ललित गर्ग
एक डॉक्टर और रोगी के बीच में सूत्रधार की भूमिका निभाते हुए एक नर्स उसे स्वस्थ ही नहीं करती बल्कि तमाम तरह की असुविधाओं में रहकर, खुद को अपने परिवार से अलग रखकर, निरन्तर अपनी सेवाएं देती है और यह करते हुए वे कोई शिकायत नहीं करती एवं आशा नहीं खोती-वे हर चुनौती का जोरदार मुस्कान के साथ सामना करती है, चाहे परेशानी एवं बीमारी कितनी भी गंभीर क्यों न हो। वास्तव में उनकी निःस्वार्थता एवं सेवाभावना उन्हें रोगियों के लिए स्वर्गदूत बनाती है, एक फरिश्ते के रूप में वे जीवन का आश्वासन बनती है और उनका बलिदान-योगदान उन्हें मानवीय सेवा का योद्धा बनाता है। यदि चिकित्सक किसी रोगी के रोग को ठीक करता है तो उसके दर्द को कम एक नर्स करती है। जो अपना जीवन मरीजों की प्यार से देख-रेख में व्यतीत करती है। एक नर्स ना केवल अपना व्यवसाय समझ रोगी की सेवा करती है बल्कि वो उससे भावनात्मक रुप से जुड़ जाती है और उसे ठीक करने में जी-जान लगा देती है। नर्सों के इसी योगदान को सम्मानित करने एवं उनके कार्यों की सराहना करने हेतु प्रतिवर्ष 12 मई को अंतराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। यह दिन नर्सों की निस्वार्थ सेवा को प्रदर्शित करते हुए आधुनिक नर्सिंग दिवस की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जयंती को भी चिह्नित करता है।
नर्से भगवान का रूप होती है, वे ही इंसान के जन्म की पहली साक्षी बनती है और उनमें करुणा का बीज बोती है। एक रोगी को स्वस्थ करने में वे अपना सब कुछ दे देती हैं। रोगी की सेवा करते हुए वे अपना पारिवारिक सुख, करियर, जीवन और वर्तमान सबकुछ झांेक दिया। अब हमारा यह नैतिक कर्तव्य है कि हम उनकी अनूठी एवं निःस्वार्थ सेवाओं के बदले वापस कुछ लौटाये और उनका भविष्य उन्नत करें। इस दिवस को मनाते हुए हम अपनी नर्सों के करियर को फिर से परिभाषित करेे, उनके सेवा का मूल्यांकन करते हुए नए सिरे से उन्नत नर्स सेवा को विकसित करें और कौशल विकास की शक्ति के साथ उनके जीवन को बदले। कोविड़-19 के संकट में एक योद्धा की तरह हर मुश्किल घड़ी में अपनी जान की परवाह किये बिना मरीजों के साथ जो खड़ी रही, वे नर्से ही थी, जिन्हें हम और आप अक्सर सिस्टर कह कर पुकारते हैं। आम दिन हो या महामारियांे के खिलाफ जंग, ये नर्स बिना किसी डर के सहजता और उत्साह से अपने कर्तव्य का पालन करती है। इसलिए नहीं कि यह उनका काम है और उसके लिए उन्हें पैसे मिलते हैं। इसलिए कि वह सबसे पहले दूसरों के स्वस्थ होने और उनकी जान की फिक्र करती हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में मां के स्वरूप में स्नेहपूर्ण और फिक्र के साथ हर किसी की देखभाल और परवाह करने के शब्द को ही नर्स कहा जाता है। वे अस्पताल की रीड होती है। लियो बुशकाग्लिया ने कहा भी है कि एक नर्स का एक स्पर्श, मुस्कुराहट, प्यारी बोली, ईमानदारी और देखभाल की सबसे छोटी क्रिया में सभी में जीवन को मोड़ने की क्षमता होती है।’ हाल ही में मैंने अपनी एक सर्जरी के दौरान शांति गोपाल होस्पीटल में नर्सों की सेवा को नजदीक से देखा, उनकी स्वरित एवं मुस्कानभरी सेवाएं निश्चित ही बीमारी एवं दर्द को दूर करने का सशक्त माध्यम है।
पूरी दुनिया में हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते है कि नर्सिंग सेवाएं दुनिया में सबसे बड़ी स्वास्थ्य देखभाल का पेशा है। रोगियों के स्वास्थ्य और कल्याण को बनाये रखने के लिये नर्सों का प्रशिक्षण एवं कौशल विकास अपेक्षित है, भारत की नर्सों को नयी ऊर्जा, नयी दिशा एवं नया परिवेश मिले, उसके लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार कोई प्रभावी योजना लागू करें ताकि वे और अधिक अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं देने में सक्षम हो सके। इससे भारत की नर्सों के लिये गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिये अनुकूल वातावरण सुनिश्चित होगा। इससे नर्सें रोगियों की अधिक प्रभावपूर्ण ढंग से शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक भलाई करने में सक्षम होगी। ऐसी योजनाओं को निजी अस्पतालों को भी प्रोत्साहन देना चाहिए। नर्सों का बस एक ही उद्देश्य होता है कि उनकी देखभाल में आया हुआ मरीज ठीक होकर हंसते हुए घर जाए। मरीज जब ठीक होकर मुस्कुराते हुए अपने परिवार वालों के साथ घर जाता है, तो वह खुशी नर्सों को और भी हिम्मत देती है। इलाज के दौरान नर्सोंे और मरीज के बीच पारिवारिक रिश्ता हो जाता है। सचमुच नर्सों की दुनिया अद्भुत है। वे दवा के साथ उन्हें मानसिक तौर पर मजबूत करती हैं और रोगों से लड़ने की प्रेरणा एवं शक्ति बनती है। यह शक्ति अधिक तेजस्वी एवं प्रखर बने, यही विश्व नर्स दिवस मनाने का मूल उद्देश्य होना चाहिए।
नर्सों की सेवाएं जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी ही विश्वस्तर पर उनकी जरूरत है। अपेक्षित नर्सों की उपलब्धता न होना, एक चिन्तनीय विषय है। विश्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट में भी कहा गया है कि अच्छे वेतनमान और सुविधाओं के लालच में आज भी विकासशील देशों से बड़ी संख्या में नर्से विकसित देशों में नौकरी के लिए जाती है जिससे विकासशील देशों को प्रशिक्षित नर्साें की भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। जिसकी वजह से इस समस्या से निपटने के लिए एवं नर्सों की सराहनीय सेवा को मान्यता प्रदान करने के लिए भारत सरकार के परिवार एवं कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगल पुरस्कार की शुरुआत की। पुरस्कार प्रत्येक वर्ष 12 मई को दिये जाते हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 1973 से अभी तक कुल 237 नर्सों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया है। यह पुरस्काार प्रति वर्ष महामहिम राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किये जाते हैं। उचित वेतनमान, सुविधाओं एवं सम्मान से नर्सों को प्रोत्साहित किये जाने की जरूरत है। वे नर्सें ही होती है जो स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ है, जो पीडितों एवं रोगियों के साथ जान को जोखिम में डालकर वार्ड़ों में पूरी रात देखभाल करती है, घंटों उनके साथ बिताती है, उनके पास जाती है, उनके स्वस्थ होने के समग्र प्रयास करती है, ऐसी मानवीय सेवा की अद्भूत फरिश्तों के कल्याण एवं प्रोत्साहन का चिन्तन अपेक्षित है। उससे निश्चित ही नर्सों की सेवाएं अधिक सक्षम, प्रभावी एवं मानवीय होकर सामने आयेगी।