रविवार दिल्ली नेटवर्क
नई दिल्ली : कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने राजस्थान में एक बारफिर से अपने घोर विरोधी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरोधका गलत समय चुन राजनीतिक शतरंज में एक गलत चाल चलदी है।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार पायलट का अजमेर से जयपुरतक जन संघर्ष पदयात्रा शुरू करने का निर्णय और समय सहीनहीं कहा जा सकता है । कर्नाटका चुनाव के एग्जिट पोल केनजीजें भले ही वहाँ किसी भी दल का स्पष्ट बहुमत नही दिखा रहेंहै लेकिन राजनीतिक जानकार बता रहे है कि तेरह मई कोईवीएम मशीनों के खुलने के साथ ही कर्नाटका में कांग्रेस कोबहुमत मिलने की पूरी सम्भावना है और वहाँ कांग्रेस को अकेलेअपने बलबूते पर 126 सीटें मिल सकती है। हिमाचल प्रदेश केबाद कांग्रेस को एक और प्रदेश में मिलने वाली इस सम्भावितविजय से राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी का राजनीतिक ग्रॉफबढ़ने वाला है।ऐसे में सचिन पायलट का अपनी ही पार्टी कीसरकार के विरूद्ध सड़कों पर उतरने का समय ठीक नही कहा जासकता। इससे पहले भी राहुल गाँधी जब मान हानि के एक केसमें गुजरात की एक अदालत के अपने विरूद्ध हुए फ़ैसलें से अपनीसंसद सदस्यता खोने के बाद पहली बार केरल की अपनीसंसदीय सीट वायनाड़ के लोगों से मिलने जा रहें थे तब भी गलतसमय पर सचिन पायलट ने हाई कमान की सलाह के विपरीतजयपुर में शहीद स्मारक के पास अनशन पर बैठने और जयपुरकी सड़कों पर शक्ति प्रदर्शन का गलत निर्णय लिया था।
इन सभी घटनाओं से कांग्रेस हाई कमान सचिन पायलट से खुशनही दिखता और उन्हें इन दिनों नई दिल्ली में वह तवज्जों नहीमिल रही जोकि कभी मिला करती थी।
दरअसल भाजपा शासित हरियाणा राज्य के मानेसर स्थित एकहोटल में अपने समर्थक विधायकों के साथ अपनी पार्टी की हीसरकार से विद्रोह करने के अविवेक पूर्ण निर्णय के समय से हीसचिन पायलट की विश्वसनियता हर तरफ़ सवालों के घेरें में आगई थी । ख़ास कर तब जब वे स्वयं राजस्थान में प्रदेश कांग्रेसअध्यक्ष और अशोक गहलोत की सरकार में उप मुख्यमन्त्री भीथे।
उन दिनों मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिन्धिया और अन्य युवानेताओं के कांग्रेस छोड़ बीजेपी जोईन करने से कांग्रेस हाई कमानद्वारा सचिन पायलट के अक्षम्य अपराध को माफ़ कर उन्हें पुनःपार्टी की मुख्य धारा से जोड़ा गया और कई चुनावों में उन्हें पार्टीका स्टार चुनाव प्रचारक भी बनाया गया।हालाँकि तब उन्हें उपमुख्यमन्त्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पदों से हाथ धोना पड़ाथा,लेकिन पार्टी हाई कमान द्वारा गठित समिति की सिफ़ारिशपर उनके समर्थक विधायक पुनः गहलोत सरकार का हिस्सा बनमंत्री बन गए लेकिन सचिन पायलट ने समय-समय पर उन्हेंउकसाने में कोई कसर बाकी नही रखी।
कई संकटों से गुजर रही कांग्रेस की चिन्ताओं को नज़र अन्दाज़कर मुख्यमंत्री बनने की अंधी दौड़ में पड़ सचिन पायलट कामानेसर के होटल में अपने समर्थक विधायकों के साथ जाकरबैठना एक प्रकार से पार्टी के प्रति खुली बग़ावत और कांग्रेससरकार तोड़ने का गलत समय पर लिया गया गलत कदम ही था।ख़ास कर यह जानते हुए कि कांग्रेस विधायक दल में अशोकगहलोत के पास 102 विधायकों का बहुमत है जिसे वे कई बारविधान सभा और विधान सभा के बाहर साबित कर चुके है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीकि पिछले विधानसभा चुनाव में सचिन गहलोत के प्रदेश अध्यक्षरहते पार्टी ने भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार को हराया थालेकिन मुख्य मन्त्री बनने के सवाल को पहलें ही दिन से अपनीप्रतिष्ठा का सवाल बना कर सचिन पायलट ने जो रवैया अपनायाउससे कोई सहमत नहीं था। फिर जब पार्टी हाई कमान नेअनुभवी और वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय ले लिया तो सचिन पायलट का इस परसदैव प्रश्न करते रहना राजनीतिक दृष्टि से उनकी अपरिपक्वताको दर्शाता है।अपनी युवा उम्र को देखते हुए यदि वे राजनीति कीबिसात पर सही चाल से चलते रहते तों देर सवेरे उन्हें मुख्यमंत्रीबनने से भला कौन रोकता?। साथ ही पायलट को अब तक हुआराजनीतिक ख़ामियाज़ा भी नही भुगतना पड़ता।
राजस्थान में सचिन-गहलोत गुटों के मध्य पिछलें साढ़े चार वर्षोंसे चल रही खिंचतान और वर्तमान हालातों में गहलोत और सचिनके रिश्ते उत्तर और दक्षिणी धुरी के समान हो गए है और किसीचमत्कार के बिना इनका मिलन संभव नही दिख रहा है। कांग्रेसहाई कमान विशेष कर राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी ने कई बारसचिन पायलट को समझाने का प्रयास किया लेकिन सचिन है किमानते ही नहीं।यदि बेबस कांग्रेस हाई कमान द्वारा अभी भी समयरहते इस समस्या का कोई सम्मान जनक हल नही निकाला गयातों वर्तमान में चल रहें इन हालातों में नवम्बर में होने वाले राज्यविधानसभा चुनाव में गहलोत सरकार की जन कल्याणकारीयोजनाओं और बजट घोषणाओं के कारण प्रदेश में कांग्रेस पार्टीके पक्ष में अब तक बनी हुई हवा के विपरीत दिशा में बहने कीआशंका से इंकार नही किया जा सकता।वैसे भी ऐसे मौक़ों कोलपकने में माहिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हाल ही अपनी राजस्थानयात्रा के दौरान नाथद्वारा और आबू रोड की जन सभाओं मेंअप्रत्यक्ष रूप से सचिन-गहलोत की लड़ाई के मुद्दे को उठा कर प्रदेश के वोटरों के मध्य उसे भाजपा के पक्ष में भुनाने का प्रयासकर चुके है और लगता है कि भाजपा आगे भी इसे चुनावी मुद्दा बना सकती है।