नरेंद्र तिवारी
एक संवेदनशील नागरिक होने के नाते दर्द को महसूसना, घटनाओं पर आक्रोशित होना, सरकारों से सवाल पूछना, घटनाओं के पीछे छुपे सच को उजागर करना, जिम्मेदार और लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाहीं की मांग करना स्वभाविक है, जनता का हक है, देश के हर एक नागरिक की महती जवाबदेही भी है। एमपी के इंदौर में औऱ यूपी के कानपुर देहात से उठी दर्द की कराह शमिंर्दा करने वाली है। सभ्य समाज के सिर को झुका देने वाली यह दर्दभरी सच्चाई। राज्य सरकारों की असंवेदनशील कार्यप्रणाली का उदाहरण है। दुर्भाग्य की एक राज्य में योगी का शासन है, दूसरी प्रान्त में मामा का राज कायम है। इन दोनों सूबे के मुखियाओं द्वारा लाडली लक्ष्मी और प्यारी बहना को आर्थिक सहायता देने का वादा कर नारी को सुरक्षा देने का दावा तो जोर-शोर से किया जाता है। किन्तु एमपी के इंदौर में कालेज की प्राचार्य पर आपराधिक किस्म के छात्र द्वारा पेट्रोल डालकर आग लगा देना, यूपी के कानपुर में प्रशासन द्वारा बुलडोजर के माध्यम से मकान तोड़ने की घटना के दौरान प्रमिला दीक्षित एव नेहा दीक्षित नामक माँ-बेटी की जलने से मौत हो जाने की घटना महिला सुरक्षा के दावों की पोल खोलती नजर आती है। आप किस राजनीतिक पार्टी में है। कौनसे दल के प्रति आपका झुकाव है। किस राज्य में किसका शासन है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। सरकारें आती-जाती हैं। सरकारों का काम ही आमआदमी को सुरक्षा देना उसे सम्मान से जीवन यापन की परिस्थितियां उपलब्ध कराना है। जो राज्य सरकार अपने इन दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रहेगी वह आलोचना की पात्र है। हाल की घटनाओं में तीनो महिलाओं की जलकर मौत हुई है, तड़फ कर, झुलस कर, बिलखते हुए तीन महिला इस दुनिया को छोड़ कर चली गयी। इन घटनाओं के दर्द को महसूस किए जाने की आवश्यकता है। एक भोजपुरी लोकगायिका द्वारा जब इस दर्द को जुबाँ दी गयी तो यूपी की पुलिस द्वारा लोकगायिका को नोटिस देकर सवाल पूछे गए। यह नोटिस एक कलाकार को नहीं दर्द की आवाज बुलंद करने वाले हर कलाकार, गीतकार, लेखक, पत्रकार सभी को चेतावनी है। यह संकेत है इस बात का की सरकारों को जी हुजूरी पसंद है। आंख में आंख डालकर सरकार की लापरवाहियों को उजागर करते हर सवाल को अब नोटिस का सामना करना पड़ेगा। बहरहाल विषय पुलिस का सूचना-पत्र नहीं, इंदौर और कानपुर देहात में घटित मार्मिक, दर्दनाक, विभत्स ओर भयानक अग्निकांड है। इन दोनों अग्निकांड में तीन महिलाओं की जान गई। मध्यप्रदेश के इंदौर की घटना में बीएम कालेज आॅफ इंजीनियरिग एंड फामेर्सी की प्राचार्या विमुक्ता शर्मा को कालेज के एक पूर्व छात्र ने पेट्रोल डालकर आग के हवाले कर दिया। पांच दिन तक अस्पताल में जिंदगी के लिए जंग लड़ती रही 25 फरवरी को उनकी मौत हो गयी। घटना में दोषी छात्र को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया है। उक्त मर्मान्तक घटना का कारण पूर्व छात्र की अंकसूची न मिलना बताया गया है। छात्र इससे पूर्व भी एक प्रोपेसर पर चाकू से हमला कर चुका था। कालेज स्टाफ को धमकी भी दे चुका था। जिसकी शिकायत भी पुलिस को की जा चुकी थी। अब सवाल यह उठता है कि क्या प्राचार्य विमुक्ता की मौत को रोका जा सकता था। क्या मध्यप्रदेश में पुलिस औऱ प्रशासन का डर नही है ? प्राचार्य विमुक्ता की मौत एमपी में नोकरीपेशा महिलाओं के मन मे अज्ञात भय को जन्म देने वाली घटना है। प्रदेश के शैक्षिणक प्रागणों, अध्यापकों और समाज में उक्त घटना की बहुत चर्चा है। इसे बेहद गम्भीर माना जा रहा है। प्रश्न यह भी उभर रहे है कि आपराधिक मानसिकता रखने वाले लोगो मे पुलिस प्रशासन का भय क्यों नहीं है ? घटना नम्बर 2 यूपी के कानपुर देहात के मंडौली गांव में प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाने की मुहिम के दौरान जलने से प्रमिला दीक्षित औऱ नेहा दीक्षित की मौत हो गयी थी। प्रशासन की टीम के सामने घटित इस घटना में दर्ज प्राथमिकी में शिवम दीक्षित ने आरोप लगाया की स्थानीय उप मजिस्ट्रेट (एसडीएम)के इशारे पर उनकी झोपड़ी में आग लग गयी थी। जबकि पुलिस ने पूर्व में दावा किया था कि आत्मदाह की धमकी देते हुए खुद को झोपड़ी में बंद कर लिया था। प्राथमिकी के अनुसार झोपड़ी के अंदर चार लोगों को चेतावनी दिए बिना जेसीबी चालक को ढांचा गिराने का आदेश दिया गया था। यूपी सरकार ने मामले में जांच के आदेश दिए है। पुलिस ने भी एसडीएम समेत 12-15 लोगो के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की है। इस मामले में सवाल उठते है कि प्रशासन की मौजूदगी में माँ-बेटी की मौत हो जाना कैसे सम्भव है? क्या इसे रोका नहीं जा सकता था? यह घटना सम्पूर्ण भारत मे चर्चा का विषय बनी हुई है। इस दिल दहला देने वाली घटना की निंदा की जा रही है। दोषियों को सजा देने की मांग भी की जा रही है। भारतीय समाज बेहद संवेदनशील है। इसकी व्यापक अभिव्यक्ति सोशल मीडिया पर देखी जा रही है। इस संवेदनशील विषय पर भोजपुरी लोकगीत कलाकार नेहा सिंह राठौड ने सरकारी अधिकारियों पर यूपी में का ‘बा’ सीजन 2 के अपने एक वीडियो के माध्यम से गम्भीर कटाक्ष किये जिस पर यूपी पुलिस ने इस कलाकार को सूचना-पत्र देकर सवाल पूछे है। पुलिस के नेहा को दिए सूचना-पत्र को लेकर भी सवाल उठ रहे है। कलाकार इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार के रूप में देख रहें है। दरअसल सरकारों के विरुद्ध कवि, लेखक, गायक, कलाकार लिखते-बोलते है। संविधान में नागरिकों को यह अधिकार दिया है। नेहा सिंह राठौड़ के गीत मात्र से कानपुर देहात की पुलिस औऱ यूपी सरकार की छवि खराब होने की बात बेहद हास्यास्पद है। यूपी पुलिस ने सरकार की शह पर सूचना-पत्र के बहाने कलाकारों और कलमकारों को चेतावनी है कि वह सरकार के खिलाफ न लिखें। इन सबके बीच एमपी के इंदौर में प्राचार्य विमुक्ता शर्मा की पेट्रोल डालकर हत्या किए जाने की घटना, यूपी के मंडौली गांव में माँ-बेटी की जलने से मौत की घटना बेहद निंदनीय, विचारणीय, औऱ सोचनीय है। सरकारों को चाहिए ऐसी घटनाओं को पुनरावृत्ति न हो। सरकारों का यह प्राथमिक दायित्व है कि वह नागरिकों के जीवन की रक्षा करें। उन्हें सम्मान पूर्वक जीवन व्यापन के हालातों का निर्माण करें। कलाकारों, लेखकों, साहित्याकारों, कवियों, पत्रकारों को सरकारों की आलोचनाओं पर रोकने, टोकने नोटिस भेजने के स्थान पर सरकार की कार्यप्रणाली में सुधार के प्रयास करें। जनतंत्र की यही विशेषता भी है।