- गहलोत-पायलट गुट की लड़ाई से कैसे होंगी सरकार रीपिट ?
नीति गोपेंद्र भट्ट
नई दिल्ली : पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट द्वारा अपनी एक नई राजनीतिक पारी शुरू करने और कांग्रेसपार्टी छोड़ने की घोषणा कर एक बड़ा धमाका करने की खबरों की रविवार को आख़िर हवा निकल गई। हमनेआज इस स्तंभ में लिखा था कि ऐसा नही होने वाला है और सचिन पायलट ग्रूप राज्य विधानसभा चुनाव से ठीकपहलें एक बार फिर से गहलोत सरकार पर ज़बर्दस्त दवाब बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है औरउनकाअसली मक़सद आने वाले चुनाव के लिए गठित होने वाली प्रदेश चुनाव संयोजन समिति पर कब्जा करनाहै ताकि वे अपने समर्थक उम्मीदवारों को अधिक से अधिक संख्या में टिकट दिलवा कर चुनाव में विजय श्रीमिलने पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर क़ाबिज़ हों सकें।
इस पृष्ठभूमि में रविवार को सचिन पायलट ने अपने तरकश से आख़िरी तीर निकाल कर विधान सभा चुनाव केमुहाने पर खड़े और देश में कांग्रेस शासित गिने चुने मात्र तीन प्रदेशों में से एक प्रदेश राजस्थान में एक बार फिरसे कांग्रेस हाई कमान और गहलोत सरकार पर दवाब बनाने की राजनीति का अपना आख़िरी अस्त्र निकाललिया है।
सचिन पायलट ने जयपुर में रविवार को सवांददाता सम्मेलन आयोजित कर इस बार करेप्शन और मुख्यमंत्रीअशोक गहलोत एवं भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के मध्य मिलीभगत का मुद्दा उठा कर दोनों पार्टियोंकी राजनीति में और अधिक गर्माहट लाने का काम किया है। उन्होंने वसुन्धरा राजे के कार्यकाल में हुए कथितघोटालों जैसे ज़मीनों, माइंस और अन्य कथित घोटालों पर अब तक गहलोत सरकार द्वारा प्रभावी कार्यवाहीनही करने के विरोध में जयपुर में ग्यारह अप्रेल को ज्योति बाँ फूले के जन्म दिवस पर अपनी ही पार्टी के सरकारके विरोध में एक दिन का अनशन करने का ऐलान किया है।इस तरह उन्होंने एक बार पुनः पार्टी हाई कमान औरमुख्यमंत्री गहलोत पर दवाब बनाने का प्रयास किया है । गहलोत सरकार के क़ाबिना मंत्री प्रताप सिंहखाचरियावास के अलावा और किसी बड़े नेता ने पायलट की माँगों का समर्थन नही किया है। पायलट शनिवारको जयपुर में यूथ कांग्रेस की एक रैली में खाचरियावास के साथ शामिल हुए थे और उन्होंने स्वयं पार्टी छोड़नेकी अटकलों पर विराम लगाया था लेकिन आज इनके बदलें रूप से उनकी प्रेशर- पोलटिकस के इरादे सामनेआ ही गए हैं ।
इसमें कोई संशय नही हैकि गहलोत और सचिन तथा पार्टी के अन्य नेताओं ने पिछलें विधानसभा चुनाव से पहलेंतत्कालीन मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की सरकार पर करेप्शन के गम्भीर आरोप लगाए थे तथा कई बार धरनाप्रदर्शन आदि भी किए थे। वैसे चुनावी मौसम में विपक्षी दल द्वारा ऐसे आरोप लगाया जाना कोई नई बात नहीहै। इस बार भाजपा इस भूमिका में है और गहलोत सरकार और उनके मंत्रियों तथा विधायकों पर भ्रष्टाचार मेंआकंठ डूबे होने का आरोप लगा रही है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजस्थान की अब तक की राजनीति पर नजर डालें तों यहाँ आजादी केबाद से अब तक बदले की राजनीति की परम्परा नही रही है अन्यथा दक्षिणी और अन्य प्रदेशों की तरहराजस्थान में कई मुख्यमंत्री और मन्त्री भी गिरफ़्तारी का शिकार होकर जेल आदि की सजा भुगत चुके होते।प्रदेश में एक साथ सबसे लम्बे समय काल तक शासन करने वाले कांग्रेस के मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाडियाऔर उनके चालीस मन्त्रियों को तत्कालीन विरोधी दल के नेता महारावल लक्ष्मण सिंह और भेरों सिंह शेखावतआदि अली बाबा और चालीस चोर की संज्ञा देते थे और अन्य मुख्यमंत्रियों पर कई आरोप लगते आए है लेकिन1977 में जनता पार्टी की सरकार आने पर नई सरकार ने बदले की भावना से कोई काम नही किया गया।हालाँकि गहलोत ने अपने दूसरे मुख्यमंत्री कार्यकाल में वसुन्धरा सरकार के खिलाफ़ आरोपों की जाँच करवानेएक आयोग गठित किया था लेकिन वह भी बदले की राजनीति से प्रेरित नही था। वसुन्धरा राजे के सरकारीमकान को लेकर उनकी ही पार्टी भाजपा के आरएसएस बेकग्राउंड वाले क़द्दावर नेता घनश्याम तिवारी नेज़बर्दस्त विरोध किया तथा इस मुद्दे पर अपनी पार्टी भी छोड़ी और कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन गहलोतसरकार ने प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों की दी जाने वाली सुविधाओं को बदस्तूर जारी रखा।यहदर्शाता है कि राजस्थान में राजनीतिक मर्यादाएं और शालीनता सदैव ही ओछी राजनीति से ऊपर रहीं है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस नेता राहुल गाँधी और अन्य विपक्षी नेता आज केन्द्र की नरेन्द्रमोदी पर विरोधी दल के नेताओं पर बदले की भावना से कार्यवाही का जो आरोप लगा रहे है यदि राजस्थान मेंगहलोत सरकार भी चुनाव से ऐनवक्त पहलें ऐसी कोई कार्यवाही को अंजाम देती है तों वोटरों के मध्य क्यासन्देश जायेगा?
भाजपा उसे अपने पक्ष में ही भुनायेंगी।
राजनीतिक पर्यवेक्षको का यह भी कहना है कि आज जब गहलोत सरकार की देश भर में चर्चित ओपीएस औरस्वास्थ्य बीमा, शहरी मनरेगा तथा पाँच सौ रु में ग़ेस सिलेण्डर जैसी लोकप्रिय
योजनाओं के कारण प्रदेश में पहली बार एंटी-इनकम्बेंसी का फेक्टर नही है और कांग्रेस के पक्ष में हवा बह करसरकार के रीपिट होने की सम्भावनाएँ जताई जा रही है ऐसे में अपनी ही पार्टी के विरोध में अनशन कर सचिनपायलट क्या हांसिल करना और कौन सा सन्देश देना चाहते है? इससे एक ओर जहां कांग्रेस पार्टी को नुक़सानहोगा वहीं दूसरी ओर यह कहावत भी चरितार्थ होगी कि कांग्रेस को और कोई नही कांग्रेसी ही हराते आयें हैं।
दूसरी ओर देखें तों अब तक कई ख़ेमों में बँटी भाजपा एक के बाद एक त्वरित फ़ैसलों को अमली जामा पहनारही है। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चन्द कटारिया को असम का राज्यपाल बना कर प्रदेश कीराजनीति से दूर भेजने के बाद किसी गुट के नही माने जाने वाले चितौडगढ़ के युवा सांसद सीपी जोशी को प्रदेशअध्यक्ष बनाया गया है। इसी तरह विधानसभा ने प्रतिपक्ष के उपनेता राजेन्द्र राठौड़ को प्रतिपक्ष का नेता तथापूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया को उपनेता बना कर तथा वसुन्धरा राजे को मुख्य धारा में लाने के प्रयासकर सन्तुलन और सामंजस्य की राजनीति को आगे बढ़ाया जा रहा है। नए प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी लगातारपार्टी के वरिष्ठ नेताओं और रूठे बेठे कार्यकर्ताओं को पुनः पार्टी में एक्टिव करने में जुट गए है। इस तरह भाजपाहारी बाजी को जीत पुनः प्रदेश की परम्परा के अनुसार हर पाँच वर्ष में राज्य सरकार बदलने के इतिहास कोदोहराना चाहती है लेकिन कांग्रेस में गहलोत-सचिन गुट एक बार फिर अपने पक्ष में बने सुनहरें अवसर को गंवानेको आमादा दिखते है। इस तरह कहा जारहा है कि गहलोत-पायलट गुट की लड़ाई के चलते प्रदेश में कांग्रेस की सरकार कैसे रीपिट होंगी?
विडम्बना है कि पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी कह रहें है कि उनके हाथ में कुछ नही है। यहमसला मेरे प्रदेश में आने से पहले का है और हाई कमान के हस्तक्षेप से ही इसका निपटारा सम्भव है।देखनाहोगा कि अब हाई कमान और गहलोत इस नए संकट और हालातों से कैसे निपटेंगे?
राजनीतिक जानकार यह बात मानते है कि जिस प्रकार भाजपा का अपनी लोकप्रिय नेता वसुन्धरा राजे के बिनाप्रदेश में चुनावी कामयाबी हासिल करना आसान नही है, इसी प्रकार कांग्रेस में भी गुर्जर राजनीति के कारणसचिन पायलट के बिना कांग्रेस के लिए अग़ला चुनाव जीतना सम्भव नही तों मुश्किल अवश्य है। अतःअबसमय आ गया है कि कांग्रेस हाई कमान को सचिन पायलट को पार्टी के लिए आत्मघाती साबित होने वालेकदम को पीछे खींचने के लिए तैयार करने के लिए एक बार फिर से आगे आना होगा। प्रभारी रंधावा सचिन केकदम को अनुचित बता चुके है।सचिन के लिए भी यह अवसर है कि वे निहित स्वार्थों को त्याग कर एक बारफिर से परिपक्व आचरण करें और पहलें वाली गलती नही दोहरायें।
कांग्रेस पार्टी द्वारा यदि समय रहते इस संकट का हल नही निकाला गया तो हो सकता है कि एक बार फिर सेपार्टी छोड़ जा चुके अन्य युवा नेताओं की तरह राजस्थान से भी एक युवा नेता उसी नक़्शे कदम आगे बढ़ सकताहै। पार्टी हित में अशोक गहलोत और सचिन पायलट को अलग-अलग नावों के स्थान पर एक ही जहाज़ परहम सफ़र बनाना ही इस संकट का हल है अन्यथा पार्टी को रसातल में जाने से कोई रोक नही सकता। हालाँकिदोनों गुटों के नेताओं के फिर से एक मंच पर आना उनके मतभेदों के साथ मनभेद के भी जड़मूल से खत्म होने परही सम्भव दिखता है।