कब टूटेगा अंधविश्वास का विश्वास

ऋतुपर्ण दवे

दरअसल अंधविश्वास पर जब भी बात होती है तो लगता है कि पढ़े लिखे जमाने में
और कब तक….! वहीं फक्र है कि 21 वीं सदी के जेट युग में हम, अपने अंतरिक्ष यान को
मंगल की कक्षा में पहले ही प्रयास में स्थापित करने में 25 सितंबर 2014 को सफल हुए।
यह अंधविश्वास नहीं था। दूसरी ओर ठीक साल भर बाद 2 सितंबर 2015 को अमेरिका जैसे
विकसति देश की वायुसेना में एक भारतीय महिला डेबरा शोनफेल्ड मैरिलैंड जो भारतीय
संगीत सुनती और योग करतीं। एक सहकर्मी को लगता कि जादू-टोना भी करती है। बस
इसीलिए डेन्टल टेक्नीशियन डेबरा बरखास्त कर दी गई।
21 सितंबर 2015 की ही एक घटना जिसने खूब सुर्खी बटोरी। हुआ यह कि नेपाल
सीमा से सटे कपिलवस्तु की महिलाएँ एक टोटेके करने कोतवाली पहुंचीं। थाना प्रभारी को खूब
नहलाया और बारिश की प्रार्थना की। मान्यता और भावनाओं का सम्मान करते थानेदार
रणविजय सिंह भी चुपचाप जमीन पर बैठे और महिलाएं पानी उड़ेलती रहीं। बारिश न होने से
सूख रही धान को बचाने हेतु इन्द्रदेव को खुश करने खातिर इलाके के राजा को पानी में डुबोने का
पुराना टोटका पूरा करना था। राजा-रजवाड़े रहे नहीं सो थानेदार को ही राजा मान टोटका किया।
यूँ तो हर रोज अँध विश्वास की कोई न कोई घटना या कहानी किसी न किसी रूप में
सामने होती है। चंद दिन पहले 20 मार्च 2022 को राजस्थान के राजसमंद के खमनोर की
एक घटना जिसमें सात साल के बच्चे को दो साल पहले आंख में फुंसी हुई तो घरवाले करीब
की दवा दूकान से दवा लेकर इलाज करते रहे। लेकिन जब दर्द और मर्ज बढ़ा तो तंत्र-मंत्र
करने वाले भोपे के पास ले गए। वहां बच्चे की तकलीफ कम इतनी बढ़ी कि उसकी आंख तीन
इंच बाहर आ गई। आखिर में अस्पताल गए तो पता चला कि है और आंख निकालनी
पड़ेगी।
4 सितंबर 2021 राजस्थान के ही चित्तौड़गढ़ में तंत्र-मंत्र के चक्कर में 30 साल की
सुनीता की जान सगी छोटी बहन ने ले ली। वो मायके आई थी। वहाँ तबियत क्या बिगड़ी
परिवार वालों ने मान लिया कि जादू-टोने का असर है। परिवार 18-20 घण्टों तक कमरा
बंद करके मंत्र-तंत्र करता रहा। 2 कमरों में बन्द 25 लोगों को भरोसा था कि छोटी बहन
जिस पर एक रिश्तेदार की आत्मा आती है सब ठीक करेगी। घण्टों चीख-चिल्लाहट मार,
पीट की आवाज से डरे पड़ोसियों ने आखिर पुलिस बुलाई। जबरदस्ती दरवाजा खुलवाया।
बीमार की तो मौत हो चुकी थी लेकिन तंत्र-मंत्र जारी था। ताँत्रिक बनी लड़की पुलिस को भी
धमकाती रही।
उप्र के ललितपुर थाना कोतवाली के घटवार गाँव की 27 अप्रेल 2018 की घटना। 22
और 20 वर्षीय पति-पत्नी ताराचंद और ज्योति कुशवाहा ने शादी की दूसरी साल गिरह की
रात फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। सुबह जब देर तक दोनों नहीं उठे तो खिड़की से
झाँकने पर दिखा कि दोनों एक ही रस्सी से फांसी पर लटके थे। ससुर दामोदर ने पुलिस को
बताया कि ज्योति पर 6 माह से भूत-प्रेत का साया था। कई ओझा-गुनियाओं से झड़वाया कुछ

काम न आया जिससे दोनों परेशान थे। मृतकों का एक ही कागज पर मिला सुसाइड नोट
उनकी हताशा और परिवार के अंधविश्वास को बयाँ कर रहा था।
31 जनवरी 2019 को मप्र के टीकमगढ़ जिले के खरगापुर सरकारी अनुसूचित
जनजाति सीनियर कन्या छात्रावास से अजीब घटना सामने आई। पठारे गाँव की दसवीं की
एक छात्रा कई दिनों से अजीब-अजीब हरकतें कर रही थी। रात को सोते में पलंग तक से
गिर जाती। अधीक्षिका ने उसके पिता को सलाह दे दी कि बेटी प्रेतात्मा के साये से परेशान है
इसलिए अच्छे ताँत्रिक को दिखाओ। बताते हैं कि ताँत्रिक ने भूत-प्रेत भगाने छात्रावास में ही
मुर्गे की बलि देकर शराब चढ़ाई।
26 मार्च, 2013 को गंगापुर सिटी के रहने वाले फोटोग्राफर कंचन सिंह ने भगवान से
मिलने की चाह में अपने परिवार के आठ सदस्यों के साथ राजी, खुशी से जानबूझकर
सायनाइड मिला जहरीला लड्डू खाया। जब लोग मरने लगे तो एक लड़की पड़ोसियों को बताने
भागी और लड्डू थूक दिया। दो और को तुरंत अस्पताल पहुँचाया। बाद में जाँच से पता चला
कि परिवार बेहद आस्थावान था। धार्मिक सीरियल ही देखता था। परिवार की भगवान से
मिलने की आस में चुना गया रास्ता, आस्था पर ही बड़ा सवाल बन गया।
1 जुलाई, 2018 को दिल्ली सहित पूरे देश को हिला देने वाला बुराड़ी काण्ड लोग अभी
तक नहीं भुला पाए हैं जिसमें घर में मौजूद सभी 11 लोगों (4 पुरुष और 7 महिला) में 10 ने
घर की एक ग्रिल से लटक कर फाँसी लगाई जबकि 11वीं बूढ़ी थी जिसकी लाश दूसरे कमरे
के जमीन पर मिली। सबकी आंखों में पट्टी और हाथ-पैर बंधे थे। मौतों की वजह फांसी
निकली। पुलिस ने जबरदस्त मशक्कत की लेकिन मामला सुसाइड पैक्ट से आगे नहीं बढ़ा।
6 दिनी तांत्रिक अनुष्ठान के फेर में सबकी जान गई। वहाँ मिली डायरी ने काफी खुलासे
किए। 'महान शक्ति' पाने और संपन्न से धनाढ़्य होने की बातें लिखीं थीं। साइकोलॉजिकल
अटॉप्सी से पता चला कि मरना कोई नहीं चाहता था। फंदे पर लटक 6 दिन की कथित
'साधना' के बाद सामान्य और बेहद खुशहाल जिन्दगी की लालसा के बदले मौत मिली।
18 सितम्बर 2015 को छत्तीसगढ़ के जशपुर के बाजार में मनपसंद भूत बिकने आए यहाँ
तक नोट कमाने वाला भी। कुछ साल पहले मसाला पीसने वाले सिलबट्टा को रात में भूत
द्वारा टांकने की अफवाह ने मप्र, उप्र, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ के कई ग्रामीण इलाकों में
दहशत फैला दी। सोशल मीडिया से ऐसी हवा मिली कि टांकने की आवाज जिसने भी सुनी उसकी
मौत पक्की। डरे, सहमें लोग सिलबट्टा घरों से फेंकने लगे। जबकि वैज्ञानिक तथ्य यह है कि
बरसात में ऐसे कीट निकलते हैं जो पत्थरों पर पैर रगड़ते हैं जिससे टांकने जैसे निशान बन जाते हैं।
नेताओं के एक दूसरे पर तंत्र-मंत्र के आरोप भी अक्सर सुर्खियाँ बनते हैं। दुष्ट
आत्माओं से मुक्ति हेतु कर्मकाण्ड पर कर्नाटक के एक पूर्व मुख्यमंत्री की जगहँसाई तो एक
राज्य के मुख्यमंत्री की विधानसभा भवन के कक्ष में तोड़फोड़ कराई खूब चर्चाओं में रही। वही
देश-विदेश में पढ़े-लिखे ऐसे मानसिक रोगी भी बहुतायत में मिलते हैं जो किस्म-किस्म के
अज्ञात डर से भयभीत होते हैं। समय के साथ अनेकों मिथक, अंधविश्वास और कई
परम्परागत रीति-रिवाज अब जरूरी नहीं है। हीन भावना और सामान्य तौर पर नहीं पहचाने
जा सकने वाले मानसिक रोगी भी अनजाने, अनचाहे अंधविश्वास की राह पकड़ लेते हैं। ऐसा
नहीं है कि सिर्फ भारत में ही ये सब जड़ें जमीं हैं। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन, जापान,
मिश्र, उत्तरी और दक्षिणी कोरिया, न्यूजीलैण्ड, स्पेन, यूनान, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल
यानी दुनिया का कोई कोना इससे अछूता नहीं है। छींक आना, बिल्ली का रास्ता काटना,
खाली कैंची चलाना, कुछ नंबरों का अशुभ मानना, उल्लू को देखना, घर के अन्दर सीटी

बजाना, यात्रा के वक्त दाहिना पैर आगे बढ़ाना, पड़ोसी को नमक उधार देना ऐसे हजारों
अँधविश्वास अब भी दुनिया भर में प्रचलित हैं।
ऐसे में सवाल वही कि विकसित, विकासशील और नित नए वैज्ञानिक उपलब्धियों
यहां तक कि धरती छोड़िए आसमान में कुलांचे भरती नई दुनिया कब तक ऐसे अंधविश्वासों
को ढ़ोएगी? रेखा और बिन्दु का फर्क यानी रेखा में लंबाई हो चौड़ाई न हो और बिन्दु में
लंबाई-चौड़ाई न हो अनंत बहस का विषय हो सकता है लेकिन यही सच है। वैज्ञानिक
दृष्टिकोण का सबसे गहराइयों को छूने वाला तत्व यही है कि जब प्रश्न उठाने की जरूरत हो
तो चुप्पी तोड़ सवाल करें क्योंकि इसी से अंधविश्वास टूटता है। लेकिन पता नहीं किस भ्रम
या अज्ञात भय से कहीं न कहीं अनचाहे, अनकहे सब कुछ जानते व समझते हुए अपढ़
छोड़िए खूब पढ़े-लिखे भी अक्सर बेवजह अंधविश्वास को हवा देने लगते हैं।
सच तो ये है कि परमात्मा भले ही काल्पनिक हो लेकिन वह अज्ञात मानसिक शक्ति
जरूर है जो गलत रास्ते या निर्णय से रोकती है, झकझोरती है और अंधविश्वास इसी के पार
डर, भय या लोभ के रास्तों पर भटका ऐसे नतीजों पर ला खड़ा करता है जहां पछतावा,
नुकसान या सब कुछ गंवाने के अलावा अंत में कुछ नहीं मिलता। काश अंधविश्वास के
मकड़जाल में उलझने और उलझाने वाले इस सच को समझ पाते और सरकारें व समाज के
तमाम जिम्मेदार इसके लिए कुछ कर पाते जो आसान नहीं दिखता।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं)