दीपक कुमार त्यागी
- योगी राज में ‘वसुंधरा योजना’ के विस्थापित किसानों को समझौते के अनुरूप जल्द ही अपना हक मिलने की जगी उम्मीद
- उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद के मौजूदा आवास आयुक्त रणवीर प्रसाद व ‘वसुंधरा योजना’ के अधीक्षण अभियंता राकेश चंद्रा ने किसानों के साथ हुए वर्ष 1999 व वर्ष 2012 के समझौतों के अनुसार किसानों को उनका तय हक देने के शुरू किये धरातल पर सकारात्मक प्रयास
गाजियाबाद : उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जनपद में चार दशक पूर्व “उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद” के द्वारा “वसुंधरा योजना” के लिए भूमि अधिग्रहित की गयी थी। इस भूमि अधिग्रहण से संबंधित किसानों के विवादों के निस्तारण संदर्भ में परिषद व किसानों का वर्ष 1999 व वर्ष 2012 में समझौता होने बाद भी परिषद के द्वारा ना जाने क्यों आज तक भी पूर्णतया विवादों को निस्तारित नहीं किया गया है। यहां आपको बता दें कि उक्त ‘वसुंधरा योजना’ के लिए “उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद” के द्वारा गाजियाबाद जनपद के 6 गांव साहिबाबाद, प्रहलादगढ़ी, कनावनी, अर्थला, करहेड़ा व मकनपुर गांव के किसानों की लगभग 2100 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी थी। इस भूमि के अधिग्रहण के लिए 26 जून 1982 को धारा 28 का नोटिस प्रशासन के द्वारा जारी किया गया था, जिसके पश्चात 18 फरवरी 1987 व 15 मई 1987 को शासन द्वारा धारा 7/17 की अधिसूचना निर्गत की गई थी। इस अधिग्रहीत की गयी भूमि का प्रतिकर 20 से 50 रुपए प्रति वर्ग गज किसानों को दिया गया था। जिस भूमि का कब्जा परिषद के द्वारा वर्ष 1989 से लेना शुरू कर दिया गया था और भूमि कब्जे के उपरान्त उक्त भूमि पर परिषद ने अपनी स्कीम लॉन्च करके भूखंड मकान, दुकान आदि बेचने शुरू कर दिये थे, जिससे परिषद को ‘वसुंधरा योजना’ से काफी आर्थिक लाभ हुआ है, लेकिन उस सबके बावजूद भी परिषद किसानों को उनका तय हक देने में टालमटोल कर रही है। देश के अन्नदाताओं से जुड़े इस ज्वलंत मुद्दे पर ‘वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार त्यागी’ ने “किसान समिति गाजियाबाद” के अध्यक्ष सतीश नागर, वरिष्ठ उपाध्यक्ष बलराम सिंह, उपाध्यक्ष आशीष कौशिक, महासचिव आदेश त्यागी व क्षेत्र के जुझारू संघर्षशील किसान नेता सुशील त्यागी से विस्तार से चर्चा की। सम्मानित पाठकों को के लिए प्रस्तुत है उस चर्चा के महत्वपूर्ण अंश –
सवाल – “किसान समिति गाजियाबाद” की “उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद” से क्या-क्या मांगें हैं?
जवाब – ‘किसान समिति गाजियाबाद’ की परिषद से वर्ष 1999 व वर्ष 2012 के समझौते के अक्षरशः अनुपालन की मांग मुख्य रूप से है। जिसमें किसानों की मुख्य रूप से व्यक्तिगत व क्षेत्र के समुचित विकास से जुड़ी हुई व बरातघर आदि की 6-7 प्रमुख मांगे हैं। जिसमें समझौते के तहत व अन्य योजनाओं के विस्थापित किसानों की तरह अर्जित भूमि के बदले 6 प्रतिशत भूमि विस्थापित किसानों को आवंटित की जाये सबसे अहम है। इसके उदाहरण स्वरुप परिषद की वृंदावन योजना है, जिसमें विस्थापित किसानों को परिषद ने 6 प्रतिशत के हिसाब से बिना लाभ-हानि की गणना के आधार पर भूखंड आवंटित किये हैं।
सवाल – वर्ष 1999 व वर्ष 2012 में परिषद व किसानों के बीच क्या समझौता हुआ था?
जवाब – उस वक्त आंदोलनरत क्षेत्र के विस्थापित किसानों का वर्ष 1999 में तत्कालीन आवास आयुक्त, जिले के सर्वेसर्वा तत्कालीन जिलाधिकारी व किसानों के मध्य ‘वसुंधरा योजना’ में काम चलने देने के एवज में एक विस्तृत समझौता हुआ था, उसके पश्चात वर्ष 2012 में भी किसानों का परिषद के साथ एक समझौता हुआ था, जिसमें दोनों पक्षों के बीच परिषद का कार्य निर्बाध रूप से चलने देने के एवज में बहुत सारे बिन्दुओं पर सहमति बनी थी। जिसमें मुख्य रूप से किसानों को आवासीय भूखंड, एक दुकान या व्यवसायिक भूखंड परिषद के द्वारा बिना किसी लाभ व हानि की दर पर आवंटित किया जायेगा यह तय हुआ था। परिषद भूखंड के मूल्य के रूप में भूखंड की बिना लाभ व हानि की दर पर सामान्य 16 प्रतिशत की वार्षिक दर से ब्याज लगाते हुए जो भूमि दर निकल कर आयेगी, वही दर किसानों से ली जायेगी। जिस पर परिषद ने कार्य करते हुए वर्ष 2003 में मूल्य की गणना भी की थी। हालांकि ब्याज की यह गणना का फार्मूला किसानों के साथ सरासर घोर अन्याय है, क्योंकि किसान तो वर्ष 1999 से भूखंड लेने के लिए तैयार बैठे हैं, भूखंड देने में देरी तो परिषद की तरफ से ही जानबूझकर दशकों से की जा रही है, तो फिर किसानों की गणना में 16 प्रतिशत के हिसाब से ब्याज जोड़ना न्याय हित में ग़लत है।
सवाल – वर्ष 1999 व 2012 के समझौतों के उल्लघंन की शुरुआत किस पक्ष की तरफ से व कहां से हुई।
जवाब – समझौते का उल्लघंन उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद के द्वारा किया गया था, क्योंकि समझौते में तय हुआ था कि किसानों के द्वारा ‘वसुंधरा योजना’ में संचालित विकास कार्य व अन्य कार्यों को भविष्य में रोका नहीं जायेगा, जिस पर विस्थापित किसान आज तक पूरी तरह से कायम हैं। लेकिन परिषद के द्वारा किसानों के साथ समझौते का अनुपालन अपने बचाव के लिए कागज़ी कार्यवाही में तो किया गया, लेकिन धरातल पर सिर्फ और सिर्फ भोलेभाले किसानों को झूठे आश्वासन देकर लंबे समय से गुमराह करते हुए छला गया।
सवाल – भूमि अधिग्रहण के बाद किसानों को उनका हक ना मिलने पर समिति के क्या विचार है।
जवाब – किसान अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और उनके बीच परिषद के पूर्व में तैनात रहे कुछ लापरवाह व भ्रष्ट अधिकारियों के प्रति बेहद आक्रोश व्याप्त है और वह बार बार ‘किसान समिति गाजियाबाद’ से आंदोलन करने के लिए कहते थे। लेकिन किसान व ‘किसान समिति गाजियाबाद’ आज तक भी समझौते के पालन स्वरूप नियम कायदे कानून का पूर्ण रूप से पालन कर रही है और उससे अब उम्मीद है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में किसानों को उनका तय हक व जल्द से जल्द न्याय मिलने की उम्मीद है।
सवाल – आखिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में ऐसा क्या कार्य हुआ है कि जो ‘वसुंधरा योजना’ के विस्थापित उनके प्रशंसक बन गये हैं।
जवाब – उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस प्रशंसा के वास्तव में हकदार हैं, क्योंकि पिछले चार दशक से हर सरकार ने ‘वसुंधरा योजना’ के किसानों को झूठे आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं दिया, जिसके चलते हुए ही विस्थापित भोलेभाले किसान अपने आपको परिषद के कुछ भ्रष्ट व लापरवाह अधिकारियों के द्वारा ठगा हुआ महसूस कर रहे थे। लेकिन जब से उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी है, तब से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की किसानों के प्रति सकारात्मक सोच को देखते हुए किसानों के बीच न्याय मिलने की एक उम्मीद की किरण जगी है। यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल का ही असर है कि पूर्व में तैनात रहे आवास आयुक्त अजय चौहान और हाल में तैनात आवास आयुक्त रणवीर प्रसाद के पास किसानों का प्रतिनिधि मंडल जब भी गया उन्होंने हमेशा पूरे सम्मान के साथ सकारात्मक सोच के साथ किसानों की सभी मांग को ध्यान से सुनकर चार दशक बाद वर्ष 1999 व वर्ष 2012 के हुए समझौते पर अमल करने के लिए तेजी से कार्य शुरू करवाया और समझौते पर अमल के रूप में किसानों के पक्ष में बोर्ड बैठक व सामान्य रूप से समय-समय पर कुछ बेहद महत्वपूर्ण आदेश भी पारित करने के कार्य किया। अब किसानों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मौजूदा आवास आयुक्त रणवीर प्रसाद व ‘वसुंधरा योजना’ के अधीक्षण अभियंता राकेश चंद्रा से जल्द से जल्द उनका वर्षों से लंबित चला आ रहा तय हक व न्याय मिलने की उम्मीद है, क्योंकि वह दशकों से लंबित चली आ रही किसानों की मांग पर सकारात्मक रुख रखते हुए समझौते के अनुरूप किसानों के हक में विभागीय कार्यवाही निरंतर कर रहे हैं, जिससे की किसानों में जल्द न्याय मिलने की उम्मीद जगी है, जो विस्थापित किसानों के बच्चों के भविष्य के लिए एक बहुत अच्छा संकेत है।