाता था, लेकिन अब ज़मीन से लेकर आसमां तक महिलाओं की पहुँच सुनिश्चित हो चुकी है। महिलाएं स्वयं अपनी क़िस्मत की लकीर खींच रही, तो पिता और पति भी अब मातृ शक्ति को पारिवारिक व्यवसाय में आगे बढ़ा रहे। जो समाज में बदलाव का संकेत है।

दुनिया के सबसे अमीर शख्स बने बर्नार्ड अरनॉल्ट ने अपनी एक कंपनी ‘क्रिश्चियन डिओर’ की जिम्मेदारी अपनी बेटी डेल्फिन को सौंपी है। जो आधुनिक समाज और मातृ शक्ति के सशक्तिकरण की दिशा में एक मिसाल है। बेटियों पर उद्योगपतियों का बढ़ता भरोसा इस बात का भी द्योतक है कि अब मानवीय संवेदना और मूल्यों में भी परिवर्तन आ रहा है। पहले पितृसत्तात्मक समाज की सोच यही रहती थी कि कुल का दीपक एक लड़का ही हो सकता है। परिवार का व्यापार बढाने का काम एक बेटा ही कर सकता है, लेकिन इस सोच में बदलाव वैश्विक स्तर पर देखने को मिल रहा है। जिसमें हमारा देश भी पीछे नहीं है। मुगल काल के पश्चात भले हमारे समाज में महिलाओं के हक़ में कटौती कर दी गई, लेकिन धीरे-धीरे संवैधानिक मूल्यों को तरज़ीह देते हुए महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है। भारत में भी वर्तमान समय में कई बड़े उद्योगपति हैं। जिन्होंने अपने व्यवसाय की जिम्मेदारी बेटियों को सौंपी है। एक रिपोर्ट की मानें तो वर्तमान समय में देश में 24 फीसदी पारिवारिक व्यवसाय महिलाएं चला रही हैं। जिसमें से 76 प्रतिशत पिता और 24 फीसदी महिलाएं पति का व्यवसाय संभाल रही हैं। जो मातृ शक्ति के आत्मनिर्भर बनने और सशक्तिकरण की नई परिभाषा पेश करती है।

देश में ईशा अंबानी एक ऐसा नाम है। जो 2014 से रिलायंस जियो और रिलायंस रिटेल की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। यह जिम्मेदारी उनके पिता मुकेश अंबानी ने दी थी। नोएल टाटा की बेटी लेह वर्ष भी 2022 से ताज होटल समूह की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। इसके अलावा आदी गोदरेज की बेटी निसाबा गोदरेज वर्ष 2017 से गोदरेज समूह की कार्यकारी अध्यक्ष हैं। शिव नाडार की बेटी रोशनी ने 2020 में एचसीएल के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल ली थी। ऐसे नामों की एक लंबी फेहरिस्त है। जिसमें विनिता गुप्ता, देशबंधु गुप्ता की बेटी भी शामिल हैं। विनिता गुप्ता 2013 से देश की तीसरी बड़ी दवाई कंपनी ल्युपिन के प्रमुख का दायित्व निभा रही हैं।

वही कुछ बेटियां ऐसी भी हैं। जिन्हें अपने पिता या पति के व्यवसाय में कोई रुचि नहीं दिखाई पड़ी तो उन्होंने स्वयं की लकीर खींचने का प्रयास किया। इसमें बोतलबंद पानी कंपनी ‘बिसलेरी’ के मालिक रमेश चौहान की बेटी जयंती और कुमार मंगलम की बेटी अनन्या शामिल हैं। बिसलेरी के मालिक रमेश चौहान की बेटी ने अपने पिता के व्यवसाय को आगे चलाने से इनकार कर दिया। जबकि कुमार मंगलम बिड़ला की बेटी अनन्या ने पिता का व्यवसाय चलाने के बजाय खुद की कंपनी माइक्रोफिन प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की। ये कुछ ऐसी मातृ शक्ति की कहानी है। जो आज हमारे समाज को आईना दिखाने का कार्य कर रही हैं। आज महिलाएं अपने बलबूते हर क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रहीं हैं। साथ ही पितृसत्तात्मक सोच में बदलाव भी देखने को मिल रहा है। लोकतांत्रिक सरकारें भी लगातार आधी आबादी को पूरे अधिकार उपलब्ध कराने का भरपूर प्रयास कर रही हैं। साथ ही हमारी रहनुमाई व्यवस्था ने महिला शक्ति को जन धन योजना से जोड़कर बड़ा आर्थिक समृद्धि का कदम उठाया। उसके बाद महिलाओं के लिए अनगिनत ऐसी योजनाएं क्रियान्वित की। जिससे समाज में भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कृत्य पर काबू पाया जा सके।

आज हमारे समाज में कन्या भ्रूण हत्या के मामलों में तेजी से गिरावट आई है। जो इस तरफ़ इशारा करती है कि समाज ने अब बेटा-बेटी में भेदभाव को दरकिनार करना शुरू कर दिया है। बीते दिनों की ही बात है। जब लालू यादव की बेटी ने अपने पिता के लिए किडनी दान की थी। ऐसे में देखें तो महिलाओं को जब भी अवसर मिला है। उन्होंने हर रूप में अपने उत्तरदायित्वों का सफ़ल निर्वहन किया है और यही वज़ह है कि महिलाएं-पुरुषों से आज किसी भी मामले में उन्नीस नहीं हैं! फिर चाहें वह बात व्यापार की हो या घर-परिवार और सरकार चलाने की।