संदीप ठाकुर
तुर्की में आए भूकंप में गगनचुंबी इमारतों के जमींदोज हाे जाने और जान
माल के हुए नुकसान ने भारत के बड़े छोटे शहरों के मल्टी स्टोरी भवन में
रहने वालों में भय फैला दिया है कि यदि यहां
वैसा भूकंप आया तो क्या होगा ? देश के ऊंची इमारतों में रहने वाले लोग
टेंशन में हैं। उनके मन में बार बार यह सवाल उठ रहा है कि वे जिन 20-30
मंजिल के अपार्टमेंट में रहते हैं, वे 7.8 का जोरदार झटके झेल पाएंगे ?
आज सुबह तुर्की-सीरिया में आए शक्तिशाली भूकंप ने 1300 से ज्यादा लोगों
की जानें ले ली। 3000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इस भूकंप की तीव्रता
7.8 थी। आमतौर पर 6 से ज्यादा तीव्रता का भूकंप तबाही लाता है। इस बीच
भारत ने हर संभव सहायता प्रदान करने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के निर्देश पर उनके प्रधान सचिव डॉ. पी. के. मिश्रा ने राहत
उपायों पर चर्चा करने के लिए साउथ ब्लॉक में एक बैठक की। बैठक में निर्णय
लिया गया कि तुर्की गणराज्य की सरकार के समन्वय से राहत सामग्री के साथ
एनडीआरएफ और चिकित्सा दलों के खोज और बचाव दलों को तुरंत वहां भेजा
जाएगा। इस उच्चस्तरीय बैठक में कैबिनेट सचिव, गृह मंत्रालय, एनडीएमए,
एनडीआरएफ, रक्षा, विदेश मंत्रालय, नागरिक उड्डयन और स्वास्थ्य एवं परिवार
कल्याण मंत्रालयों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
जब भी धरती कांपती है तो ऊंची इमारतों में रहने वाले लोगों का दिल भी
तेजी से धड़कने लगता है। गाहे-बगाहे यह भी खबर आती है कि दिल्ली में बड़े
भूकंप का खतरा बना हुआ है। पिछले महीने भूकंप आया था। दो साल में कई बार
भूकंप आ चुका है। दरअसल, दिल्ली-एनसीआर की लोकेशन के हिसाब से आशंका जताई
जाती है कि यहां भविष्य में 7 की तीव्रता का भूकंप आ सकता है। भूविज्ञान
मंत्रालय की रिपोर्ट है कि यदि इन इलाकों में 6 से ज्यादा की तीव्रता का
भूकंप आया तो भारी नुकसान हो सकता है।चिंता की बात यह है कि दिल्ली
एनसीआर की आधी इमारतें तेज झटका झेल पाने की स्थिति में नहीं हैं। कारण
बिल्डर के बनाए फ्लैट्स। पुराने जमाने में लोग खुद घर बनाते थे। लेकिन
भ्रष्टाचार के दौर में बिल्डर घर बनाकर देता है और लोगों को पता नहीं
रहता कि इस इमारत की क्वालिटी क्या है। भूकंप के लिहाज से राजधानी व इसके
आसपास का क्षेत्र सिस्मिक जोन-4 में पड़ता है यानी यह अतिसंवेदनशील
क्षेत्र है। इस नाते दिल्ली-एनसीआर के लोग हाई रिस्क जोन में हैं। 8 के
करीब की तीव्रता का भूकंप आया तो कुछ भी कहा नहीं जा सकता है।
दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, मुंबई समेत देश के तमाम शहरों में
आजकल ऊंची इमारतों में बड़ी आबादी रहती है। भूकंप के दौरान कोई भी
हाईराइज इमारत या घर कितना प्रभावित होगा यह कई चीजों पर निर्भर करता है।
जहां तक भूकंप में हाईराइज फ्लैटों की बात है तो ये कितने सुरक्षित हैं,
कहना काफी मुश्किल है क्योंकि भारत में फ्लैटों को आए हुए अभी लंबा समय
नहीं बीता है। जबकि जमीन पर खड़े हुए 300-400 साल पुराने कम ऊंचाई वाले
मकान आज भी सुरक्षित बने हुए हैं। फ्लैट तकनीक यहां के लिए नई है, लेकिन
मरम्मत में लापरवाही, निर्माण में इस्तेमाल होने वाली खराब किस्म की
सामग्री और री सर्टिफिकेशन या गाइडलाइंस का पूरी तरह पालन न होने से ये
भूकंप के दौरान खतरा पैदा कर सकते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली
एनसीआर 3 सक्रिय फॉल्ट लाइन पर स्थित है। जबकि गुरुग्राम सात सक्रिय
फॉल्टलाइन पर मौजूद होने के चलते दिल्ली-एनसीआर के सबसे खतरनाक शहर में
शामिल है। डीडीए के टाउन प्लानर रहे एके जैन बताते हैं कि सभी एजेंसियों
के आंकड़ों पर गौर करने से पता चलता है कि मोटे तौर पर 80 फीसदी इमारतें
जोन-4 के झटके को सहने में सक्षम नहीं हैं। अगर भूकंप का केंद्र
दिल्ली-एनीआर हुआ और तीव्रता भी ज्यादा रही तो दिल्ली की हालत 2001 के
गुजरात के भूकंप सरीखी हो सकती है। भुज भी जोन-4 में ही आता है।