प्रो. नीलम महाजन सिंह
धर्म और राजनीति का आपसी खिलवाड़, एतिहासिक सत्य है। विश्व में धर्म के नाम पर अनेक कत्ले-आम हुए हैं। भारत में भी ऐसा समय-समय पर हुआ। यह आज के आधुनिक समाज के लिए खतरनाक है। आरंभ में ही मेरा मानना है कि ‘ डेटॉल और साबुन बेचने वाले; ‘रिक्ट कोलमैन कंपनी’ के अधिकारी, अरुण सिंह को, राजीव गाँधी द्वारा, राजनीति में लाना बहुत नकारात्मक निर्णय था। संजय गांधी व धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की हेलिकाप्टर दुर्घटना के उपरांत; प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी भावनात्मक रूप से टूट चुकीं थीं। कप्तान राजीव गांधी, जो इंडियन एयरलाइन्स के विमान चालक थे, उन्हें कॉंग्रेस महासचिव नियुक्त किया गया। क्या अरुण सिंह में राजनीतिक दूरदर्शिता थी? वरिष्ठ पत्रकार, कुलदीप नय्यर ने राजीव गांधी की इस ‘राजनीतिक टोली को बाबा लोग’ का नाम दिया था। इसमें कप्तान सतीश शर्मा, रोमी चोपड़ा, मार्तण्ड सिंह आदि शामिल थे। उधर राजनीतिक गतिविधियाँ तेजी से बढ़ रही थीं। पंजाब में आतंकवाद का विष फैल चुका था। ‘खालिस्तान’ की मांग आरंभ हो चुकी थी। प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने संत जरनैल सिंह भिंडरावाले को आरंभ में प्रोत्साहन दिया, ताकि वो सिख समाज को विभाजित कर सकें। वेसे ह भी पंजाब में आतंकवादी गतिविधियां चर्म सीमा तक पहुंच गईं। भिंडरावाले का जन्म जरनैल सिंह ‘बराड़’; 2 जून 1947 को हुआ व 6 जून 1984 को ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ में उसकी हत्या हो गई। ‘खालिस्तान आंदोलन’ के प्रमुख व्यक्तियों में संत जरनैल सिंह एक अलग ‘सिख राष्ट्र’ की वकालत कर रहा था। 37 साल की आयु में संत जरनैल सिंह भिंडरावाले की मृत्यु से ‘सीखी’ पर विपरीत प्रभाव पड़। अकाल तख्त, अमृतसर, पंजाब में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के दौरान वे मारा गया। ‘गुरुद्वारा यादगार शहीदांन’, अमृतसर में उसका चिन्ह अभी तक है। वे ‘दमदमी टकसाल’ का प्रमुख उपदेशक, ‘आनंदपुर साहिब संकल्प’ का अधिवक्ता, ‘धर्म युद्ध मोर्चा’ का नेतृत्व कर रहा था। उसकी पत्नी, प्रीतम कौर से दो बच्चे हैं। वे प्रमुख रूढ़िवादी सिख धार्मिक संस्था ‘दमदमी टकसाल’ का चौदहवां जत्थेदार था। ‘आनंदपुर साहिब संकल्प’ ने 1978 के ‘सिख – निरंकारी संघर्ष’ में अपनी भागीदारी के बाद महत्वपूर्ण ध्यानाकर्षित किया। 1982 की गर्मियों में, भिंडरावाले व अकाली दल ने बड़े पैमाने पर ‘स्वायत्त पंजाब राज्य’ बनाने के लिए ‘आनंदपुर साहिब संकल्प’ के आधार पर मांगों की एक सूची के साथ ‘धर्म युद्ध मोर्चा; धर्म-अभियान’, लॉन्च किया। पंजाब में सिंचाई के पानी का एक बड़ा हिस्सा बनाए रखने व चंडीगढ़ को पंजाब में लाने की माँग के साथ हज़ारों-हज़ार लोग आंदोलन में शामिल हुये। मौजूदा आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों को लेकर, सिख समुदाय के कुछ वर्गों में गहन असंतोष था। समय के साथ भिंडरावाले ‘सिख उग्रवादी’ नेता बन गया। 1982 में भिंडरावाले व उसका समूह ‘स्वर्ण मंदिर परिसर’ में चले गए जिससे वहीं अपना मुख्यालय भी बना लिया।भिंडरांवाले ने पंजाब में एक ‘समानांतर सरकार’ की स्थापना कर ली थी। 1983 में उसने अपने उग्रवादी कैडर के साथ ‘सिख तीर्थस्थल अकाल तख्त को बसाया व उसकी किलेबंदी की’। जून 1984 में, स्वर्ण मंदिर परिसर में हरमंदिर साहिब की इमारतों से जरनैल सिंह भिंडरावाले व उसके सशस्त्र अनुयायियों को हटाने के लिए भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ चलाया गया। इसके परिणामस्वरूप, भिंडरावाले सहित हज़ारों की मौतें हुईं। भिंडरावाले भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक विवादास्पद शख्सियत बन गया। ‘सिख आंदोलन’, जीवन के मूल्यों का अनुसरण करने का प्रयास है। ‘सीखी’ वाणिज्यिक पूंजीवाद की पहले से ही शिकार थी। पंजाब के किसान असन्तुष्ट थे। ऑडियो कैसेट टेप से गांवों में, भिंडरांवाले के संदेश प्रसारित किये गये। बाद में वे प्रेस के साथ निपुण हो गया व उन्होंने रेडियो-टेलीविजन साक्षात्कार भी दिए। उसके उपदेशों ने जीवन के लिए धार्मिक मूल्यों की केंद्रीयता का आग्रह किया। सदस्यों को आह्वान किया; “वह जो विश्वास की प्रतिज्ञा लेता है व दूसरों को इसे लेने में मदद करता है; जो शास्त्रों को पढ़ता है व दूसरों को ऐसा करने में मदद करता है; जो शराब व नशीली दवाओं से दूर रहता है व दूसरों को भी ऐसा करने में मदद करता है; जो एकता व सहयोग का आग्रह करता है; जो समुदाय का उपदेश देता है, वह अपने भगवान के सिंहासन व घर से जुड़ा रहता है, सो ही सिख है”। जुलाई 1977 से जुलाई 1982 तक, उसने सिख धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब के शहरों-गांवों का व्यापक दौरा किया। भिंडरावाले ने भारत के अन्य राज्यों का भी दौरा किया। वह ज़्यादातर पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ के गुरुद्वारों में ही रहने लगा। उसकी बैठकों में ‘वफादार जिज्ञासुओं की भीड़’ उमड़ने लगी। भिंडरावाले ने धार्मिक अनुष्ठानों में कमी को जताया, पंजाब में होने वाले सांस्कृतिक परिवर्तनों, बढ़ते मादक द्रव्यों, ड्रग्स के सेवन, शराब व अश्लील साहित्य के उपयोग, ‘अमृत’ लेकर धार्मिक दीक्षा को प्रोत्साहित करने की वकालत की। धार्मिक दायित्वों को पूरा करना, जिसमें विश्वास के बाहरी धार्मिक प्रतीकों को पहनना भी शामिल है, जैसे पगड़ी, केश, किरपान, कड़ा व दाढ़ी आदि। भिंडरावाले एक ऐसे समय में प्रकट हुआ जब नेता, समुदाय में शामिल नहीं था। एक कार्यालय-गुरुद्वारे में रहने के बजाय, एक शहर से दूसरे शहर की यात्रा करते वह घरेलू विवादों को सुलझाने और राजनीतिक करियर में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता था। लोग जल्द ही सामाजिक शिकायतों को दूर करने के लिए उसके हस्तक्षेप की मांग करने लगे और उसने विवादों को निपटाने के लिए ‘धर्म-अदालत’ का रुख करना शुरू कर दिया। यह समय लेने वाली ‘नौकरशाही प्रक्रियाओं’ के साथ जनता के बीच व्यापक मोहभंग को दर्शाता है; जो अक्सर न्याय सुनिश्चित नहीं करती थी। भिंडरावाले के फैसलों का व्यापक रूप से सम्मान किया गया और उसे भारी लोकप्रियता हासिल हुई। साथ ही एक उपदेशक के रूप में उसकी ‘उल्लेखनीय क्षमता’ व धार्मिक ग्रंथों को उद्धृत करने; वर्तमान समय में ऐतिहासिक घटनाओं की प्रासंगिकता को जगाने की उसकी क्षमता की सराहाया गया।भिंडरावाले के समर्थक, पत्रकार खुशवंत सिंह ने उसकी प्रशंसा में लिखा कि “भिंडरावाले का अमृत-प्रचार एक शानदार सफलता थी। हज़ारों की संख्या में वयस्कों ने शराब, तम्बाकू व नशीले पदार्थों को छोड़ने के लिए सार्वजनिक रूप से शपथ ली। ‘ब्लू फ़िल्म’ दिखाने वाली वीडियो कैसेट और सिनेमा घर, गांव के गुरुद्वारे में परिवर्तित हुए। न केवल पैसे बचाए गए जो उन्होंने पहले आत्म-भोग में उड़ाए थे, बल्कि अब अपनी भूमि पर लंबे समय तक काम किया व बेहतर फसलें उगाई। जनता को जरनैल सिंह के लिए आभारी होने के लिए बहुत कुछ था जो उनके द्वारा श्रद्धेय था,” सरदार खुशवंत सिंह ने लिखा। ‘निरंकारी कन्वेंशन’ की कार्यवाही को रोकने के इरादे से जरनैल सिंह भिंडरावा को आगे बढ़ना था। निरंकारी प्रमुख के सशस्त्र गार्डों ने गोली चला दी, जिसके परिणामस्वरूप दोनों समूहों के बीच सशस्त्र संघर्ष हुआ। फौजा सिंह ने कथित तौर पर अपनी तलवार से निरंकारी प्रमुख, गुरबचन सिंह का सिर काटने का प्रयास किया, लेकिन गुरबचन के अंगरक्षक द्वारा गोली मार दी गई। आगामी हिंसा में, कई लोग मारे गए। भिंडरावाले के दो अनुयायी, ‘अखंड कीर्तनी जत्था’ के ग्यारह सदस्य और संत निरंकारी संप्रदाय के तीन सदस्य मारे गए। इस घटना ने भिंडरावाले को मीडिया व राजनीतिक क्षेत्र की सुर्खियों में ला दिया। पंजाब के पूर्व डीजीपी, किरपाल सिंह ढिल्लों, आईपीएस के अनुसार, सम्मेलन में पंजाब सरकार के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की कथित भागीदारी ने संत निरंकारी के प्रदर्शनकारियों पर हमला किया। पंजाब व दिल्ली में बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन आयोजित करके सिखों ने संघर्षों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की। शासी सिख निकाय, ‘अकाल तख्त’ द्वारा एक धार्मिक पत्र जारी किया गया, जिसने सिखों को संत निरंकारी समाज में बढ़ने और पनपने से रोकने की अपील की। निरंकारीयों के साथ संबंध न रखें और ऐसा नहीं करने वालों को ‘धार्मिक दंड’ के साथ धमकाया गया। पंजाब में अकाली नेतृत्व सरकार द्वारा ‘बासठ निरंकारी’ के खिलाफ आपराधिक मामला दायर किया गया। जांच ने निष्कर्ष निकाला कि सिखों पर हमले की योजना, गुरबचन सिंह सहित कई अभियुक्तों ने बनाई थी। गुरबचन सिंह को छोड़कर सभी अभियुक्तों को हिरासत में ले लिया गया, जिन्हें दिल्ली में गिरफ्तार किया गया था। संत निरंकारी ने आपातकाल का दृढ़ता से समर्थन किया था और कई कांग्रेस नेताओं और नौकरशाहों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे। दिल्ली के राजनीतिक हलकों में मज़बूत पैर जमाने के साथ-साथ इसी अवधि के दौरान अकालियों और दमदमी टकसाल के विरोध को भी बढ़ावा दिया गया। मामलों की सुनवाई पड़ोसी राज्य हरियाणा में हुई व सभी अभियुक्तों को लोकसभा चुनाव से दो दिन पहले, 4 जनवरी 1980 को आत्मरक्षा के आधार पर बरी कर दिया गया। पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री, प्रकाश सिंह बादल ने निर्णय पर ‘अपील’ नहीं करने का फैसला किया। निरंकारियों के मामले को पंजाब कांग्रेस व मीडिया में व्यापक समर्थन मिला। पंजाब में चुनाव हुए व कांग्रेस सरकार स्थापित हुई; जिसे रूढ़िवादी सिखों ने इसे माना कि यह सिख धर्म को बदनाम करने की सााज़िश है। भिंडरावाले ने सिखों के दुश्मनों के खिलाफ अपनी ब्यानबाज़ी तेज कर दी। इस ब्यानबाज़ी के मुख्य प्रस्तावक ‘अखंड कीर्तनी जत्था’ की बीबी अमरजीत कौर व उसके द्वारा स्थापित ‘बब्बर खालसा’ था। उसके पति ‘फौजा सिंह’ अमृतसर में मार्च के प्रमुख थे। जरनैल सिंह भिंडरावाले के नेतृत्व में, दमदमी टकसाल; कुछ घटनाओं के बाद गठित ‘दल खालसा’ व ‘अखिल भारतीय सिख छात्र संघ’ की संघर्ष में विशेष भूमिका थी। परीक्षकों की कोशिश, प्रारंभिक कारणों में से थी, जिससे भारत की केंद्रीय सरकार, भिंडरावाले पर चिंतित होने लगी। साथ ही ऐतिहासिक मार्शल पहचान ‘सिखी’ उनकी वजह से लौट रही थी। बब्बर खालसा में शामिल होने वालों की संख्या में अद्भुत वृद्धि हुई। ब्यानबाजी, हिंदू समुदाय से सिख मूल्यों पर कथित ‘हमले’ पर आधारित थी। अनेक सिखों का कत्लेआम हुआ. आम नागरिकों की मानवाधिकार उलंघन हेतु हत्या हुई। संत जरनैल सिंह भिंडरावाले को तो मार डाला गया, परन्तु पंजाब की राजनीतिक उथल-पुथल अभी भी जारी है।
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनितिक समीक्षक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)