गुलाम नबी आजाद का हाल पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह न हाे जाए ?

संदीप ठाकुर

कश्मीर में देर सबेर होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक
दलों ने अपने अपने स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी है। खुद काे जनता का
हितैषी बताते हुए नेता एक दूसरे की टांग खिंचाई में भिड़ गए हैं। ऐसे
नेताओं में कांग्रेस छोड़ कर अलग आजाद कश्मीर पार्टी बनाने वाले गुलाम
नबी आजाद
इन दिनों बेहद मुखर हैं। वे आए दिन कांग्रेस और राहुल गांधी के बारे में
बाेल बाेल कर मीडिया में अच्छी खासी कवरेज पा रहे हैं। लेकिन राजनीतिक
जानकारों का मानना है कि ऐसा करने से उन्हें कोई खास लाभ नहीं होने वाला
है। उल्टे नुकसान होने की संभावना अधिक है। कांग्रेस के चंद वरिष्ठ
नेताओं का मानना है कि आजाद का हश्र भी कहीं पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री
कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह न हाे जाए। दाेनाें नेताओं की सोच और कर्म
में काफी समानताएं हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आजाद भी वही सब कर
रहे हैं जाे कैप्टन ने किया था।

डेढ़ साल पहले पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी
कांग्रेस छोड़ी थी और पंजाब लोक कांग्रेस नाम से पार्टी बनाई थी। पंजाब
विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उनकी पार्टी के साथ तालमेल किया था। लेकिन
परिणाम क्या निकला ? कैप्टेन की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली और भाजपा
दो सीट पर सिमट कर रह गई। जबकि पंजाब में उसके तीन सांसद हैं। चुनाव में
इस बेहद बुरे नतीजे के बाद कैप्टेन थोड़े समय देश से बाहर रहे और लौट कर
आए तो अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर दिया। उसके बाद से कहीं राज्यपाल
बनने की आस लगाए बैठे हैं।

राजनीतिक जानकारों काे लग रहा है कि गुलाम नबी आजाद वही कहानी दोहरा रहे
हैं। जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उससे पहले उन्होंने
अलग पार्टी बनाई है। यह नहीं कहा जा सकता है कि उनकी पार्टी के साथ भाजपा
का तालमेल होगा क्योंकि ऐसा करने पर उनके अलग पार्टी बनाने का मकसद पूरा
नहीं होगा। यदि तालमेल हाे भी गया तो भाजपा काे काेई खास फायदा नहीं
हाेगा। क्योंकि आजाद काे कश्मीर की मुख्यधारा की राजनीति से कटे अरसा बीत
चुका है। हालांकि कश्मीर की राजनीति से उनका दूर का जुड़ाव रहा है।
राज्यसभा का टर्म पूरा होने के बाद से वे कश्मीर में डेरा जमाए हुए हैं।
लेकिन उनकी यह रणनीति कितना काम कर पाएगी यह समय बताएगा।

वैसे भाजपा से अंदरखाने एडजस्टमेंट भी संभव है। भाजपा अधिक से अधिक उनका
इस्तेमाल पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस का वोट काटने के लिए
करेगी। मजबूत संभावना इस बात की है कि कैप्टन की तरह उनकी पार्टी भी कोई
सीट नहीं जीत पाएगी और भाजपा को भी खास फायदा नहीं पहुंचा पाएंगे। पराजित
होने के बाद यह भी हाे सकता है कि वे पार्टी का विलय भाजपा में कर दें
और राज्यपाल बनने का इंतजार करें। वैसे गुलाम नबी आजाद ने अपने बेटे
सद्दाम नबी आजाद काे एक्टिव पॉलिटिक्स में शामिल कर लिया है। गत फरवरी
में ही उनके पुत्र ने विधिवत पार्टी ज्वाइन कर ली है और चुनाव की तैयारी
कर रहे हैं। सद्दाम नबी का भविष्य क्या होगा यह बताना फिलहाल जल्दबाजी
हाेगी।