इंद्र वशिष्ठ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के लिए शौचालय बनवाने का अभियान चलाया हुआ है, लेकिन दूसरी ओर देश की राजधानी दिल्ली में एमसीडी द्वारा महिलाओं के लिए बनाए गए शौचालयों का महिलाएं ही इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं.
महिलाओं के लिए शौचालय बनाने के नाम पर सरकारी खजाने का किस तरह से दुरूपयोग किया जा रहा है. इसका अंदाज़ा इस मामले से ही लगाया जा सकता है.
महिला शौचालय पर ताला-
त्रीनगर इलाके के बीचों बीच वर्धमान वाटिका नामक एक पार्क है. पार्क का एक हिस्सा महिलाओं के लिए रिजर्व है. इसमें महिलाओं के लिए एक शौचालय भी बनाया गया है. लेकिन इस शौचालय पर हमेशा ताला लगा रहता है.
महिलाएं खासकर बुजुर्ग महिलाएं झाडियों की आड़ में लघु शंका करने को मजबूर हैं. यह पत्रकार हमेशा इस शौचालय पर ताला लगा ही देख रहा है.
सरकारी खजाने का दुरुपयोग-
एमसीडी के अफसर और निगम पार्षद किस तरह से सरकारी खजाने का दुरुपयोग करते हैं इसका भी यह जीता जागता उदाहरण है यह शौचालय जो हमेशा बंद ही रहता है. उसका एक-दो साल पहले पुनर्निर्माण /रिनोवेशन भी करा दिया गया. इसके बाद फिर ताला जड़ दिया गया. पुनर्निर्माण के नाम पर सिर्फ शौचालय की दीवारों पर टाइल्स लगा दी गई. जबकि पुनर्निर्माण में तो पुराने शौचालय को तोड़ कर उसके स्थान पर नया शौचालय बनाया जाना चाहिए था.
एमसीडी कमिश्नर जांच कराएं-
एमसीडी कमिश्नर को इस मामले की जांच करानी चाहिए ताकि पता चल सके कि ठेकेदार को पुनर्निर्माण/नया शौचालय बनाने के लिए भुगतान किया गया है या सिर्फ टाइल्स बदलने के कार्य के लिए पैसा दिया गया. निष्पक्ष जांच से ही पता चल पाएगा कि इस मामले में घपला/भ्रष्टाचार हुआ है या नहीं.
सवाल उठता है कि जब यह शौचालय महिलाओं के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध ही नहीं है तो इस पर दोबारा सरकारी धन क्यों खर्च किया गया. महिलाओं के लिए शौचालय उपलब्ध कराने के नाम पर खानापूर्ति कर दी गई. क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है.
निगम पार्षद की जिम्मेदारी-
यह शौचालय महिलाओं के लिए उपलब्ध कराना एमसीडी के अफसरों के साथ साथ इलाके की निगम पार्षद की भी जिम्मेदारी है.
इस समय इस इलाके में भाजपा की निगम पार्षद मीनू वीरेंद्र गोयल है. उनसे पहले यहां पर भाजपा की ही निगम पार्षद मंजू संजय शर्मा थी. महिला पार्षद द्वारा समय समय पर पार्क का दौरा किया जाता रहा है.
दौरे में महिला पार्षद को क्या बंद पड़ा शौचालय नजर नहीं आया ? पार्षद को महिलाओं से मिलकर उनकी समस्याओं के बारे में मालूम करना चाहिए.
नि:शुल्क सेवा में वसूली क्यों-
इसी पार्क के बाहरी हिस्से में भी गुरुद्वारा के सामने भी एक शौचालय बना हुआ है. यह शौचालय गंदा/बदबूदार है. पानी का इंतजाम न होने के कारण आठ अप्रैल को यह शौचालय भी बंद कर दिया गया.
यह शौचालय नि:शुल्क है . शौचालय की दीवार पर रंग से नि:शुल्क लिखा भी गया था जिसे मिटा दिया. यहां शौचालय का इस्तेमाल करने वालों से अवैध वसूली भी की जाती रही है. एमसीडी कर्मचारियों की जिम्मेदारी है कि वह निगरानी रखें, ताकि कोई अवैध वसूली न कर सके. नि:शुल्क सेवा इस तरह से लिखा जाए ताकि कोई उसे मिटा न सके.पार्क के दूसरे फल मंडी वाले गेट के पास बना शौचालय भी गंदा ही रहता है. इस वजह से लोग वहां खुले में पेशाब करते हैं.
पार्क बना मयखाना-
इस शौचालय के बाहर और वर्धमान पार्क के अंदर खासकर रात के समय खुलेआम शराब पी जाती है. इस पत्रकार द्वारा इस बारे में समय समय पर वरिष्ठ पुलिस अफसरों को सूचना देने पर कार्रवाई भी की जाती रही है लेकिन कुछ दिन बाद यह सब दोबारा शुरू हो जाता है.
बीट वालों पर एक्शन हो-
जब तक इलाके के बीट अफसरों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई नहीं की जाएगी, यह सिलसिला बंद नहीं हो सकता. पार्क में कुछ ऐसे आवारा लोग होते, जो गालियां बकते है खुले में पेशाब करते है, ताश की आड़ में जुआ खेलते हैं.
जिसके कारण पार्क में महिलाओं का घूमना मुश्किल हो जाता है. ऐसा नहीं है कि बीट वालों को उनके बारे में मालूम नहीं है. बीट वाले भी ऐसे लोगों के साथ देखें जाते हैं. बीट वालों के मोबाइल फोन की डिटेल्स निकाली जाए तो ऐसे कुछ लोगों के उसमें फोन नंबर भी मिल सकते हैं.
बीट बूथ के सामने अवैध कब्जा ?
इसी इलाके के ओंकार नगर में नजफगढ़ नाले पर केशव पुरम थाना पुलिस का बीट बूथ नंबर सात बना हुआ है. इसके ठीक सामने ही तुलसी नगर पुल के किनारे पर एमसीडी का पुरुषों के लिए शौचालय है. उसके बराबर में ही महिला शौचालय बना हुआ था. यह शौचालय भी महिलाओं के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध नहीं हुआ. अब इस महिला शौचालय पर ही अवैध कब्जा कर लिया गया है.
इस पत्रकार ने इस मामले की सूचना वरिष्ठ पुलिस अफसरों को दी. उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी जितेंद्र कुमार मीणा ने बताया कि मामले की जांच कराई जा रही है.
निगम पार्षद मीनू गोयल के पति वीरेंद्र गोयल को भी सूचना दी गई. वीरेंद्र गोयल को इस बारे में कुछ मालूम नहीं था, जबकि एमसीडी अगर कोई भी वैध निर्माण कार्य करेगी तो उसके बारे में इलाके के निगम पार्षद को मालूम होता ही है.
सात अप्रैल को वीरेंद्र गोयल उस स्थान पर गया, वहां उसे बताया गया कि एमसीडी अपना सामान रखने के लिए स्टोर बना रही है.
वीरेंद्र गोयल को इस पत्रकार ने बताया कि यहां तो पहले महिला शौचालय था.
शौचालय उपलब्ध कराएं-
सवाल यह उठता है कि शौचालय बनाने के बाद उसे महिलाओं के लिए उपलब्ध कराना एमसीडी का दायित्व है. सिर्फ शौचालय बना कर उस पर ताला लगा देना या उसे स्टोर बना देना तो सरकारी धन की भी बरबादी है.
शौचालय बना कर जनता को सुविधा उपलब्ध कराना तो सही है लेकिन स्टोर बना देना, तो अवैध कब्जा करना ही हुआ . स्टोर तो किसी अन्य सरकारी परिसर में भी बनाया जा सकता है . सड़क या फुटपाथ पर अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए. अवैध निर्माण और अतिक्रमण करने वाले लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने वाली एमसीडी द्वारा खुद अवैध निर्माण और अतिक्रमण करना उनकी भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है.
अवैध कब्जा ?-
यह निर्माण कार्य वाकई वैध है या नहीं यह तो जांच से ही साबित हो सकता हैं.
पुलिस अफसरों को इस निर्माण कार्य की फाईल मंगानी चाहिए. यहीं नहीं एमसीडी के वरिष्ठ अफसरों से पूछताछ करके सच्चाई पता लगानी चाहिए. सिर्फ किसी के कहने भर से भरोसा नहीं करना चाहिए. वरिष्ठ पुलिस अफसर यह तो जानते ही हैं कि कोई भी सरकारी निर्माण कार्य कराने की तो एक पूरी प्रक्रिया होती. कितने बजट का काम है किस ठेकेदार को दिया गया आदि आदि.
इस निर्माण में पुरानी ईंटों और पुरानी सिल्लियों का इस्तेमाल किया गया है.
एमसीडी अगर कोई वैध निर्माण कराती तो उसमें पुराने सामान का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
बूथ किराये पर दे दिया-
केशव पुरम थाना के इस बीट बूथ की भी रोचक कहानी है. करीब तीन दशक पुरानी बात है बीट में तैनात पुलिस वालों ने बूथ को ही किराये पर दे दिया था . इस पत्रकार ने यह जानकारी अशोक विहार के तत्कालीन एसीपी बालाजी श्रीवास्तव को दी. तब उन्होंने बीट में तैनात पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की.
दिल्ली पुलिस में कार्यवाहक कमिश्नर रहे 1988 बैच के आईपीएस बालाजी श्रीवास्तव इस समय पुलिस अनुसन्धान एवम विकास ब्यूरो ( बीपीआरएंडडी ) में महानिदेशक है.
(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)