गोविन्द ठाकुर
राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस मजबूत हुई है। हालिया सर्वे में कांग्रेस की ग्राफ को बढता हुआ दिखाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में जीत मिली है गुजरात में हार हुई और सभी को मालूम था कि यहां बीजेपी को फिलहाल कांग्रेस नहीं हरा सकती है, मगर संगठन मजबूती को ओर बढ रही है। पूरे देश में राहुल और कांग्रेस की चर्चा जोरों पर है। जो लोग कांग्रेस और राहुल को लेकर मजाक उड़ा रहे थे वे आज कह रहे हैं कि कांग्रेस अब राजनीति करने उतरी है और अगर ऐसा ही रहा तो राहुल 2024 में मोदी के सामने कमर कस सकते हैं। नि:संदेह बीजेपी और खुद प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह इस यात्रा को हलके में नहीं ले रहे हैं। इसका प्रमाण बीजेपी की कार्यकारिणी में मोदी का कहना कि अल्पसंख्यकों पर बेवजह निशाना नहीं बनाना चाहिए और ना ही हर फिल्म पर टिप्पणी करनी चाहिए। कांग्रेस के इस परिवर्तन से बीजेपी परेशान होने लगी है। करीब दसियों राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने की राजनीति करती है जिसमें कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतिशगढ, हिमाचल प्रदेश, असम, हरियाणा, गुजरात, उतराखंड जैसे कई राज्य हैं। तो बिहार, महाराष्टृ, यूपी, तमिलनाडू, झारखंड और पूर्वोत्तर के राज्यों में सहियोगियों को लेकर बीजेपी को धकिया सकती है।मानकर चलें तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच करीब 290 सीटों पर सीधे की लड़ाई होती है। अभी तक कांग्रेस कमजोर रही है तो बीजेपी लोकसभा के चुनाव में आसानी पटकनी दे दे रही है मगर राहुल की यात्रा और उससे जुड़ते लोग को देखकर कांग्रेस तो उत्साहित है ही मगर सरकार विरोधी मतों को लगता है कि उसे कांग्रेस के रुप में फिर से विकल्प मिल रही है। बीजेपी को लगता है कि अगर कांग्रेस इन राज्यों में 5- 10 करके अगर सीटें निकाल ले रही है तो उसे 2024 के आमसभा चुनाव में भारी नुकसान होगा। जानकारो की बात करे तो उनका कहना है कि इन राज्यों में कांग्रेस अगर 40-50 सीटें निकाल लेती है तो बीजेपी 303 सीटें से सीधे 250 के पास गिर सकती है। फिर राज्यों में क्षेत्रिय पार्टियां हैं जो कांग्रेस से अधिक मजबूत है जैसे बंगाल में ममता बनर्जी, बिहार में राजद जदयू और कांग्रेस का गठबंधन,यूपी में सपा रालोद और कुछ और पार्टियां। महाराष्टृ में अघारी मजबूत हो रहा है। फिर कोई भी अनुमान निकाल सकता है कि चुनाव का रुझान क्या है। यही वह कारण है जिससे बीजेपी परेशान हो रही है। अभी तक बीजेपी क्षेत्रीय दलों से हार कर भी वह कांग्रेस को पटखनी दे रही थी मगर जब कांग्रेस मजबूत हो रही है तो फिर क्या होगा।
लेकिन मजे कि बात यह है की बीजेपी से अधिक परेशान कांग्रेस के संभावित क्षत्रीय दल ही हो रही है। जहां उसे खुश होना चाहिए तो वह कांग्रेस के बढ रहे ग्राफ से परेशान हैं। अब तक की राजनीति को देखे तो सहियोगी दल कांग्रेस को अपने शर्तों पर जगह दे रही थी। सभी दलों के सर्वे -सर्बा खुद को प्रधानमंत्री पद के दावेदार और विपक्ष के नेता को तौर पर ही पेश कर रहे थे मगर राहुल के यात्रा ने उन्हें बगल झांकने पर मजबूर कर दिया है। उन्हें लग रहा हैकि गठबंधन में अब उनेहें कांग्रेस को अधिक सीटे देने पर मजबूर होना पर सकता है, पहले कुछ सीटें देकर टरका दिया लेकिन मजबूत कांग्रेस को ऐसा नहीं कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस नें 23 विपक्षी दलों को कश्मीर रैली में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजी थी मगर उसमें कुछ छोटे आठ दल ही शामिल हुए थे जो बताता है कि वह कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार नहीं करना चाहते हैं। जो फिलहाल सरकार में शामिल भी हैं राजद जदयू वह भी कश्मीर नहीं आये। सपाऔर सीपीएम को भी न्यौता दिया गया था मगर वे केसी राव की खम्म्म तेलंगाना रैली में गये मगर कांग्रेस और राहुल की रैली से दूरी रखी। मतलब साफ है वह भी बीजेपी की तरह कांग्रेस को कमजोर देखना चाहती है चाहे मोदी और बीजेपी क्यों नहीं तीसरी बार सरकार बनाने में सफल हो जाये।
फिलहाल कांग्रेस की राजनीति और चुनाव नीति सही चल रही है राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि उनके सहियोगियों में थोड़ी दिक्कत है जिसे हल कर लिया जायेगा। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मनना है कि चुनावी गठबंधन के लिए अलग से पहल की जायेगी लेकिन कांग्रेस ही विपक्ष का मुख्य आधार रहेगा। मतलब कांग्रेस के ही नेतृत्व और राहुल गांधी के चेहरे पर चुनाव होगा। चाहे गठबंधन चुनाव से पहले हो या चुनाव के बाद।