नरेंद्र तिवारी
इंसानों और जानवरों के रिश्ते सदियों पुराने है। ऐसी अनेकों घटनाएं बतालाने के लिए मनुष्य समाज के सामने है, जो बताती है कि जानवरों में भी भावनाए होती है। वें भी संवेदनशील और भावुक होतें है। फिलहाल चर्चा ऑस्कर सम्मान से सम्मानित भारतीय दस्तावेजी फ़िल्म ‘द एलिफेंट व्हिसपर्स ‘की है। इस फ़िल्म को सिनेमा जगत के सबसे बड़े आस्कर पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है। इसी मंच से दक्षिण की आरआरआर नामक फ़िल्म का गाना नाटू-नाटू याने नाचों-नाचों को भी बेस्ट ओरिजनल सांग की कैटेगरी में अवार्ड प्राप्त हुआ है। भारत के लिए यह गौरव के पल है। जब एक साथ दो-दो आस्कर अवार्ड से भारतीय फिल्म जगत गौरवान्वित हो रहा है। देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित प्रमुख नेताओं एवं फिल्मी जगत की हस्तियों ने इस अवसर पर निर्माता निर्देशकों को शुभकामनाएँ दी है। आस्कर के सम्मान का वैश्विक महत्व है। फिल्में मनोरंजन का साधन मात्र नहीं है। यह समाज को संदेश देती है। मानवीय मूल्यों को स्थापित करने, प्रकृति, पर्यावरण और संस्कृति की रक्षा में फिल्मों की महत्वपूर्ण भूमिका है। फ़िल्म द एलिफेंट व्हिसपर्स हाथी और इंसान के बीच की प्रेम कहानी है। ये कहानी एक आदिवासी जोड़े और हाथी के बच्चो की असल कहानी है। जानवरों ओर इंसानों के भावनात्मक लगाव को बयाँ करती फ़िल्म द एलिफेंट व्हिसपर्स की कहानी साल 2017 की है। तमिलनाडु के मधुमलाई टाइगर रिजर्व में हाथी का बच्चा अपनी माँ से बिछड़ने के बाद मौत की कगार पर पहुंच गया था। हाथी के बच्चे को जगह-जगह घाव हो गए थै। इन घावों में कीड़े पड़ने लगे थै। उसकी पूंछ को भी कुत्तों ने काट लिया था। वनकर्मियों ने हाथ खड़े कर दिए। वनविभाग के कर्मचारियों को लगा अब घायल हाथी के बच्चे की जान नहीं बचेगी। वनकर्मियों ने जंगल मे रहने वाले बोमन नामक एक आदिवासी को हाथी की देखभाल की जवाबदेही सौप दी। आदिवासी महिला बेल्ली भी बोमन के साथ हाथी की देखभाल में जुट गई। आदिवासी कपल ने इस हाथी को रघु नाम दिया। रघु को नया जीवन मिल गया था। 2019 में बोम्मी नामक हाथी के एक और बच्चे की जवाबदेही भी इस आदिवासी कपल को मिली। फ़िल्म में हाथी के बच्चों और आदिवासी कपल के मध्य उपजे भावनात्मक संम्बंधों पर 2022 में फोटोग्राफर कार्तिकी गोंजाल्विस ने द एलिफेंट व्हिसपर्स बनाई। जिसे नेटफ्लिक्स पर जारी किया गया। इस फ़िल्म ने वर्ष 2023 में भारतीय लघु फ़िल्म की श्रेणी में आस्कर अवार्ड हासिल किया है। फ़िल्म में हाथी के बच्चे रघु, बोम्मी, आदिवासी कपल बोमन और बेल्ली के मध्य निर्मित रिश्तों की असल कहानी को प्रस्तुत किया गया है। इससे पूर्व भी हाथी और इंसान की निकटता प्रदर्शित करती फिल्मों का निर्माण भारतीय फिल्म जगत में हो चुका है। वर्ष 1971 में सबसे ज्यादा व्यावसायिक सफलता अर्जित करने वाली फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ भी इंसान और हाथी के भावनात्मक संम्बंधों को प्रदर्शित करती फ़िल्म है। इस फ़िल्म के अभिनेता राजेश खन्ना फिल्मी नाम राजू अपने पिता के संग जंगल से गुजरते वक्त कार दुर्घटना में गहरी, घनी खाई में गिर जाता है। जहां तेंदुए के हमले से हाथी राजू को बचाते है। यहीं से हाथी मेरे साथी की कहानी शुरू होती है। अपने हाथीयों और जानवरों से प्रेम के कारण राजू एक चिड़ियाघर शुरू करता है। इसमे वह बाघ, भालू, शेर और अपने हाथियों को रखता है। इन हाथियों में रामू उसके सबसे करीब हैं। राजू की मुलाकात अभिनेत्री तनुजा फिल्मी नाम तनु से होती है। दोनों के मध्य प्यार हो जाता है। प्यार शादी में बदल जाता है। जब उनका बच्चा पैदा होता है। तब तनु अपने को उपेक्षित महसूस करती है। तनु बच्चे को शारारिक नुकसान के भय से राजू को हाथी और परिवार के बीच चयन करने को कहती है। राजू पत्नी और बेटे के स्थान पर अपने जानवर दोस्तों का चयन करता है। अब हाथी रामू दोनों को एक करने की कोशिश करता है तो खलनायक सरवन कुमार के कारण उसे अपना जीवन बलिदान करना पड़ता है। फ़िल्म में खलनायक द्वारा हाथी रामू की हत्या किए जाने पर फिल्माया गीत भी बहुत संवेदशील और जीव प्रेम का संदेश देने वाला प्रतीत होता है। उक्त गाने के बोल है- ‘नफरत की दुनियाँ को छोड़कर प्यार की दुनियाँ में खुश रहना मेरे यार, गीत की सबसे भावुक कर देने वाली पक्तियां है ‘जब जानवर कोई इंसान को मारे, कहते है दुनियाँ में वहशी उसे सारे, एक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है, चुप क्यों है संसार’ इंसान और हाथियों के प्रेम को प्रदर्शित करती फ़िल्म हाथी मेरे साथी दक्षिण भारतीय निर्माता द्वारा निर्मित उस समय की सफल फिल्मों में से एक थी। दरअसल भारतीय संस्कृति में जानवरों को ईश्वरीय अवतार माना जाता है। हाथी को गणेश अवतार, वानर को हनुमान अवतार यही नहीं हिंसक शेर को दुर्गा जी का वाहन मानकर पूजा जाता है, जहरीले सांप भी शंकर जी के गले मे शोभायमान होने से नाग देवता के रूप में इंसानी आराधना के केंद्र है। इनमें हाथियों और वानरों से इंसानी करीबियों के अनेको किस्से है। भारत की महान संस्कृति में प्रकृति के प्रति भी प्रेम का रिश्ता है। पेड़-पौधे, धरती, आकाश यह सभी आस्था के केंद्र है। फिल्मों के माध्यम से वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर भी संदेश मिलता है। यह सन्देश समाज का मानस तैयार करते है। जल, जंगल, जमीन और इसमे रहने वाले तमाम जीवों के प्रति धार्मिक आस्थाओं के चलते भारतीय समाज बेहद संवेदनशील है। आस्कर विजेता फ़िल्म द एलिफेंट व्हिसपर्स भी हाथी और इंसान की इन्ही भावनाओं का चित्रण है। यह सच है कि हाथी बडे ही सामाजिक प्राणी है। यह भी सच है कि हाथी मानव समाज के आकर्षण का केंद्र रहे है। हाथी के प्रति आकर्षण चाहे उसकी विशाल देह के कारण हो या उसके मस्तमौला स्वभाव के कारण, हाथी हमेशा ही मानव के लिए कौतूहल का विषय रहे है। देश मे हाथियों और मानव के बीच संघर्षों की घटनाएँ अनेकों होती है। किंतु यह संघर्ष की नहीं इंसान ओर हाथी के मध्य प्रेम की बात करने का समय है। इंसान और मानव के प्रेम की कहानी को आस्कर से सम्मानित किया गया है। यह पवित्र भावों, जीव प्रेम और प्रकृति पर्यावरण के संरक्षण का सम्मान है।