नवीन गौतम
इसी वर्ष 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों खासकर सत्तारूढ़ दलों ने महंगाई, बेरोजगारी और विकास के बजाय धर्म और जाति का एजेंडा फिर छेड़ दिया है।
ब्राह्मणों की लगातार राजनीतिक उपेक्षा और जेएनयू में ब्राह्मणों के खिलाफ पोस्टर बाजी के बाद अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की ब्राह्मणों के खिलाफ टिप्पणी निश्चित तौर पर चिंताजनक है। उन्होंने जिस तरह से ब्राह्मणों के खिलाफ बयानबाजी कर समाज को बांटने का काम किया है उससे लगता है कि मोहन भागवत अब खुद वर्ष 2024 में भाजपा को सत्तारूढ़ कराने के लिए ब्राह्मणों के खिलाफ ही मोर्चा खोल बैठे हैं । इसके पीछे उनकी रणनीति साफ नजर आ रही है कि ब्राह्मण भले ही भाजपा के साथ से हट जाए लेकिन ओबीसी और एससी-एसटी के सहारे फिर से भाजपा को सत्तारूढ़ कराया जा सकता है। मोहन भागवत की टिप्पणी उन ब्राह्मणों के लिए भी एक सोचने का विषय है जो भाजपा का गुणगान करते थकते नहीं है या अंधभक्त बने हुए है।
एक बड़ा सवाल है अगर जाति ब्राह्मणों ने बनाई तो फिर सरकार जाति प्रमाण पत्र क्यों बनवा रही है ? क्यों नहीं मोहन भागवत अपनी मोदी सरकार से जाति प्रमाण पत्र रुकवाने का काम करवा देते ? ब्राह्मणों की आलोचना करने वाले मोहन भागवत में हिम्मत है कि जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था को खत्म करवाने के लिए मोदी सरकार पर दबाव बना दें ?
मोहन भागवत जैसे लोगों की सोच के चलते ब्राह्मण भी समझ रहा है कि वह पिछले कुछ सालों से लगातार हाशिए पर किया जाता रहा है। उसकी वोट तो सभी राजनीतिक दलों को चाहिए लेकिन जब उसके अधिकारों की बात आती है तो फिर कोई भी राजनीतिक दल ईमानदारी के साथ खड़ा नजर नहीं आता। हाशिए पर ब्राह्मण समाज किस तरह से है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है देश में एक वक्त था जब प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी ब्राह्मण हुआ करते थे। मगर आज की स्थिति देखें तो अधिकांश राज्यों के मुख्यमंत्री पदों से ब्राह्मणों का सफाया हो चुका है, यहां तक कि लोकसभा और राज्यसभा में तो ब्राह्मण सांसदों की संख्या लगातार घटी है, राज्यों की विधानसभा में भी ऐसे ही हालात हैं।
बात केवल राजनीति में उसकी हिस्सेदारी की ही नहीं है, राजनीतिक क्षेत्र में तो लगातार ब्राह्मण समाज के लोग पिछड़ रहे हैं। अन्य क्षेत्रों में भी ब्राह्मण लगातार निचले पायदान की ओर खिसक रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में है उदाहरण के तौर पर देखें तो इस समाज के बच्चे 90% से भी अधिक अंक लाने के बाद अच्छी यूनिवर्सिटी और कॉलेज दाखिला में नहीं मिल पाता है जबकि अन्य वर्ग के बच्चों को कम नंबर होने के बावजूद आरक्षण के चलते आसानी से दाखिले मिल जाते हैं। अब सवाल उठता है कि ब्राह्मण परिवार में अगर इनका जन्म हुआ तो इन बच्चों का अपराध क्या है ? राजनीति के क्षेत्र से वंचित किया जा रहे हैं, शिक्षा के क्षेत्र से वंचित किए जा रहे हैं और यहां तक कि रोजगार के क्षेत्र में भी लगातार ब्राह्मण समाज बिछड़ता जा रहा है। नौकरियों से लेकर पदोन्नति तक ब्राह्मण समाज लगातार हाशिए पर किया जा रहा है। बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है ब्राह्मणों के बिना पूजा पाठ संपन्न नहीं होता था लेकिन अब आज देश में बहुत से ऐसे मंदिर हैं जहां ब्राह्मणों को पुजारी नहीं रखा जाता मंदिर बहुत से कमर्शियल स्थान बन गए इसलिए ब्राह्मणों को वहां भी साइड लाइन किया जाने लगा।
राजनीतिक दल अपने-अपने संगठनों में ब्राह्मणों को अहम जिम्मेदारी तो देते नहीं है लेकिन अन्य वर्ग के लिए वह अहम पद देने के साथ-साथ प्रकोष्ठ मोर्चा आदि का भी गठन कर रहे हैं।
वैसे इस स्थिति के लिए इसमें जाति आधारित राजनीति तो है ही खुद ब्राह्मण समाज का एक वर्ग भी जिम्मेदार है, जो उच्च पदों पर पहुंचा लेकिन उच्च पदों पर पहुंचने के बाद उसने अपने समाज के कल्याण के लिए उनके उत्थान के लिए कोई ध्यान नहीं दिया। समाज में कुछ तरह की कुरीतियां को दूर करने की तरफ समाज के मठाधीशों ने भी ध्यान नहीं दिया। अपनी कुर्सी पाने की खातिर उन्होंने ब्राह्मण समाज के वोटों का सौदा किया लेकिन जैसे ही उच्च पद पर ब्राह्मण नेता पहुंचा तो उसने समाज को साइडलाइन करना शुरू कर दिया। ब्राह्मणों के होने वाले अधिकांश सम्मेलनों में गंभीरता के साथ ब्राह्मण समाज की शायद ही समस्या उठती हो, ज्यादातर सम्मेलन औपचारिकता बनकर रह गए। इन सम्मेलनों में जाना भी बहुत से लोग अपनी तोहीन ही नहीं समझने लगे।
इन सम्मेलनों में आने वाले कई ब्राह्मण नेता भी लंबा चौड़ा प्रवचन देते हैं और अंत में यह कह कर चले जाते हैं ब्राह्मण मांगने वाला नहीं देने वाला है। उनकी इसी सोच के चलते आज ब्राह्मण समाज हाशिए पर है यह नेता शायद भूल जाते हैं उस कहावत को जो वर्षों से चली आ रही है कि बच्चा जब तक रोता नहीं है तो मां भी दूध नहीं पिलाते हैं। इसलिए अपना हक अगर ना मिले तो छीनने में भी बुराई नहीं है।
भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री भगवान पाराशर इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार कर कहते हैं कि अब वक्त किसी और को बनाने का नही बल्कि ज्यादा से ज्यादा अहम पदों पर अपने लोगों को पहुंचाने का है क्योंकि आज ज्यादातर राजनीतिक दल हमारा वोट तो चाहते हैं लेकिन संख्या के अनुरूप बराबर भागीदारी देने में हमेशा कतराते हैं। मोहन भागवत की आलोचना करते हुए पाराशर कह रहे हैं कि मोहन भागवत यह ना भूलें कि देश के विकास में ब्राह्मणों का अहम योगदान रहा है। ब्राह्मण समाज को तोड़ने नहीं जोड़ने का काम करता है और जिस भी राजनीतिक दल के साथ खड़ा हुआ उसकी सरकार बनी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ)