सुशील दीक्षित विचित्र
बीबीसी की विविदास्पद डाक्यूमेंट्री को ले कर भारत में विपक्षी दलों और वाम संगठनों द्वारा खड़ा किया गया हंगामा यह साबित करने का पर्याप्त सबूत है कि कुछ लोग और संगठन अपने को सुप्रीम कोर्ट से भी बड़ा समझते हैं । इसके बहाने टुकड़े टुकड़े गैंग फिर सक्रिय हो गया है । दुर्भाग्यपूर्ण यह कि देश की छबि खराब करने वाली दुर्भावना से बनायी गयी डाक्यूमेंट्री के समर्थन में कांग्रेस भी शामिल है । कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी के पुत्र अनिल एंटोनी को इसीलिये स्तीफा देना पड़ा कि उन्होंने डाक्यूमेंट्री के विरोध और देश के समर्थन में ट्यूट किया था । इन दिनों राहुल गांधी का दावा है कि उन्होंने नफरत के बाजार में प्रेम की दूकान खोली है । अनिल एंटोनी का कहना है कि उन्होंने जैसे ही ट्यूट किया कि बीजेपी से सभी मतभेदों के बावजूद यह गलत चलन होगा कि भारतीय संस्थानों के विचारों से अधिक बीबीसी और ब्रिटेन के पूर्व विदेश मंत्री जैक स्ट्रॉ के विचारों को महत्व दिया जाये । ऐसा करने से भारत की सम्प्रभुता पर असर पड़ेगा । उन्होंने यह भी कहा की बीबीसी ब्रिटेन की सरकार का प्रायोजित चैनल है और भारत के प्रति पूर्वाग्रह से प्रभावित रहा है । जैक स्ट्रा ईराक पर हमले का मास्टर माइंड है । यह एक बहुत सधा हुआ और भारत की सम्प्रभुता से जुड़ा हुआ विचार है और इसका पार्टी में भी स्वागत होना चाहिए था । हुआ इसके विपरीत । प्रेम की दूकान से नफरत का सौदा बेचा जाने लगा । बकौल एंटोनी उनके पास नफरत और धमकी भरी कॉल आनें लगी । उन पर ट्यूट को हटाने का दबाब बनाने वाले वो लोग भी थे जो अपने को अभिव्यक्ति की आजादी का सब से बड़ा झंडावरदार बताते हैं ।
कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने उनके इस्तीफे पर जो प्रतिक्रया व्यक्त की उसमें कोई आश्चर्य नहीं । एंटोनी के इस्तीफे में चाटुकारी और चमचा मंडली का भी जिक्र किया है । रमेश की टिप्पणी उनके आरोप पर खरी उतरती है । उनका कथन है कि एक ही राज्य के दो मुख्यमंत्रियों के दो बेटों में से एक राष्ट्र को एकजुट करने के लिए भारत जोड़ो यात्रा में ज्यादातर नंगे पांव बिना थके चल रहा है और दूसरा पार्टी और यात्रा के प्रति अपने कर्तव्य को नजरंदाज कर धूप में अपने दिन का लुत्फ़ ले रहा है । टुकड़े टुकड़े गैंग के लीडर , देशद्रोही के आरोप के जमानती कन्हैया को कंधे पर बैठाल कर राष्ट्र को एकजुट करने की यात्रा का पाखंड कांग्रेस ही कर सकती है । देश की सम्प्रभुता पर प्रहार करने वालों का समर्थन किसी भी तरह देशहित नहीं माना जा सकता । भारत की सर्वोच्च अदालत ने बरसों गुजरात दंगों की अपनी निगरानी में जांच कराई थी । इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि पूरा मामला मोदी और गुजरात को बदनाम करने के लिए गढ़ा गया है और इसके पीछे तीस्ता सीतलबाड़ा का दिमाग है । फैसले के बाद कोर्ट के ही आदेश पर शीतलबाड़ा को गिरफ्तार कर लिया था और इन दिनों वह जमानत पर हैं ।
एक जमात मानती है कि यदि उसने कहा कि मोदी मौत के सौदागर तो इसके बाद किसी कोर्ट के फैसले का कोई महत्व नहीं रह जाता । इस जमात में वह कांग्रेस भी शामिल है जिसके का गुजरात का सारा शासनकाल भयानक ही नहीं महीनों चले वाले दंगों से भरा हुआ है । छोटे मोटे त्योहारों की तरह होने वाले सैकड़ों दंगों की बात जाने भी दें तब भी 1969 से ले कर 1992 के 23 साल के अंतराल में पांच बहुत बड़े दंगे हुए जिनमें हजारों लोग मारे गए । 1969 में गुजरात में कांग्रेस की बहुमत वाली सरकार थी । मुख्यमंत्री थे हितेंद्र भाई देसाई । अहमदाबाद में दंगा भड़का जिसने बड़ोदरा को भी अपनी चपेट में ले लिया । सरकारी रिकार्ड के ही अनुसार 550 से अधिक साम्प्रदायिक घटनाएं दर्ज की गयी । ऑफ़ रिकार्ड अनुमान है कि इन दंगों में एक हजार से भी अधिक लोग मारे गए जिनमें पांच हजार मुसलमान बताये जाते हैं ।
इन दंगों के 16 साल बाद 1985 में फिर दंगे हुए । फरवरी 1985 को शुरू हुए दंगे अक्टूबर 1986 तक चलते रहे । 21 महीनें चलें इन दंगों के समय भी हितेंद्र भाई देसाई के नेतृत्व में कांग्रेस की ही सरकार थी । 1987 , 1990 , 1992 में कांग्रेस के चिमन भाई पटेल पटेल मुख्यमंत्री थे । इस दौरान फिर दंगे हुए । यह दंगे भी भारत के दंगों के इतिहास में सबसे भीषण दंगों में गिने जाते है । इन दंगों में हजारों लोग मारे गए , अरबों की संपत्ति फूंक दी गयी । इन दंगों को रोकने के लिए कांग्रेस ने जो कदम उठाये वे इतने नाकाफी थे कि उनका होना न होना बराबर था । इन दंगों पर कभी न लिवरल समूह ने शोर मचाया और न ही प्रेम का सन्देश देने वाली कांग्रेस ने । 2002 के गुजरात दंगों से पहले हुए गोधरा कांड के बाद सारे धर्मनिरपेक्ष खेमों , लिवरल समूह और विशेष एजेंडा चलाने वाले बुद्धिजीवियों में सन्नाटा फ़ैल गया था । गुजरात दंगों पर कुन्तलों कागज काला कर डालने वाले बुद्धिजीवी समूह तो आज भी उस घटना पर ऐसे लीपापोती करता है मानों पांच दर्जन आदमीय बच्चों और महिलाओं ने ट्रेन का डिब्बा बंद कर आत्महत्या कर ली हो । रेलमंत्री रहे लालू प्रसाद ने तो एक ऐसी ही जांच रिपोर्ट लिखाई भी थी ।
इन सब के बारे में इंटनेशनल मीडिया अभी ही चुप्पी साधे हैं लेकिन मोदी और उनके बहाने हिन्दुस्तान की छवि खराब करने के लिए हजारों कुलाबे भिड़ाने में अभी भी लगा है । बीबीसी की इस किलस के पीछे उसकी ईर्ष्या और खुद को श्रेष्ठ साबित करने का खोखला दम्भ है । वर्तमान में इंग्लैण्ड को पछाड़ कर भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है । अर्थशास्त्रियों का एक मत है कि अगर भारत के विकास की यही रफ़्तार रही तो अगले पांच वर्षो में वह तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था हो जायेगा । यह ऐसे समय में लाया भी गया है जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषी शुनक भारतवंशी हैं और इन दिनों भारत से व्यापारिक संबंध बढ़ाने के लिए को समझौता करने वाले हैं ।
यह बात न औपनिवेशिक मानसिकता वाले बीबीसी को सहन हो रही है और न लेवर पार्टी के पाकिस्तानी मूल के सांसदों को । ब्रिटेन में रहने वाले नागरिकों का तो साफ़ साफ़ कहना है कि हिन्दू और भारतीय मूल एक होने के कारण लेवर पार्टी और बीबीसी जैसे संस्थान डाक्यूमेंट्री के बहाने शुनक को निशाना बना रहे है और इसके पीछे उनकी योजना शुनक सरकार को अस्थिर करने की है । वहां के भारतीय निवासी बीबीसी की सोंच पर भी यह कह कर सवाल उठा रहे हैं कि कुख्यात आतंकी संगठन आईएसआईएस के आतंकवादी की पत्नी शमीमा बेगम का इंटरव्यू लिया जिसमें आतंकीसंगठन को बहुत अच्छा साबित करने की कोशिश की गयी । बाद में यही शमीमा जान बचाने के लिए ब्रिटेन भाग आईं ।
ब्रिटेन में डाक्यूमेंट्री के विरोध को इससे समझा जा सकता है कि अब तक बीबीसी के खिलाफ दर्जनों याचिकाएं लगाई जा चुकी है । लोग सड़कों पर उतरने की तैयारी कर सकते हैं और बीबीसी के सब्सक्रिप्शन को भी कैंसिल करवा रहे हैं । । ब्रिटेन की संसद में लेवर पार्टी द्वारा मुद्दा उठाये जाने पर प्रधानमंत्री सुनक ने स्पष्ट कहा कि वह उस चरित्र चित्रण से सहमत नहीं हैं जो मोदी को ले कर प्रस्तुत किया गया है । हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के प्रमुख सदस्य लॉर्ड रामी रेंजर ने बीबीसी के महानिदेशक टिम डेवी को पत्र भेज कर अपना विरोध दर्ज कराया । पत्र में उन्होंने लिखा कि 2002 के दंगन में भारत के प्रधानमंत्री मोदी को फंसाने वाली बीबीसी द्वारा निर्मित वृत्तचित्र से चकित हूँ । निर्माता ने इस प्रकार असंवेदनशील फिल्म का निर्माण करके सामान्य ज्ञान और निर्णय की कमी दिखाई है । दुनिया के अन्य हिस्सों में भी इसको ले कर बीबीसी की निंदा हो रही है ।
भारत के विदेश मंत्रालय ने भी इस की कड़ी निंदा की है । सरकार ने भारत में डाक्यूमेंट्री वैन कर दी है लेकिन इस के साथ ही टुकड़े टुकड़े गैंग और उसके राजनीतिक समर्थक भी सक्रिय हो गए । वैन के बाबजूद इसकी स्क्रीनिंग पर उतर आये । ख़ास कर लेफ्ट का छात्र संघ इसका समर्थन कर रहा है । कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने सेंसर करने के खिलाफ सरकार पर सवाल उठाये । आज जो लोग बीबीसी की डाक्यूमेंट्री के समर्थन में खड़े हैं वहीँ कल द कश्मीर फाइल्स के खिलाफ खड़े थे । आज जो कांग्रेस वैन को सेंसर बता रही है कल यही कांग्रेस कश्मीर फाल्स को वैन करने की मांग कर रही थी । उनके प्रवक्ता सुरजेवाला ने कहा था कि हिंदुस्तान फिल्मों से नहीं चलेगा । आज शशी थरूर के नेतृत्व में केरल कांग्रेस डाक्यूमेंट्री दिखाना चाहती है कल वही कश्मीर फाइल्स को झूठ का पुलिंदा बता कर उसके खिलाफ खड़ी थी । छत्तीसगढ़ में जिन थियटरों में फिल्म चलनी थी उनके मालिकों को कांग्रेसियों ने बुरे परिणाम की धमकी दी । राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी तब फिल्म से आपत्ति थी । उन्होंने कहा कि अतीत की पर टिप्पणी करना ठीक नहीं है । कश्मीर फाइल्स साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ता है ।
गहलोत को यह भी बताना चाहिए कि बीबीसी क्या भविष्य की बात कहती है या उससे साम्प्रदायिक सद्भाव की वृद्धि होती है । तृणमूल कांग्रेस भी तब कश्मीर फाइल्स के खिलाफ थी और आरोप लगाती थी कि फिल्म मुसलमानों को बदनाम करने के लिए बनायी गयी है । अब वह डाक्यूमेंट्री की तारीफ कर रही है । अब उसे नहीं लगता कि यह देश और संप्रभु राष्ट्र के चुने हुए प्रधानमंत्री पर की छवि खराब करने के लिए दुर्भावना से इस का निर्माण किया गया जबकि सुप्रीम कोर्ट इस पर अपना फैसला दे चुकी है ।
कांग्रेस , लेफ्ट ,लिवरल दिखा कर अपना एजेंडा चलाने वाले बुद्धिजीवी यह समझते हैं कि बीबीसी जैसी घटिया सोंच वालों की घटिया डाक्यूमेंट्री मोदी या भाजपा को हानि पहुंचा पाएगी तो यही कहा जायेगा कि वे भारी मुगालते में हैं । वे भूल जाते हैं कि गुजरात दंगों के बाद चले मोदी विरोधी कैम्पेन को आधार शिला बना कर ही भाजपा ने मोदी की राष्ट्रीय छवि गढ़ी । लोगों को यह समझने में सफल रही कि जिस गुजरात में हर साल महीनों और कभी कभी सालों चलने वाले दंगे होते थे उसमे मोदी के कार्यकाल में एक भी दंगा नहीं हुआ ।
जैसे हालात विपक्ष ख़ास कर कांग्रेस और लेफ्ट पैदा करना चाहता है उससे लगता है कि वह 2024 में मोदी के खिलाफ डाक्यूमेंट्री को मुद्दा बना सकता है । यदि वह ऐसा करता है तो यह मोदी और भाजपा के लिए मनमानी मुराद होगी । यह भाजपा की भी और मोदी शाह की जोड़ी की भी मनमाफिक पिच है । इस पर वह गुगली और बाउंसर फेंकने में भी माहिर है और चौके छक्के मारने में भी माहिर है । कांग्रेस के लिए तो यह मुद्दा वाटरलू साबित हो सकता है । मोदी के प्रयास में अभी तक कांग्रेस का हानि ही हुई है । यदि वह हाशिये पर है तो इसलिए कि उनका थिंक टैंक मोदी को व्यक्तिगत टार्गेट करता है और मोदी उसे हवा दे कर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में सक्षम हो जाते हैं और आगे भी रहेंगे ।
इसलिए कांग्रेस और लेफ्ट मोदी को बदनाम करने की आत्मघाती राजनीति को जितना आगे बढ़ायेगी मोदी उन्हें सत्ता से उतनी ही दूर धकेलते रहेंगे । धारा 370 की समाप्ति , तीन तलाक , राममंदिर बनबाने के बाद वैसे भी भाजपा और मोदी की छवि बहु संख्यकों में और भी मजबूत हुई है इसलिए कोई डाक्यूमेंट्री और कोई भी धर्मनिरपेक्ष नेता के षड्यंत्र उनके लिए ही घातक साबित होंगे । इससे भाजपा को ध्रुवीकरण के लिए फिर हथियार मिल जायेगा और इसका सामना करना थकीहारी , छिन्नभिन्न , दिशाहीन कांग्रेस और हमेशा देश विरोधियों के साथ खड़ा होने वाला लिवरल का पाखंड करता लेफ्ट के बूते से बाहर है । बीबीसी की डाक्यूमेंट्री का समर्थन 2024 में उसे और भी बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं