राजस्थान में की सांप भी मर जायें और लाठी भी ना टूटे कहावत को चरितार्थ
नीति गोपेंद्र भट्ट
नई दिल्ली : शुक्रवार को शाम एक खबर ने राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में ज़बर्दस्त खलबली मचा दी किविधान सभा में सरकारी पद का दायित्व निभाने वाले डॉ महेश जोशी द्वारा इस पद से दिए गए इस्तीफ़े कोमुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंज़ूर कर लिया है। इसे 25 सितंबर को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक की घटना से जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिनराजनीति के जानकारों का मानना हैकि कि राजनीति के जादूगर का कोई भी एक्शन यकायक नही होता वरनइसके पीछे एक सौच और दूरदर्शी सन्देश भी निहित होता है।इन जानकारों का मानना है कि गहलोत का यह कदम सांप भी मर जायें और लाठी भी ना टूटे कहावत को चरितार्थ करने वाला है।
डॉ महेश जोशी गहलोत के सबसे निकटस्थ और विश्वस्त अनुशासित अनुयायी माने जाते है। वे गहलोत केपिछलें मुख्यमंत्रित्व काल में भी सरकारी मुख्य सचेतक रहे है । उन्होंने अपने को मंत्री बनाने का कभी भी दवाबनही बनाया फलस्वरूप उन्हें इसका पुरस्कार भी मिला । गहलोत ने महेश जोशी को जयपुर का सांसद बनासंसद में भेजा। इस बार गहलोत जब तीसरी बार मुख्यमंत्री बने तो डॉ महेश जोशी को एक बार फिर से मुख्यसचेतक की जिम्मेदारी दी गई। मुख्य सचेतक का पद कोई भी मुख्यमंत्री अपने भरोसेमन्द विधायक को ही देताहै । गहलोत के लिए डॉ महेश जोशी से अधिक भरोसेमन्द और उपयुक्त कोई विधायक नही था। मुख्य सचेतकका काम फ़्लोर मेनेजमेंट के साथ नाजुक वक्त पर मुख्यमंत्री के संकट मोचक की भूमिका निभाना भी होता है।हाल ही मुख्यमंत्री गहलोत जब बजट भाषण में गलती से पिछले वर्ष का एक पेज पढ़ रहे थे तो उनके कान मेंबजट भाषण रोकने का सन्देश देने का काम महेश जोशी ने ही किया था। महेश जोशी हर मौर्चे पर गहलोत केसाथ कन्धा से कन्धा मिला कर चलने वाले विश्वस्त सलाहकार और उनके आदेश का पालन करने वाले नेतामाने जाते है। उनकी इस वफ़ादारी का इनाम डॉ रघु शर्मा के गुजरात का चुनाव प्रभारी बनने के कारण गहलोतमंत्रिपरिषद से दिए गए इस्तीफ़े से रिक्त हुए पद पर उन्हें जलदाय मंत्री बना कर दिया गया । वे अब तक मंत्रीपद के साथ मुख्य सचेतक का दायित्व भी निभाते आए है लेकिन पच्चीस सितम्बर की घटना के बाद सचिनपायलट ग्रूप के विधायकों और दिव्या मदेरणा द्वारा वरिष्ठ मंत्री शांति धारिवाल प्रताप सिंह खाचारियावास औरआर टी डीसी के चेयरमेन धर्मेन्द्र राठौड़ की तुलना में सबसे अधिक विरोध महेश जोशी का किया गया क्योंकिपच्चीस सितम्बर को जयपुर में मुख्यमंत्री निवास आठ सिविल लाइंस पर होने वाली विधायकों की बैठक मेंमुख्य सचेतक के रूप में सभी विधायकों को इसमें लाने की ज़िम्मेदारी उन्ही की थी । मुख्यमंत्री अशोक गहलोतउस दिन जैसलमेर गए थे और शाम को जयपुर लौटें थे। इसके बाद ही बैठक तय थी। उस दिन गहलोत समर्थकविधायक बैठक में नहीं आकर मंत्री शांति धारीवाल के घर चले गए थे और उसके बाद सभी ने स्पीकर सीपीजोशी को इस्तीफे दे दिए थे। ऐसे में आलाकमान को अधिकार देने का एक लाइन का प्रस्ताव अटक गया थाऔर प्रभारी अजय माकन और पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे अगले दिन खाली हाथ दिल्ली लौट गए थे।
आलाकमान ने इस मामले को गंभीर माना था और पार्टी की अनुशासन समिति ने संसदीय कार्य मंत्री शांतिधारीवाल, सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी और आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेन्द्र राठौड़ को कारण बताओनोटिस जारी किया और जवाब मांगा था। संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल, सरकारी मुख्य सचेतक महेशजोशी और आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेन्द्र राठौड़ ने इसका जवाब भी भेज दिया लेकिन आज तक इस बारे में कुछफैसला नहीं हो सका है।
इसके पहले की हाईकमान कोई कार्यवाही को अंजाम में लाए गहलोत ने हमेशा की तरह आगे बढ़ कर महेशजोशी का मुख्य सचेतक पद से इस्तीफ़ा मंज़ूर कर एक राजनीतिक सन्देश दिया है। वैसे भी महेश जोशी काफ़ीसमय से दो पदों को जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे। अब विधानसभा चुनाव को कुल जमा आठ महीनों कावक्त ही बाकी है और बजट सत्र भी समाप्त होने वाला है,ऐसे में मुख्य सचेतक की कोई विशेष भूमिका बाकीनही रहती है। जब विधानसभा का लगभग पूरा कार्यकाल बिना उपाध्यक्ष के निकल गया तों विधानसभा का यहशेष समय भी बिना मुख्य सचेतक निकल सकता है और यदि ओपचारिकता निभानी भी पड़ी तो दो विधायकोंको यें पद देकर संतुष्ट किया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री गहलोत ने महेश जोशी के इस्तीफ़े का आधार उदयपुर में हुए चिन्तन शिविर में लिए गए निर्णय केअनुरूप एक्शन लेकर भी यह सन्देश देने का प्रयास किया है कि वे छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आने वालेदिनों में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन से पहले प्रदेश और देश में यह स्पष्ट संदेश देना चाहते है कि राज्य के अन्यनेता भी इसका अनुसरण करें। गोविन्द सिंह डोटासरा को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष और डॉ रघु शर्मा को गुजरातका प्रभारी बनाने से पहलें भी उनके मंत्री पद से इस्तीफ़े लेकर प्रदेश में “एक व्यक्ति दो पद नहीं” के सिद्धान्त कीपालना कराई गई थी। अब प्रदेश के नेताओं के सामने विशेष कर मुख्यमंत्री का विरोध करने वाले नेताओं केसमक्ष यह यक्ष प्रश्न खड़ा हों गया है कि वे अपने पास धारित दो में से कौन सा पद रखें और कौन सा पदत्यागेंगे। इस तरह मुख्यमंत्री ने एक तीर से कई निशाने चला कर एक बार फिर से अपनी जादूगरी दिखा दी है।