हिन्दू राष्ट्र संबोधन: डॉ: केशव बलिराम हेडगेवार

प्रो: नीलम महाजन सिंह

आजकल जब ‘हिन्दू राष्ट्र’ की चर्चा होती है तो, अनेक राजनीतिक विद्यार्थियों को ये नहीं मालूम कि, इस शब्द को किसने उजागर किया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, देश की राजनीतिक व्यवस्था पर विशेष रूप से पथ-प्रदर्शक है। यह सप्ताह डॉ: केशव बलिराम हेडगेवार (01 अप्रैल 1889 – 21 जून 1940), जिन्हें उनके उपनाम ‘डॉक्टरजी’ के नाम से भी जाना जाता है, एक चिकित्सक व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक सरसंघचालक (प्रमुख) थे, की याद में मनाया जा रहा है। हेडगेवार ने ‘हिंदू राष्ट्र बनाने के इरादे से हिंदुत्व की विचारधारा’ के आधार पर, 1925 में नागपुर में आरएसएस की स्थापना की। डॉ: केशव बलिराम हेडगेवार, कंदकुर्थी, मध्य प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान निज़ामाबाद, तेलंगाना) से संबंध रखते थे। हेडगेवार का जन्म एक तेलुगु भाषी, नागपुर में देशस्थ ‘ऋग्वेदी ब्राह्मण’ परिवार में हुआ। उनके माता-पिता बलिराम पंत हेडगेवार और रेवतीबाई आम साधनों के परिवार से थे। जब हेडगेवार तेरह वर्ष के थे; उनके माता-पिता दोनों की 1902 में प्लेग की महामारी में मृत्यु हो गई थी। हेडगेवार के चाचा; बी.एस. मुंजे ने यह सुनिश्चित किया कि वे केशव बलिराम हेडगेवार को अच्छी शिक्षा प्राप्त करना जारी रखेंगें और युवा हेडगेवार के संरक्षक व पिता समान बन गए। उन्होंने नागपुर के ‘नील सिटी हाई स्कूल’ में अध्ययन किया, जहाँ से उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा जारी परिपत्र के उल्लंघन में ‘वंदे मातरम’ गाते हुए निष्कासित कर दिया गया था। परिणामस्वरूप, उन्हें यवतमाल में राष्ट्रीय विद्यालय और बाद में पुणे में हाई स्कूल की पढ़ाई करनी पड़ी। जून 1916 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से परीक्षा कर, उन्होंने एक साल की शिक्षुता पूरी की और 1917 में एक चिकित्सक के रूप में नागपुर लौट आए। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, हेडगेवार बंगाल में अनुशीलन समिति में शामिल हो गए, जो बंकिम चंद्र चटर्जी के लेखन से प्रभावित थे। ‘हिंदू प्रतीकवाद’ में निहित इस समूह में हेडगेवार की दीक्षा, आरएसएस बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। हेडगेवार; विनायक दामोदर सावरकर के ग्रंथ; ‘हिंदुत्व’ से गहरे प्रभावित थे। डॉ: हेडगेवार, समर्थ रामदास के ‘दासबोध’ और लोकमान्य तिलक के ‘गीता रहस्य’ से भी अत्यधिक प्रभावित थे। उनके पत्रों में अक्सर ‘तुकाराम’ के उद्धरण होते थे। 1920 के दशक में हेडगेवार ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया, लेकिन उनकी नीतियों और राजनीति से उनका मोहभंग हो गया। वे पार्टी के स्वयंसेवी प्रभाग – ‘हिन्दुस्तानी सेवा दल’, जो कांग्रेस सेवा दल के पूर्ववर्ती थे, के सक्रिय सदस्य थे। वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, विनायक दामोदर सावरकर, बाबाराव सावरकर, अरविंद घोष और बी.एस. मुंजे के लेखन से गहरे प्रभावित थे। उनका मानना ​​था, “हिंदुओं की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत भारतीय राष्ट्रीयता का आधार होनी चाहिए”। 1939 में आरएसएस की एक बैठक के दौरान हेडगेवार और उनके शुरुआती अनुयायी; विजयादशमी के दिन आरएसएस की स्थापना, हिंदू समुदाय को उसके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए संगठित करने और ‘अखंड भारत’ के लिए ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ प्राप्त करने के लिए एक उपकरण बनाने के उद्देश्य से की थी। हेडगेवार ने अपने हिंदू संगठन के लिए ‘राष्ट्रीय’ शब्द का सुझाव दिया, क्योंकि वे ‘राष्ट्रीय के साथ हिंदू पहचान को फिर से स्थापित करना चाहते थे’। हेडगेवार ने 1936 में राष्ट्र सेविका समिति नामक संगठन की महिला शाखा की स्थापना का समर्थन किया। शुरुआती स्वयंसेवकों में भैयाजी दानी, बाबासाहेब आप्टे, एम.एस. गोलवलकर, बालासाहेब देवरस और मधुकर राव भागवत शामिल थे। संघ; नागपुर व आसपास के जिलों में बढ़ रहा था और यह जल्द ही अन्य प्रांतों में फैलने लगा। हेडगेवार ने कई स्थानों पर जाकर युवाओं को संघ कार्य करने के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे उनके सभी सहयोगी उन्हें प्यार से ‘डॉक्टर जी’ बुलाने लगे थे। 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद, हेडगेवार ने गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से स्वस्थ दूरी बनाए रखी। इसके बजाय उन्होंने स्थानीय स्वयंसेवकों को संघर्ष में अपनी मर्जी से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कियास्वतंत्रता आंदोलन में उत्साह की कमी की आरएसएस विरोधी समूहों द्वारा भारी आलोचना की जाती है। कुछ सूत्रों के अनुसार, हेडगेवार गांधी के नेतृत्व वाले आंदोलन में शामिल नहीं होने के लिए आरएसएस के कार्यकर्ताओं को सक्रिय रूप से हतोत्साहित कर रहे थे। आरएसएस के जीवनी लेखक सी. पी. भिशीकर कहते हैं, “संघ की स्थापना के बाद, ‘डॉक्टर साहब’ अपने भाषणों में केवल ‘हिंदू संगठन की बात करते थे’। जब कांग्रेस ने दिसंबर 1929 में अपने लाहौर सत्र में ‘पूर्ण स्वराज’ प्रस्ताव पारित किया, और सभी भारतीयों से 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया, तो हेडगेवार ने एक परिपत्र जारी कर सभी आरएसएस शाखाओं पर भगवा ध्वज फहराने और शस्त्र पूजा करने के लिए कहा। अप्रैल 1930 में, महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ ‘सत्याग्रह’ का आह्वान किया। गांधी ने स्वयं अपनी दांडी यात्रा शुरू करते हुए ‘नमक सत्याग्रह’ शुरू किया। डॉ: हेडगेवार ने केवल व्यक्तिगत रूप से भाग लेने का फैसला किया। हेडगेवार ने ज़ोर देकर कहा कि उन्होंने 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में एक व्यक्तिगत क्षमता में भाग लिया था, न कि आरएसएस के सदस्य के रूप में। उनकी चिंता आरएसएस को राजनीतिक क्षेत्र से बाहर रखने की थी। हेडगेवार के लिए, भारत एक प्राचीन सभ्यता थी व स्वतंत्रता संग्राम लगभग 800 वर्षों के विदेशी शासन के बाद, मुख्य रूप से मुगलों और अंग्रेजों द्वारा हिंदुओं के लिए एक राष्ट्र को स्थापित करने का एक प्रयास था। हेडगेवार के अनुसार तिरंगा भारत के प्राचीन अतीत को अंकित नहीं करता था। हेडगेवार ने कहा कि आरएसएस को केवल ‘मानव निर्माण’ में शामिल होना चाहिए। वह हिंदू समाज और सदियों से चली आ रही पिछड़ी प्रथाओं के आलोचक थे। उन्होंने लिखा, “आरएसएस को दुनिया भर में चरित्रवान और सम्मान के योग्य लोगों को स्थापित करने के लिए पूरी तरह से समर्पित होना चाहिए”।लक्ष्मीबाई केलकर; राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापक थीं। संगठन की स्थापना से पहले, केलकर ने डॉ: के.बी. हेडगेवार; से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ही एक महिला शाखा शुरू करने की आवश्यकता के संबंध में उन्हें समझाने के लिए चर्चा की। हालांकि, हेडगेवार ने लक्ष्मीबाई केलकर को एक पूरी तरह से अलग संगठन स्थापित करने की सलाह दी, जो स्वायत्त और आरएसएस से स्वतंत्र होगा, क्योंकि दोनों समूह वैचारिक रूप से समान थे। इसके बाद, केलकर ने 25 अक्टूबर 1936 को वर्धा में राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की। अक्सर डा: हेडगेवार को पुराने कमर दर्द की शिकायत रहती थी। उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियों को एम.एस. गोलवलकर को सौंपना शुरू कर दिया, जो बाद में आरएसएस सरसंघचालक बने। उन्होंने 1940 में वार्षिक संघ शिक्षा वर्ग में भाग लेेेते हुए, स्वयंसेवकों को अपना अंतिम संदेश देते हुए कहा, “आज मैं अपनी आँखों के सामने एक लघु हिंदू राष्ट्र देख रहा हूँ”। उनकी मृत्यु 21 जून 1940 को नागपुर में हो गई। उनका अंतिम संस्कार नागपुर के रेशम बाग इलाके में किया गया था, जिसे बाद में ‘हेडगेवार स्मृति मंदिर’ के रूप में विकसित किया गया। पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1999 में एक डाक टिकट जारी करते हुए;
डा: हेडगेवार को महान देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी व राष्ट्रवादी के रूप में वर्णित किया। भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नागपुर में हेडगेवार के जन्मस्थान की यात्रा के दौरान हेडगेवार को “भारत माता का एक महान पुत्र” के रूप में वर्णित किया था। यही कारण है कि हिंदू राष्ट्र के साथ डॉ: केशव बलिराम हेडगेवार नामित हैं। इतिहास घटनाक्रम का संकलन है परन्तु इसकी व्याख्या विविध प्रकार से की जानी चाहिए।