सीता राम शर्मा ” चेतन “
देश के चौदह विपक्षी दल भ्रष्टाचार पर होती तेज कार्रवाई से बौखलाए रोते बिलखते सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो पांच अप्रैल को उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह से उन्हें उनकी वास्तविक औकात दिखाते हुए फटकार लगाई वह निःसंदेह एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों का अपनी न्यायपालिका पर विश्वास बढ़ा गई । गौरतलब है कि पिछले लगभग एक वर्ष से मोदी सरकार ने जिस तरह देश को राजनीतिक भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के राजनीतिक स्वच्छता अभियान को गति देने के साथ उसका दायरा बढ़ाया है, उससे देश के लगभग सभी विपक्षी दलों के छोटे से बड़े भ्रष्टाचारी नेताओं में खलबली मच गई है । कुछ जेल के अंदर हैं तो बहुतायत जेल, जांच एजेसियों और न्यायालय की चौखट पर खड़े बहुत निकट भविष्य में काल कोठरी में बंद होने के भय से बुरी तरह भयभीत दिखाई दे रहे हैं । यह जाना पहचाना चिर परिचित अनुभव सिद्ध और स्वाभाविक सत्य है कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था से जुड़े हर भ्रष्टाचारी नेता और दल खुद के भ्रष्टाचार के पर्दाफाश से जब अत्यंत भयभीत होते हैं तो दंड के भय से वह या तो दल और दलगत नीतियों को बदलते हैं या फिर सत्ताधारी दल पर बदले की कार्रवाई का आरोप लगाते हुए जांच एजेंसियों और न्यायालय की कार्यशैली और ईमानदारी तक पर सवाल उठाने लगते हैं ! कई बार तो जांच के कटघरे में खड़े दोषियों द्वारा सत्ताधारी नेताओं और जांच अधिकारियों को बहुत स्पष्ट और सीधे तौर पर यह धमकी भी दी जाती है कि वह यह नहीं भूले कि सत्ता बदलती रहती है, आज वे सत्ता में हैं तो कल हम भी होंगे और तब सबसे आज का हिसाब लिया जाएगा ! अपवाद छोड़कर ऐसी अधिकांश धमकियों का एक ही सच होता है और वह होता है उनका दोषी होना ।
बहरहाल अभी बात राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार को लेकर वर्तमान समय की, जिसकी सबसे अच्छी बात यह है कि मोदी सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध शुरु की गई निर्णायक जंग, भ्रष्टाचार के संदिग्ध तमाम नेताओं के द्वारा लगाए जा रहे तमाम आरोप-प्रत्यारोप और दी जा रही धमकी तथा गीदड़ भभकियों के बावजूद भी जारी है । रही बात भ्रष्टाचार के विरुद्ध छेड़ी गई इस जंग के भविष्य की, तो मोदी जैसे जीवट, लोकप्रिय और निर्भीक केंद्रीय नेतृत्व में राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध जारी यह जंग आने वाले समय में भी ना सिर्फ जारी रहेगी बल्कि तेजी से अपने अंजाम तक भी पहुंचेगी, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए ! संदेह इसलिए नहीं होना चाहिए क्योंकि 2014 से मोदी के नेतृत्व और पूर्ण बहुमत वाली वर्तमान सरकार ने जिस तरह देश को 2014 से पहले लंबे समय तक चली आ रही राजनीतिक अस्थिरता और दुर्दशा से उबारते हुए क्रांतिकारी बदलाव और विकास वाली सरकार दी है, उसके अगले वर्षों में भी बने रहने की अकाट्य और प्रबल संभावनाएं हैं । अनुमानित शत-प्रतिशत सच्चाई तो यह है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध निर्णायक जंग छेड़ने की जो बात मोदी ने उत्तर प्रदेश चुनाव परिणाम के बाद कही थी और फिर प्रारंभ भी कर दी है, यदि यह आगे भी तेज होती गई तो 2024 लोकसभा चुनाव के परिणाम में भाजपा की जीत के नए कीर्तिमान स्थापित करने में भी यह निर्णायक सिद्ध होगी । तब इस बात में भी कोई संदेह नहीं बचेगा कि मोदी सरकार का आगामी कार्यकाल ना सिर्फ अब से ज्यादा स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त होगा बल्कि 2029 तक भ्रष्टाचार मुक्त राजनीतिक व्यवस्था का वह परिष्कृत स्वरुप इतना लोकप्रिय और जन कल्याणकारी हो जाएगा कि बदले की बात करती आज की भ्रष्टाचारी ताकतें अगले कुछ दशक तक सत्ता के षड्यंत्र रचते हुए ही अपना पापी अस्तित्व तक खत्म कर लेंगी । रही बात वर्तमान विपक्षी दलों के द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपी सत्ता पक्ष के कुछ भ्रष्ट, दलबदलू और संदिग्ध भाजपाई नेताओं की तो स्वाभाविक रूप से अगले कुछ कार्यकाल में वे खुद-ब-खुद सुधर जाएंगे क्योंकि यह संभावित और स्वाभाविक सत्य है कि जब देश की राजनीतिक व्यवस्था का चरित्र और कार्य संस्कृति बदल जाएगी और भ्रष्टाचार त्वरित दंड और भय का भागी कृत्य हो जाएगा तो राजनेताओं की उससे दूरी उनका स्वभाव भी होगी और उनकी विवशता भी ।
निकट भविष्य में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के भ्रष्टाचार मुक्त भविष्य का ऐसा अनुमान वर्तमान में अति सकारात्मकता और आशावाद की अति ही कहा जा सकता है इसलिए फिलहाल प्रमुखता से जिक्र देश के चौदह विपक्षी दलों की उस याचिका, उस पर सुप्रीम सुनवाई और झड़ाई डपटाई का, जिसके बाद चौदह विपक्षी दलों के काबिल कांग्रेसी वकील अभिषेक मनु सिंधवी ने बड़े बेआबरु होकर याचिका वापस ले ली । गौरतलब है कि दायर याचिका में सिंधवी ने केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध जांच एजेंसियों के द्वारा एकतरफा और तेजी से कार्रवाई कराए जाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी और सीबीआई के द्वारा की जाने वाली जांच के मामलों में 600 छह सौ प्रतिशत की वृद्धि हुई है ! अर्थात 2014 में मोदी सरकार बनने से पहले यदि राजनीतिक भ्रष्टाचार और अपराध का एक मामला ईडी और सीबीआई को सौंपा जाता था तो अब उसकी संख्या 600 छह सौ है ! मुझे लगता है आम भारतीय नागरिक के साथ मोदी सरकार को भी काबिल वकील के द्वारा दी गई इस जानकरी के लिए उनको धन्यवाद देना चाहिए । देश की सबसे बड़ी और विश्वसनीय जांच एजेंसियों का अधिकाधिक सदुपयोग अकाट्य रुप से यह सत्य सिद्ध करता है कि भ्रष्टाचार, अन्याय और अपराध के विरुद्ध मोदी सरकार पहले की सरकारों से छह सौ गुना ज्यादा सक्रियता के साथ काम कर रही है । आइए, जांच एजेंसियों की जांच से पीड़ित चौदह विपक्षी दलों के वकील अभिषेक मनु सिंधवी की कुछ और दलीलों पर भी गौर कीजिए । सिंधवी ने याचिका में ईडी और सीबीआई जांच का ब्यौरा देते हुए कहा था कि 2014 से 2022 के बीच ईडी द्वारा कुल 121 राजनीतिक नेताओं की जांच की गई है, जिसमें 95 प्रतिशत नेता विपक्षी दलों से हैं । इस दौरान सीबीआई ने भी कई मामलों में 124 नेताओं से पूछताछ की है जिसमें 108 नेता विपक्षी दलों के हैं । यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि ईडी जांच प्रतिशत में है और सीबीआई जांच संख्या में है ( समाचारपत्र में प्रकाशित रिपोर्ट और आंकड़ों के अनुसार ) क्योंकि ईडी जांच में विपक्षी संदिग्ध अपराधी नेताओं का प्रतिशत 95 है जबकि सीबीआई के मामलों का प्रतिशत 87 है । अर्थात सीबीआई द्वारा जांच किए गए कुल मामलों में 13 प्रतिशत नेता सत्ता पक्ष के भी थे, जबकि ईडी द्वारा जांच किए गए मामलों में भी 5 प्रतिशत नेता सत्ता पक्ष के थे । अर्थात विपक्षी दलों के वकील की दलील से यह तो बिल्कुल स्पष्ट है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में देश की प्रमुख जांच एजेंसी ईडी और सीबीआई ने सिर्फ विपक्षी दलों के नेताओं के अपराध पर ही जांच नहीं की है । अतः कम से कम सीबीआई या ईडी को अब पिंजरे में बंद तोता तो नहीं कहा जा सकता है, जैसा कि 2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली युपीए सरकार के समय कोयला आवंटन घोटाले की सुनवाई करते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था ।
अंत में बात चौदह विपक्षी दलों की याचिका के उस मुख्य कारण और दलील की जो उन्होंने अपने वकील सिंधवी के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के सामने रखी थी । जिस पर सख्त होते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि याचिका में मांग है कि जांच के मामलों में गिरफ्तारी तब की जाए जब शारीरिक चोट पहुंचाई गई हो या हत्या आदि हो । याचिका में मांग की गई है कि सात साल से कम और सात साल से ज्यादा सजा के अपराधों में गिरफ्तारी और जमानत के अलग-अलग दिशा-निर्देश तय किए जाएं । राजनीतिक दलों की इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने बेहद सख्त लहजे में कहा कि सिर्फ राजनेताओं का मुद्दा उठाने वाली इस याचिका पर गिरफ्तारी और जमानत के बारे में दिशा-निर्देश तय करने का आदेश नहीं दे सकते । याचिका दाखिल करने वालों में कोई भी पीड़ित या सामान्य नागरिक नहीं है और राजनेताओं को कोई विशेष छूट प्राप्त नहीं है । वे भी सामान्य नागरिकों की तरह ही हैं । उनके साथ भी सामान्य नागरिकों जैसे नियम लागू होंगे । गौरतलब है कि यह याचिका भ्रष्टाचार पर होती कार्रवाईयों के विरोध में देश के चौदह राजनीतिक दलों के द्वारा दी गई थी जिसमें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल-कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, जनता दल युनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड मुक्ति मोर्चा, शिवसेना उद्भव, नेशनल कांफ्रेंस, सीपीआई, सीपीएम, डीएमके, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी और भारत राष्ट्र समिति शामिल थी । हालांकि सर्वोच्च न्यायालय की सख्त टिप्पणी के बाद सिंघवी ने याचिका वापस ले ली पर विपक्षी दलों द्वारा बौखलाहट में उठाया गया यह कदम देश और देशवासियों के सामने भ्रष्टाचार को लेकर उनका वास्तविक चित्त और चरित्र बेनकाब कर गया, जो 2024 की उनकी विपक्षी एकता की विवशता को समझने और समझाने के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगा । रही बात विपक्षी दलों की, तो उनकी हालत अब आ बैल मुझे मार वाली होकर रह गई है । जिससे छुटकारे के लिए लगभग सभी विपक्षी दलों के मुखिया का राजनीतिक सन्यास जरुरी होगा क्योंकि वे कटघरे में हैं ! आ सकते हैं !!