डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिताजी के लिए जिस नाम का प्रयोग किया है, वह घोर आपत्तिजनक है। उसने नरेंद्र दामोदर दास मोदी की जगह ‘नरेंद्र गौतम दास’ शब्द का प्रयोग किया याने आजकल जो उद्योगपति गौतम अडानी का मामला चल रहा है, उसमें उसने अडानी के नाम का इस्तेमाल मोदी के पिताजी की जगह कर दिया। दूसरे शब्दों में यह अपमानजनक कथन यदि भूलवश भी किया गया है तो यह बताता है कि कांग्रेस कितनी दिवालिया हो गई है। उसे अब सोनिया गांधी और राहुल गांधी नहीं बचा सकते। केवल गौतम अडानी ही बचा सकता है। इसीलिए आजकल सारे कांग्रेसी अडानी के नाम की माला जपते रहते हैं। जैसे कई तथाकथित ‘अनपढ़ हिंदुत्ववादी’ यह प्रचारित करने में जरा भी संकोच नहीं करते कि जवाहरलाल नेहरु और शेख अब्दुल्ला सगे भाई थे। इस तरह के निराधार और फूहड़ बयानों से आजकल भारत की राजनीति अत्यंत त्रस्त है। यह अच्छा हुआ कि खेड़ा ने अपने बयान पर माफी मांग ली है और कहा है कि वह वाक्य अनजाने ही उसके मुंह से निकल गया था। लेकिन यह भी गौर करने लायक है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सिर्फ दो-तीन घंटे में ही खेड़ा को गिरफ्तारी से मुक्त कर दिया, जमानत दे दी और सारे मामले को सुनवाई के लिए अगले हफ्ते तक आगे बढ़ा दिया। इस मामले की पैरवी प्रसिद्ध वकील अभिषेक सिंघवी ने की थी। सिंघवी ने भी खेड़ा के बयान को अनुचित बताया और क्षमा-याचना की बात कही लेकिन सिंघवी ने खेड़ा के पक्ष में बड़े मजबूत तर्क दिए। उन्होंने कहा कि जिन पांच धाराओं के तहत खेड़ा को गिरफ्तार किया गया है, उनमें से एक धारा भी उस पर लागू नहीं होती है। खेड़ा के बयान से न तो धार्मिक विद्वेष फैलता है, न राष्ट्रीय एकता भंग होती है और न ही देश में अशांति फैलती है। सर्वोच्च न्यायालय ने खेड़ा को जमानत पर तो छोड़ दिया है लेकिन उनके कथन पर काफी अप्रसन्नता जाहिर की है, जो कि ठीक है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या असम सरकार की पुलिस ने दिल्ली सरकार की मदद से जो कुछ किया है, क्या वह ठीक है? खेड़ा को पुलिस ने हवाई जहाज से उतारकर गिरफ्तार कर लिया। क्या उसने कोई इतना संगीन अपराध किया था? कांग्रेसियों का मानना है कि उसने गौतम अडानी का नाम लेकर मोदी की दुखती रग पर हाथ धर दिया था जैसा कि बीबीसी ने मोदी पर फिल्म बनाकर किया था, इसीलिए असम और दिल्ली की पुलिस ने यह असाधारण कदम उठा लिया। इस कदम ने उक्त आपत्तिजनक कथन को देशव्यापी तूल दे दिया। हताश और निराश कांग्रेसियों के अतिवादी बयानों पर आजकल कौन ध्यान देता है लेकिन सत्तारुढ़ भाजपा की ऐसी उग्र प्रतिक्रिया का असर क्या उल्टा नहीं होता है ?