गगन की छटा को धूमिल करता “स्काई ग्लो”

शिशिर शुक्ला

कदाचित ऐसी कल्पना कभी नहीं की गई होगी कि ऊर्जा का सर्वप्रमुख रूप अर्थात प्रकाश किसी दिन पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनेगा। किंतु आज के समय में हमें इस सत्य को स्वीकारना होगा। प्रदूषण के विविध सर्वविदित रूपों के अतिरिक्त “प्रकाश प्रदूषण” अथवा “फोटो पॉल्यूशन” भी धीरे-धीरे वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय बनने की ओर अग्रसर है। कटुसत्य यह है कि इसके पीछे भी कहीं न कहीं मानव की भावनाशून्यता, प्रकृति के साथ उसका अनियंत्रित खिलवाड़ एवं कृत्रिमता की ओर तेजी से बढ़ते कदम ही उत्तरदायी हैं। प्रकाश प्रदूषण वस्तुतः आवश्यकता से अधिक कृत्रिम प्रकाश की वातावरण में उपस्थिति है। एक सर्वे के अनुसार पर्वतीय क्षेत्रों में पिछले दस वर्षों में पांच से दस प्रतिशत तारों के देखने में कमी आई है। महानगरों की स्थिति यह है कि मानो रात्रि के समय में आकाश से तारों का दृश्य धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। एक समय ऐसा था जब रात्रि के समय स्वच्छ आकाश में एक धवल पट्टी (आकाशगंगा) के दर्शन नंगी आंखों से किए जा सकते थे, किंतु आज उस पर प्रदूषण का आवरण आ जाने से वह सुंदर दृश्य दुर्लभ हो गया है।

प्रकाश प्रदूषण स्वयं में एक व्यापक अर्थ को समाहित करने वाला संकट है, किंतु इसके मूल में कृत्रिम प्रकाश की आवश्यकता से अधिक उपस्थिति ही शामिल है। चकाचौंध (अत्यधिक चमक), प्रकाश अव्यवस्था, प्रकाश अतिचार ( जहां प्रकाश की जरूरत नहीं है वहां भी प्रकाश का गिरना), स्काई ग्लो (आकाश प्रदीप्ति) इत्यादि प्रकाश प्रदूषण के विविध रूप हैं। गौरतलब है कि कुछ दशकों पहले माहौल कुछ ऐसा था कि घरों में एक भी अतिरिक्त लाइट जलते रहने पर सभी का ध्यान उसको बंद करने की तरफ चला जाता था। पढ़ाई-लिखाई एवं रात्रि के समय आवश्यक कार्यो के लिए लालटेन का प्रयोग किया जाता था। संभवतः उस समय हम प्रकाश की अहमियत से अच्छी तरह वाकिफ थे। आज का दौर तकनीकी एवं विज्ञान का दौर है। प्रौद्योगिकी के विकास ने मनुष्य को अपनी सक्रियता को बढ़ाने के साथ-साथ प्रकृति के साथ अनावश्यक दखल करने की क्षमता भी प्रदान कर दी है। औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की हवा नित्य प्रति तीव्रतर गति को पकड़ रही है। नतीजतन कृत्रिम प्रकाश का प्रयोग दिन-ब-दिन आवश्यकता से अधिक के स्तर को स्पर्श कर रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महानगरों के कृत्रिम प्रकाश की तीव्रता के आगे आकाश में विद्यमान तारों का नैसर्गिक प्रकाश भी धूमिल पड़ता जा रहा है। जिस प्रकार प्रदूषण के अन्य रूप पर्यावरण के लिए घातक हैं, ठीक उसी प्रकार प्रकाश प्रदूषण भी अनेक प्रकार से हमें क्षति पहुंचाता है। मानव एवं जीव जंतु (विशेषकर रात्रिचर जीव) अपने सभी क्रियाकलापों हेतु जैविक घड़ी अर्थात दिन व रात के चक्र पर निर्भर हैं। रात्रिचर जीवों के लिए कृत्रिम प्रकाश बहुत घातक है क्योंकि तेज प्रकाश आँखों मे पड़ने से वे अपने मार्ग से भटक जाते हैं। अत्यधिक तीव्रता के कारण मानव स्वास्थ्य पर भी इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही प्रकाश प्रदूषण पारिस्थितिकीय संतुलन को बिगाड़ने के लिए भी उत्तरदायी है।

पृथ्वी सौरमंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसे प्रकृति ने अपने अनुपम संसाधनों का उपहार दिया है। तकनीकी को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करके मानव के द्वारा कहीं न कहीं प्रकृति का अनियंत्रित दोहन करके उस पर अत्याचार किया जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप प्रकाश प्रदूषण का ग्राफ दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। निश्चित ही हमें इसके निवारण हेतु ठोस कदम उठाने चाहिए, जिस हेतु सर्वप्रथम तो यह आवश्यक है कि प्रकाश का प्रयोग उतना ही किया जाना चाहिए जितनी कि जरूरत हो। इसके अतिरिक्त उत्सर्जित प्रकाश को भी यथासंभव नियंत्रित करने का प्रयास किया जाना चाहिए ताकि वातावरण में विकिरित कृत्रिम प्रकाश की मात्रा न्यूनतम रहे। घरों एवं इमारतों पर उतनी ही लाइट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जितने की आवश्यकता हो। साज सज्जा के नाम पर अनावश्यक रूप से प्रकाश का उत्सर्जन हर हालत में बंद किया जाना चाहिए। डार्क स्काई मूवमेंट जैसी पहल प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक परिवार एवं प्रत्येक औद्योगिक इकाई के स्तर पर की जानी चाहिए, ताकि प्रकाश प्रदूषण का खतरा टलने के साथ-साथ ऊर्जा की भी पर्याप्त बचत की जा सके। इंटरनेशनल डार्क स्काई एसोसिएशन के द्वारा प्रकाश प्रदूषण को न्यूनतम स्तर पर पहुंचाने एवं ऊर्जा की बचत सुनिश्चित करने हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण दिशा निर्देश लागू किए गए हैं। इनके अनुसार प्रकाश का प्रयोग उचित समय पर, उचित स्थान पर एवं उचित मात्रा में ही किया जाना चाहिए। समय, स्थान एवं मात्रा की सीमा को पार करने का सीधा सा अर्थ है- प्रकाश प्रदूषण को अंजाम देना। जहां तक संभव हो न्यूनतम विद्युत क्षमता के प्रकाश उपकरणों का प्रयोग किया जाना चाहिए ताकि ऊर्जा की बचत की जा सके। यह पूर्णतया निश्चित है कि यदि प्रकाश प्रदूषण जैसी समस्या से निजात पाने के लिए गंभीरतापूर्वक कदम न उठाए गए, तो हमारी भावी पीढ़ी आकाश में सुंदर टिमटिमाते तारों का अद्भुत दृश्य कदापि नहीं देख पाएगी।