ओम प्रकाश उनियाल
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि मैदानी इलाकों में भी वन्य-जीवों की धमक लगातार बढ़ती ही जा रही है। कभी इंसानों और पालतू जानवरों पर हमला तो कभी खेती पर धावा। बाघ, गुलदार, भालू, जंगली सुअरों, हाथियों जैसे खतरनाक जंगली जानवरों की दहशत तो कभी-कभी इतनी अधिक बढ़ जाती है कि कहीं अकेले आने-जाने में भी रूह कांपने लगती है। न जाने कौन-सा खतरनाक जानवर अचानक सामने आ धमके।
पहाड़ी इलाकों की भौगोलिक स्थिति ऐसी ही है कि आबादी भी दूर-दूर होती है। एक गांव से दूसरे गांव पैदल जाने के लिए जंगलों, नदियों के बीच से गुजरना पड़ता है। अधिकतर रास्ते सुनसान होते हैं। जबकि सड़कें भी जगह-जगह पहुंच चुकी हैं लेकिन जंगली जानवर सड़कों पर भी घूमते हुए आ जाते हैं। जो लोग मवेशी पालते हैं उन्हें तो अपने मवेशियों का भी खतरा बना रहता है। जंगल में चराने ले जाने से लेकर घर लाने तक। न जाने बाघ किस झाड़ी में घात लगाकर बैठा हो, पता ही नहीं चलता। बाघ शिकार के लिए घरों के आसपास भी पहुंच जाते हैं। यहां तक कि आदमखोर बाघ (गढ़वाली में मनिख्य या मैस्वाण बाघ) आबादी में पहुंचकर बच्चों व बड़ों पर भी हमला करता है। ऐसे ही भालू व जंगली सुअर भी अचानक हमला करता है। जंगली सुअर तो खेती-बागवानी को भी तहस-नहस कर देते हैं। इसके अलावा बंदर, लंगूर, खरगोश आदि भी काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं। जिन इलाकों में जंगली जानवरों का आतंक अधिक है वहां के लोग तो सरकार से इन्हें मारने की गुहार भी लगाते रहते हैं। गत वर्ष तो पकड़े गए एक बाघ को आक्रोशित ग्रामीणों ने पिंजड़े में ही जिंदा जला डाला था। कहीं लोग खेतों में कंटीले तार भी लगाते हैं यहां तक कि बिजली का करंट भी तारों में छोड़ते हैं। ऐसा खासतौर पर मैदानी इलाकों में किया जाता है। जो कि खतरनाक साबित होता है। जंगली जानवरों का आतंक पहाड़ की भांति मैदानी इलाकों में भी व्याप्त रहता है। गुलदार, हाथी का खतरा अधिक।
सच्चाई तो यह है कि जिस वातावरण में जंगली जानवर विचरण करते हैं इंसान उसे उनसे छीनता जा रहा है। जिसके कारण आबादी की तरफ रुख करते जा रहे हैं। मानव व वन्य-जीवों के बीच बढ़ती संघर्ष की खाई को पाटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाने जरूरी हैं। वरना दोनों में एक-दूसरे की दहशत बनी रहेगी।