रमेश सर्राफ धमोरा
भारतीय खेल जगत में उड़न परी के नाम से मशहूर पीटी उषा के भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष बनने के बाद अब लगने लगा है कि आने वाले समय में भारत में खेलों की दशा सुधरेगी। पीटी उषा स्वयं एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की धावक रही है तथा भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला है। भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन में अभी तक गैर खिलाड़ी व पुरुषों का ही वर्चस्व रहा है। यह पहला अवसर है जब संघ की अध्यक्ष के रूप में एक महिला और वह भी खिलाड़ी की नियुक्ति हुई है। खिलाड़ी होने के नाते पीटी उषा को खिलाड़ियों के समक्ष आने वाली सभी समस्याओं की पूरी जानकारी है। एक खिलाड़ी के रूप में उन्हें भी अपने कैरियर में विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ा था। ऐसे में ओलंपिक संघ के अध्यक्ष के रूप में पीटी उषा भारत में खेल व खिलाड़ियों की दशा सुधारने की दिशा में कई बेहतर काम कर सकती है। अध्यक्ष के रूप में उन्हें जो अवसर मिला है। उसका फायदा आने वाले कई पीढ़ियों को मिल सकता है।
भारतीय ओलंपिक संघ की पीटी उषा 15 वीं अध्यक्ष बनी है। इससे पूर्व चुने गए 14 अध्यक्षों में से कोई भी खिलाड़ी नहीं रहा है। 1927 में भारतीय ओलंपिक संघ की स्थापना के समय दोराबजी टाटा पहले अध्यक्ष बने थे। वह प्रतिष्ठित टाटा समूह से जुड़े हुए थे। उनके बाद महाराजा भूपिंदर सिंह, महाराजा यदाविंद्र सिंह, भलिंद्र सिंह, ओमप्रकाश मेहरा, बलिंदर सिंह, विद्या चरण शुक्ला, शिवांथी अदिथन, सुरेश कलमाडी, विजय कुमार मल्होत्रा, सुरेश कलमाडी, अजय सिंह चैटाला, नारायण रामचंद्रन, नरिंदर बत्रा अध्यक्ष रह चुके हैं।
भारतीय ओलंपिक संघ भारत की राष्ट्रीय ओलंपिक समिति है। जिसका कार्य ओलंपिक खेलों, एशियाई खेलों व अन्य अंतरराष्ट्रीय बहू खेल प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले एथलीटों का चयन करना और भारतीय दल का प्रबंधन करना है। यह भारतीय राष्ट्रमंडल खेल संघ की तरह भी कार्य करता है तथा राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले एथलीटों का भी चयन करता है। इस संघ के पदाधिकारियों का चुनाव प्रत्येक 4 वर्ष बाद होता है। भारतीय ओलंपिक समिति के सदस्यों में राष्ट्रीय खेल संघों, राज्य ओलंपिक संघ और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति और अन्य चुनिंदा बहू खेल संगठनों के सदस्य शामिल हैं।
अपने जमाने के दिग्गज धाविका पीटी उषा को भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) का पहला महिला अध्यक्ष चुनने से भारतीय खेल प्रशासन में एक नए युग की शुरुआत हुई है। एशियाई खेलों में कई पदक जीतने वाली और 1984 के लॉस एंजलिस ओलंपिक खेलों में 400 मीटर की बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रही 58 वर्षीय उषा को चुनाव के बाद शीर्ष पद के लिए निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया।
‘पय्योली एक्सप्रेस’ और ‘उड़न परी’ के नाम से मशहूर रही पीटी उषा ने 2000 में संन्यास लेने से पहले भारतीय और एशियाई एथलेटिक्स में दो दशक तक अपना दबदबा बनाये रखा था। पिलावुलकंडी थेक्केपारंबिल उषा का जन्म 27 जून 1964 में पय्योली गाँव में हुआ था। इन्हें पीटी उषा नाम से ही जाना जाता है। इनके पिता का नाम इ पी एम् पैतल एवं माता का नाम टी वी लक्ष्मी है। इनके पहले कोच ओ.एम. नम्बिअर थे।
पीटी उषा ने एथलीट के तौर पर अपने अन्तराष्ट्रीय करियर की शुरुवात 1980 में करांची में हुए ‘पाकिस्तान ओपन नेशनल मीट’ से की थी। इस एथलीट मीट में पीटी उषा ने 4 गोल्ड मैडल भारत के नाम किये थे। इसके बाद 1982 में पीटी उषा ने ‘वर्ल्ड जूनियर इनविटेशन मीट’ में हिस्सा लेकर 200 मीटर की रेस में गोल्ड मैडल एवं 100 मीटर की रेस में ब्रोंज मैडल जीता था। इसके एक साल बाद ही कुवैत में हुए ‘एशियन ट्रैक एंड फील्ड चैम्पियनशीप’ में पीटी उषा ने 400 मीटर की रेस में नया रिकॉर्ड कायम किया और गोल्ड मैडल जीता।
1984 में लॉसएंजिल्स में हुए ओलंपिक में पीटी उषा ने सेमी फाइनल के पहले राउंड की 400 मीटर बाधा दौड़ को अच्छे से समाप्त कर लिया था। लेकिन इसके फाइनल में वे हार गई और उनको ब्रोंज मैडल नहीं मिल पाया था। हार के बाद भी पीटी उषा की यह उपलब्धि बहुत बड़ी थी। यह भारत के इतिहास में पहली बार हुआ था जब कोई महिला एथलीट ओलंपिक के किसी फाइनल राउंड में पहुंची थी। इन्होने 55.42 सेकंड में रेस पूरी की थी। जो आज भी भारत के इवेंट में एक नेशनल रिकॉर्ड है।
1985 में पीटी उषा ने इण्डोनेशिया के जकार्ता में ‘एशियन ट्रैक एंड फील्ड चैम्पियनशीप’ में हिस्सा लेकर 5 गोल्ड और 1 ब्रोंज मैडल जीता। 1986 में सीओल में 10 वें ‘एशियन गेम्स’में 200 मीटर, 400 मीटर, 400 मीटर बाधा एवं 4’400 मीटर रिले रेस में हिस्सा लेकर पीटी उषा विजयी रहीं और चारों गोल्ड मैडल भारत के नाम कर दिया। एक ही इवेंट में एक ही एथलीट द्वारा इतने मैडल जीतना अपने आप में एक रिकॉर्ड था। 1989 में उन्होने दिल्ली में आयोजित ‘एशियन ट्रैक फेडरेशन मीट’ में 4 गोल्ड मैडल एवं 2 सिल्वर मैडल जीते। 1990 में ‘बीजिंग एशियन गेम्स’ में हिस्सा लिया। इस इवेंट के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होने के बावजूद पी टी उषा ने 3 सिल्वर मैडल अपने नाम किये।
1991 में इन्होने वी श्रीनिवासन से शादी कर ली। जिसके बाद इनका एक बेटा हुआ। 1998 में अचानक सबको चौंकाते हुए 34 साल की उम्र में पीटी उषा ने एथलेटिक्स में वापसी कर दी और जापान के फुकुओका में आयोजित ‘एशियन ट्रैक फेडरेशन मीट’ में हिस्सा लेकर 200 मीटर एवं 400 मीटर की रेस में ब्रोंज मैडल जीता। 34 साल की उम्र में पीटी उषा ने 200 मीटर की रेस में अपनी खुद की टाइमिंग में सुधर किया और एक नया नेशनल रिकॉर्ड कायम कर दिया। 2000 में पीटी उषा ने एथलेटिक्स से पूरी तरह से संन्यास ले लिया।
मौजूदा समय में देश के अधिकांश खेल संघों के पदाधिकारियों पर भेदभाव के आरोप लगना आम बात हो गई है। खेल संघों मे गैर खिलाड़ियों व राजनेताओं के पदाधिकारी बनने से उनका ध्यान खेलों को बढ़ावा देने के बजाय अपने स्वार्थ साधना अधिक रहता है। इसी कारण बहुत से प्रतिभाशाली व योग्य खिलाड़ियों को मौका नहीं मिलने से पिछड़ जाते हैं। भारत की कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष व सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाए है। जिसकी खेल मंत्रालय द्वारा जांच की जा रही है। ऐसी घटनाओं से खेलों की तो बदनामी होती ही है इसके साथ ही खिलाड़ियों का मनोबल भी कमजोर होता है। जब तक खेलो को खिलाड़ियों के लिए नहीं छोड़ा जाएगा तब तक भारत खेलों में इसी तरह पिछड़ता रहेगा।
पीटी उषा के भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष बनने के बाद देश के खिलाड़ियों व लोगों में खेलो की दुनिया में अच्छे दिन आने की उम्मीद जगी है। एक महिला खिलाड़ी के अध्यक्ष बनने से आने वाले समय में विशेषकर महिला खिलाड़ियों के समक्ष आने वाली कई तरह की दिक्कतों का निवारण हो सकेगा। इस बात की सभी को आशा है। पीटी उषा जैसी अंतरराष्ट्रीय स्तर की धावक से भारत का हर नागरिक यही अपेक्षा रखता है कि वह अपने अध्यक्ष के कार्यकाल को एक मिसाल बना दे। ताकि आने वाले पीढ़ियां उनके कार्यकाल को बेहतर खेलों के लिए याद रख सके। सरकार ने इन्हे राज्य सभा सदस्य भी नामित किया है। जिसका लाभ भी खेलों व खिलाड़ियों को मिलना तय माना जा रहा है।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)