दीपक कुमार त्यागी
- डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी ने अपनी किताब ‘दुनिया इन दिनों’ को बस्तर सहित विश्व के जनजातीय समुदायों को किया समर्पित
- यह किताब कई मायनों में अनूठी तथा अवश्य पठनीय- राहुल सिंह वरिष्ठ लेखक
- छत्तीसगढ़ के बस्तर में पैदा होना मेरा सौभाग्य, मुझ में अगर कुछ भी अच्छा है तो वह मुझे बस्तर के आदिवासी समाज से ही मिला है – डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी
- वरिष्ठ साहित्यकार जनाब शहाब अख्तर कर रहे हैं इस पुस्तक का उर्दू में अनुवाद
- पुस्तक की प्रथम प्रति वरिष्ठ चिंतक, मूर्धन्य विद्वान, साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार गुलाब कोठारी को की गई भेंट
- पुस्तक के प्रकाशन में कुसुमलता सिंह तथा उनके प्रकाशन ‘लिटिल वर्ल्ड’ की पूरी टीम का रहा विशेष योगदान
डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी की पुस्तक ‘दुनिया इन दिनों’ का बीटीआई ग्राउंड शंकर नगर में आयोजित छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य महोत्सव तथा बीसवें राष्ट्रीय किताब मेला में आयोजित एक भव्य साहित्यिक कार्यक्रम में लोकार्पण किया गया। लोकार्पित पुस्तक के बारे में मुख्य बीज वक्तव्य देश के ख्यातनाम साहित्यकार राहुल सिंह के द्वारा पढ़ा गया। लोकार्पण का विधिवत कार्य देश के विख्यात शायर अजहर इकबाल ,छत्तीसगढ़ साहित्य मंडल के अध्यक्ष वरिष्ठ लेखक आचार्य अमरनाथ त्यागी, वरिष्ठ कवि तथा व्यंगकार सुरेन्द्र रावल, देश के जाने-माने फिल्मकार, रंगकर्मी संतोष जैन, वरिष्ठ पत्रकार पीसी रथ, समाज सेवी मोहन चोपड़ा, शिप्रा त्रिपाठी, अपूर्वा त्रिपाठी तथा कार्यक्रम के मुख्य संयोजक साहित्यकार नागेंद्र दुबे एवं समीना खान के कर कमलों से संपन्न हुआ।
सर्वप्रथम बीज वक्तव्य पढ़ते हुए वरिष्ठ साहित्यकार राहुल सिंह ने कहा कि मैंने इस पुस्तक को आज सुबह ही एक बैठक में खत्म की, क्योंकि बिना पूरी पुस्तक पढ़े पुस्तक की प्रशंसा तो की जा सकती है, पर निष्पक्ष आलोचना संभव नहीं है। इस पुस्तक के बहत्तर लेखों में वर्तमान परिदृश्य में जनजातीय समाज, उनकी विलुप्तप्राय परंपराओं, दिनोदिन छीजते हमारे पर्व व तीज त्यौहार, बढते पर्यावरण असंतुलन ,मौसम परिवर्तन आदि विविध समकालीन मुद्दों को लेकर वैश्विक चिंतन के साथ ही स्थानीय ज्वलंत मुद्दे जैसे दम तोड़ती इंद्रावती व सूखते चित्रकोट जलप्रपात की चिंता, गुम होते लोक साहित्य तथा लुप्त होते सदियों से संचित परंपरागत ज्ञान, इनके कारण तथा उनके संभावित निदान को लेकर गंभीर चिंतन देखा जा सकता है। विषय वैविध्य के साथ ही अगर पुस्तक की भाषा बात करें तो मेरा मानना है कि इतनी साफ-सुथरी हिंदी आजकल कम देखने में आ रही है। एक और उल्लेखनीय बात इस समूची किताब में यह है कि है कि विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर बेबाक व सार्थक लेखन के बावजूद सभी लेख संतुलित तथा पूरी तरह से निष्पक्ष हैं, कहीं भी किसी राजनैतिक विचारधारा विशेष के प्रति झुकाव,आग्रह अथवा तरफदारी नजर नहीं आती। विभिन्न मठ, महंत तथा वाद से जुड़ने की वर्तमान अनिवार्यता के इस दौर में ऐसा निरपेक्ष लेखन निश्चित रूप से प्रशंसा योग्य है। पुस्तक में कहीं कहीं पर विषयों का दुहराव देखने में आता है और ज्यादा कसे हुए संपादन में यह कमी दूर की जा सकती थी, चूंकि मूल रूप से हर लेख स्वतंत्र संपादकीय के रूप में लिखे गए हैं, इसलिए इस त्रुटि के कारण को समझा जा सकता है। कुल मिलाकर एक ऐसा लेखक जो बस्तर में पैदा होने को अपना सौभाग्य समझता है, उसके द्वारा जनजातीय सरोकारों तथा वैश्विक चिंतन के विविध विषयों को समाहित करते हुए लिखी गई इस पुस्तक का हिंदी के सुधी पाठक समाज में स्वागत होना ही चाहिए।
अपनी नई पुस्तक के बारे में बोलते हुए डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि बस्तर में पैदा होना मेरा सौभाग्य है।
“मुझ में अगर कुछ भी अच्छा है तो निश्चित रूप से वो मुझे बस्तर के अपने आदिवासी समाज से ही मिला है और इसलिए यह पुस्तक बस्तर सहित विश्व के जनजातीय समुदायों को सादर समर्पित है।”
डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि इन लेखों को बेहतरीन पुस्तक का आकार देने में कुसुमलता सिंह तथा उनके प्रकाशन लिटिल बर्ड की पूरी टीम का बहुत बड़ा योगदान है। पुस्तक की पहली प्रति मैंने अपने अग्रज देश के वरिष्ठ चिंतक, मूर्धन्य विद्वान साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार गुलाब कोठारी को भेंट की है, तथा इस पुस्तक का उर्दू में अनुवाद वरिष्ठ साहित्यकार जनाब शहाब अख्तर कर रहे हैं।
इस भव्य तथा गरिमामय संपूर्ण कार्यक्रम का सफल संचालन तथा धन्यवाद ज्ञापन छत्तीसगढ़ साहित्य महोत्सव तथा विश्व में राष्ट्रीय किताब मेला के मुख्य संयोजक नगेंद्र दुबे के द्वारा किया गया।