शिशिर शुक्ला
हाल ही में ग्लोबल कमीशन ऑन द इकोनॉमिक्स ऑफ वाटर के द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, जल की कमी एवं बढ़ते तापमान के कारण आने वाले दो दशकों में खाद्य उत्पादन में कमी आ जाएगी। जीसीईडब्ल्यू की इस रिपोर्ट के अनुसार खाद्य आपूर्ति के मामले में भारत को वर्ष 2050 तक 16 प्रतिशत से अधिक की कमी का सामना करना पड़ेगा। परिणामत: खाद्य असुरक्षित आबादी में 50 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि होने का अनुमान लगाया जा रहा है। साथ ही साथ रिपोर्ट यह भी कहती है कि वर्तमान दशक के अंत तक संपूर्ण विश्व में ताजे पानी की आपूर्ति की मांग 40 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। निस्संदेह इस रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाने वाले हैं किंतु खाद्यान्न आपूर्ति से संबंधित इस नवीन समस्या की संभाव्यता पूरी तरह से पहले से ही विद्यमान ज्वलंत समस्याओं की नींव पर आधारित है। जीसीईडब्ल्यू की रिपोर्ट में खाद्यान्न पर मंडराने वाले संकट के बादलों की उत्पत्ति का कारण भी स्पष्ट रूप से बताया गया है। जल संकट एवं बढ़ता तापमान आज वैश्विक समस्या के रूप में हम सबके समक्ष उपस्थित हैं।
भारत के संदर्भ में यदि बात की जाए तो उपलब्ध आंकड़े यह बताते हैं कि वर्ष 2023 में ही भारत के द्वारा आबादी के मामले में चीन को पछाड़कर प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया जाएगा। यह सर्वविदित है कि पृथ्वी पर कुल जल उपलब्धता का एक अल्पांश ही स्वच्छ व पेयजल के रूप में उपलब्ध है। औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की बढ़ती रफ्तार ने जहां एक ओर भूजल जैसे अमूल्य संसाधन का अनियंत्रित दोहन किया है वहीं दूसरी ओर प्रकृति द्वारा भूजल स्तर के स्वतः पुनर्व्यवस्थीकरण के रास्ते को भी बंद करने का काम किया है। जल जैसा अमूल्य संसाधन जोकि जीवन हेतु एक अनिवार्य शर्त है, विवेकी मानव के स्वार्थजनित अविवेक के कारण आज अनुपलब्धता की स्थिति में आने जा रहा है। आठ बिलियन के आंकड़े को पार कर चुकी वैश्विक आबादी तीन दशकों के बाद दस बिलियन तक पहुंच जाएगी, ऐसा संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है। प्रश्न यह उठता है कि जब जनसंख्या में निरंतर वृद्धि होगी एवं इसके विपरीत संसाधनों के अविवेकपूर्ण उपयोग के कारण उनकी उपलब्धता में द्रुतगति से ह्रास होगा, तब ऐसी स्थिति में आबादी एवं संसाधनों की मात्रा के मध्य संतुलन कैसे कायम रह पाएगा। अंधाधुंध वृक्षों की कटाई, कृषि योग्य भूमि पर धनलोलुपतावश आवासों का निर्माण एवं शहरीकरण व औद्योगीकरण के नाम पर निरंतर प्रकृति के साथ हो रही अमानवीयता ने ही वैश्विक तापन जैसी ज्वलंत समस्या को जन्म दिया है। जल की कमी एवं जलवायु परिवर्तन अन्न उत्पादन हेतु अनिवार्य दशाओं पर प्रहार करके निस्संदेह खाद्य संकट जैसी समस्या को जन्म देंगे। ग्लोबल नेटवर्क अगेंस्ट फूड क्राइसिस के द्वारा जारी खाद्य संकट पर वैश्विक रिपोर्ट 2022 के अनुसार वर्ष 2021 में 40 मिलियन से अधिक लोगों ने तीव्र खाद्य असुरक्षा का अनुभव किया। यद्यपि खाद्य असुरक्षा के पीछे अनेक कारक उत्तरदायी हैं किंतु चिंताजनक बात यह है कि जल संकट एवं ग्लोबल वार्मिंग भी खाद्यान्न संकट के सक्रिय कारकों के रूप में उभर रहे हैं। भारतवर्ष के लिए यह स्थिति अपेक्षाकृत अधिक गंभीर इसलिए है क्योंकि हम शनै: शनै: जनसंख्या के मामले में तो अग्रणी होने की ओर अग्रसर हैं किंतु इस आबादी के लिए संसाधनों के बंदोबस्त की कोई ठोस योजना अभी तैयार नहीं है। खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है। आजादी के बाद जहां भारत की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुई है, वहीं खाद्यान्न उत्पादन में भी तीव्र बढ़ोत्तरी हुई है। किंतु बढ़ते तापमान की वजह से जलवायु की प्रतिकूलता एवं जल जैसे अनिवार्य संसाधन की विलुप्तता खाद्यान्न उत्पादन हेतु प्रतिकूल परिस्थितियां उत्पन्न करेगी।
निश्चित ही इस समस्या को एक दूरदर्शितापूर्ण दृष्टिकोण से देखते हुए इसके निवारण हेतु सक्रिय कदम उठाये जाने की महती आवश्यकता है। हमें यह कदापि विस्मृत नहीं करना चाहिए कि जल जीवन का सीधा पर्याय है, हर हालत में इसे संरक्षित किया ही जाना चाहिए। भूजल के सीमित व नियंत्रित दोहन एवं वर्षाजल के संचयन के द्वारा जल जैसे अमूल्य संसाधन को संरक्षित करने का प्रयास किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मानव को प्रकृति के साथ दखल के अतिरेक को पूर्णतया त्याग देना चाहिए। प्रकृति को अपना पोषक मानकर उसके संवर्धन एवं संरक्षण हेतु प्रत्येक स्तर पर तत्परता दिखाई जानी चाहिए। हमें खाद्य आपूर्ति को खतरे के घेरे से बाहर निकालने की युक्ति आज ही सोचनी व समझनी होगी अन्यथा भविष्य में यह भी एक वैश्विक संकट के रूप में उभरकर हमारे लिए परेशानी का कारण बन जाएगा।