शिक्षकों के सम्मुख आने वाली चुनोतियाँ व समाधान

डॉ. राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”

शिक्षक मनुष्य का निर्माता होता है। वह अक्षर ज्ञान से लेकर जींवन को जीने की कला सिखाता है।प्राचीन शिक्षा पद्धति में गुरुकुल में शिक्षा दी जाती थी। त्रेता में भगवान श्रीराम ने गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की। द्वापर में भगवान कृष्ण ने अपने गुरु संदीपनी से गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की।आज विद्यालयों में पढ़ाया जाता है। सरकारी व निजी स्कूलों में बच्चे पढ़ने जाते हैं। पहले मौखिक ज्ञान को कंठस्थ करवाया जाता था आज मौखिक व लिखित दोनों प्रकार की परीक्षा ली जाती है। एक शिक्षक की भूमिका बच्चों को साक्षर करने से ही खत्म नहीं हो जाती बल्कि वह अपने विद्यार्थियों में आत्मबल आदर्श नैतिक बल सच्चाई ईमानदारी लगन व मेहनत की मशाल भी जलाता है जो उसे पूर्ण मनुष्य बनाता है।आज शिक्षा क्षेत्र में स्वार्थ के कारण नये जमाने का असर नज़र आने लगा है।महंगी कोचिंग महंगे स्कूल मनमानी फीस वसूलते हैं।गरीब व्यक्ति अपने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। सरकारी स्कूल में बिल्डिंग सही नहीं है संसाधन पूर्ण नहीं है। कई कमियों के कारण अभिभावक प्राइवेट स्कूलों में ही प्रवेश दिलवाते हैं।

राजस्थान राज्य में शिक्षा के प्रति नई पहल कर सरकारी स्कूलों की दशा बदल दी है नई स्कूल बिल्डिंग बनी है। गतिविधि आधारित शिक्षा होने लगी है बच्चे खेल खेल में आनंददायी शिक्षण के माध्यम से पढ़ रहे हैं। मिड डे मील योजना से जहाँ एक ओर विद्यालय के बच्चों को कुपोषण से छुटकारा मिल गया है वहीं दूसरी ओर विद्यालय के नामांकन में भी बढ़ोतरी हुई है।छात्रवृति योजना साइकिल योजना निशुल्क पाठ्यपुस्तक योजना भी कारगर सिद्ध हुई है।

आज जरूरत है बच्चों को नैतिक आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा दी जावे। जिससे जींवन मूल्य सीखकर स्वस्थ सनाज का निर्माण हो सके।राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षकों से कई अपेक्षाएं की गई है साथ ही शिक्षक प्रशिक्षण पर भी जोर दिया गया है। समूह बनाकर कक्षा में बच्चों को बैठाकर एक एक बच्चे को उसके स्तर के अनुसार निर्धारित विषय वस्तु को पढ़ाया जावे।उन्हें पर्याप्त होम वर्क दिया जावे। साप्ताहिक पाक्षिक मासिक त्रैमासिक मूल्यांकन पर भी जोर दिया जा रहा है। वर्ष भर के पाठ्यक्रम को भी भाग 1,2,3 में विभाजित कर दिया है। प्रथम द्वितीय व तृतीय योगात्मक मूल्यांकन किया जाने लगा है। सरकारी स्कूलों की पढ़ाई इन सभो नावचारो के कारण निजी स्कूलों से भी बेहतर हो गई है।

बच्चों को शनिवार को नो बेग डे यानि बस्ता मुक्त दिवस पर गतिविधि करवाई जाती है।जिससे बच्चों को सामान्य ज्ञान अपडेट रहता है। गतिविधि के जरिये अपने राज्य व देश की जानकारी प्राप्त होती है।

आज अध्यापकों के सामने कई चुनोतियाँ है। श्रेष्ठ परीक्षा परिणाम देना। नामांकन एवं ठहराव पर ध्यान देना आदि।श्रेष्ठ संवेदनशील युवा पीढ़ी को तैयार करना सबसे बड़ी चुनोती है।

मोबाइल व मीडिया के कारण आज की युवा पीढ़ी ने स्वतंत्र चिंतन करना छोड़ दिया है। आज शिक्षकों को चाहिए कि वे विद्यार्थियों के प्रति ईमानदार सोच रखते हुए उन्हें मानवीय गुणों की ओर प्रेरित करें।इस समय शिक्षकों की रचनाशीलता विवेक ज्ञान कल्पनाशीलता का समुचित उपयोग करने की आवश्यकता है।

आज बालिका शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। बालिका शिक्षा से दो परिवारों में उजाला होता है। आज की सदी में वैश्वीकरण उदारीकरण व निजीकरण होने से शिक्षा का स्वरूप ही बदलता जा रहा है।आज निर्धन व प्रतिभाशाली विद्यर्थियों को चाहते हुए भी आगे बढने का शुभ अवसर प्राप्त नहीं होता है।

शिक्षा आजीविका का नहीं जींवन का साधन है।शिक्षा के साथ ही बच्चों को व्यावसायिक शिक्षा यानी रोजगारपरक शिक्षा भी दी जानी चाहिए जिससे युवा हुनर प्राप्त कर अपनी रोजी रोटी कमा सके। रोजगार से जुड़ सके। गांधी जी ने कहा था कि सिलाई कटाई बुनाई क्राफ्ट कला आदि सीखना चाहिए।सतत शिक्षा का प्रबंध होना चाहिए।मनुष्य जीवन भर शिक्षार्थी रहे।घर समाज व परिवेश से बालक कठिन से कठिन भाषा भी बोलना सीख लेते हैं शिक्षक शिक्षार्थी व अभिभावक तीनों का सतत सम्पर्क होना चाहिए। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना शिक्षक के समक्ष सबसे बड़ी चुनोती होती है। आज के शिक्षक को पोषाहार का कार्य चुनाव कार्य पुस्तकें लाना स्वास्थ्य परीक्षण करने सहित कई कामो में लगा दिया जाता है। बाबू के काम तो शिक्षक करने लगे हैं। ऐसे में समय अभाव से बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है वे पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं।कई डाक बनाना ऑफ़लाइन ऑनलाइन करना आदि कार्यों में उलझा रहता है ।

गांधी जी का शिक्षा दर्शन आज भी प्रासंगिक है।सत्य अहिंसा सेवा त्याग आदि जिन बातों की जींवन में प्रधानता है उनकी प्राप्ति तो शिक्षा से ही सम्भव है।गांधी जी शिक्षा को व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास का साधन मानते थे।
सा विद्या या विमुक्तये कहा भी गया है।शिक्षा शारीरिक मानसिक नैतिक आध्यात्मिक सभी प्रकार के विकास में सहायक होती है।शिक्षा में आत्मनिर्भरता की भावना उतपन्न करने की भावना होना चाहिए।विद्यालय में विद्यार्थी जो ज्ञान प्राप्त करते है उनसे वे सामाजिक वातावरण को समझ सकते हैं।बालक जिस समुदाय का सदस्य होता है उस समुदाय के सामान्य हित के अनुसार ही विद्यार्थी अपनी क्षमता का विकास करे।

गाँधीजी शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य अंतिम वास्तविकता का अनुभव एवं आत्मानुभूति का ज्ञान मानते थे।इसके लिए नैतिक व चारित्रिक विकास को उन्होंने महत्वपूर्ण बताया।