एमपी में शिवराज के मुकाबले कमलनाथ की राजनीति

नरेंद्र तिवारी

मध्यप्रदेश में राजनीतिक माहौल में गर्मी व्याप्त है। चुनावी साल होने से दलबदल का दौर भी चल रहा है, दलबदल का बहाव शुरुवाती दौर में भाजपा से कांग्रेस की तरफ दिखाई दे रहा है। जबानी जंग भी तेज हो गयी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री लाडली बहना को 2023 के विधानसभा चुनाव की संजीवनी मानते हुए इसके प्रचार-प्रसार में तन-मन से जुट गए है। सम्पूर्ण सरकारी मशीनरी शिवराज सरकार की लाडली बहना योजना के तहत एक हजार रु की आर्थिक सहायता प्रदान करने के क्रियान्वयन में जुटी हुई है। शिवराज की लाडली बहना के जवाब में कमलनाथ ने नारी सम्मान योजना की शुरुवात 9 मई को छिंदवाड़ा के परासिया से की है। कमलनाथ ने नारी सम्मान योजना के पंजीयन आरम्भ करने से पूर्व भावुक अपील जारी करते हुए प्रदेश मे महिला सम्मान और समृद्धि के लिए नारी सम्मान योजना के अंर्तगत 1500 रु एवं 500 रु में गैस सिलेंडर देने का वादा किया है। शिव के एक हजार के जवाब में कमलनाथ के 1500 रु के साथ 500 रु मे गैस सिलेंडर महिलाओं के साथ पुरुषों को भी आकर्षित कर सकता है। गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमत प्रदेश की आमजनता के लिए चिंता का सबब है। इस चिंता को कमलनाथ ने अपनी नारी सम्मान योजना में शामिल कर जनता के मन की बात कह दी है। राजनीति का गहरा अनुभव रखने वाले कमलनाथ द्वारा मध्यप्रदेश की सत्ता से हटने के बाद से की जा रही भावुक अपीलें प्रदेश की जनता के मन में भावनाओं का ज्वार पैदा कर रही है। भाजपा में चल रही आंतरिक कलह का लाभ कांग्रेस के कमलनाथ को मिल रहा है। आंतरिक कलह को प्रदेश भाजपा संगठन जितना दबाने की कोशिश करता है। आंतरिक कलह उतनी ही तेजी से उभरता जा रहा है। इस आंतरिक कलह का प्रमुख कारण भाजपा की राजनीति में सिंधिया के पदार्पण से जुड़ा है। मार्च 2020 में कमलनाथ की 15 महीने की सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के 22 विधायकों के बगावती तेवर से अल्पमत में आ गयी थी। बाद में सिंधिया सहित इन विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया। सिंधिया गुट का आगमन प्रदेश में शिवराज के नैतृत्व में भाजपा की सरकार तो बना गया, किन्तु अब यह भाजपा में आंतरिक कलह का कारण बनता दिखाई दे रहा है। बगावत की शुरुवात भाजपा के आधार स्तम्भ कहे जानेवाले प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, सांसद सदस्य और शालीनता की राजनीति के पक्षधर कैलाश जोशी के पुत्र दीपक कैलाश जोशी से हुई। भावनाओं का ज्वार यहा भी मचल रहा था। दीपक जोशी अपने पिता का चित्र भी साथ लेकर गए, उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में अपने पिता के चित्र को हाथ मे लेकर कहा की स्वर्गीय कैलाश जोशी की ईमानदार विरासत को भाजपा की मौजूदा सरकार ने पूरी तरह भुला दिया है। स्वर्गीय कैलाश जोशी के संस्कारों से शिवराज की भाजपा का कोई वास्ता नहीं है। तीन बार प्रदेश की हाटपिपल्या सीट से विधायक और शिवराज सरकार में मंत्री रहे दीपक कैलाश जोशी का कांग्रेस में जाना आंतरिक विद्रोह का सामना कर रही मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के बगावती नेताओं को दिशा देने वाला हो सकता है। इसी दौरान दतिया के पूर्व विधायक राधेलाल बघेल भी कमलनाथ के नैतृत्व में कांग्रेस में शामिल हो गए। दीपक जोशी और राधेलाल बघेल का कांग्रेस में शामिल होना प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह के लिए चिंता का सबब है। यह भाजपा संगठन के लिए भी विचारणीय प्रश्न है। इस बगावत को नजरअंदाज करना आसान नहीं है। बगावत की आवाजें तो और भी बुलन्द हो रही है, चुनाव के निकट आते-आते यह आवाजें भाजपा की मुसीबत का कारण बनेगी। भाजपा के इन नेताओं का कांग्रेस में शामिल होना कमलनाथ के कांग्रेस नैतृत्व पर कुशलता की मोहर है। इस बात में कोई दो राय नही है कि शिवराज के मुकाबले कमलनाथ की गम्भीरता अधिक आकर्षित करने वाली दिखाई दे रही है। कमलनाथ का लंबा राजनीतिक सफर उनकी उपलब्धियों का बखान करता प्रतीत होता है। वें भारतीय संसद के 9 बार लगातार सदस्य रहें। केंद्रीय कपड़ा, वाणिज्य, संसदीय कार्य, शहरी विकास, सड़क परिवहन आदि विभागों के मंत्री रह चुके है, उन्हें अनेको विभागों की संसदीय समितियों का अनुभव है। दिल्ली की राजनीतिक बाराकियों को भलीभांति जानते है। छिंदवाड़ा मॉडल उनकी पहिचान हैं। छिंदवाड़ा के लोगो से कमलनाथ का गहरा रिश्ता है। विषम परिस्थितियों में भी छिंदवाड़ा ने कमलनाथ और उनके परिवार का साथ दिया है। यूपी के कानपुर में 1946 को जन्मे कमलनाथ गांधी परिवार के करीबियों में से एक है। वें संजय गांधी के होस्टल के साथी रहे है। एक बार छिंदवाड़ा चुनाव में प्रचार के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को अपना तीसरा पुत्र कहकर संबोधित किया था। बड़े व्यवसायिक खानदान से ताल्लुक रखने वाले कमलनाथ को वर्ष 2011 में भारत का सबसे अमीर कैबिनेट मंत्री घोषित किया गया था। उस समय उनके पास 2.73 अरब रुपयों की संपत्ति थी। खानदानी पूंजीपति होने के कारण उनकी छवि राजनीतिक भष्ट्राचार के आरोपों से मुक्त है। 2018 में उन्होंने मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभाली ओर 2019 के चुनाव में प्रदेश के 31वें मुख्यमंत्री बनें। कमलनाथ का 15 महीने का कार्यकाल जनता के स्मृति पटल पर आज भी अंकित दिखाई दे रहा है। उस दौरान अपराध नियंत्रण के उपायों में प्रदेश सरकार सक्रियता ने जनता के मन मे जगह बनाई थी। मिलावट खोरी के खिलाफ सख्ती जो कमलनाथ के अल्पकालीन शासन में दिखाई दे रही थी फिर नहीं दिखी। इसके अलावा कम दर में बिजली की उपलब्धता भी 15 महीने के शासनकाल की ऐसी उपलब्धि रही जो जनता के मन में स्थायी छाप छोड़ गई है। कांग्रेस द्वारा किये गए चुनावी वायदों को कमलनाथ पूरा करने का प्रयास करते दिखाई दे रहे थै। इन चुनावी वायदों में कर्जा माफी, सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोतरी भी जनसामान्य को प्रभावित करने वाले विषय रहे है। वर्तमान में जबकि प्रदेश में शिवराज सिंह मुख्यमंत्री है। जिनके नाम प्रदेश के सबसे अधिक बार मुख्यमंत्री रहने की गौरवमयी उपलब्धि भी अंकित है। प्रदेश की जनता में अपनी विश्वनीयता खोते जा रहे है। उनपर सरकारी तंत्र को हावी कर जिला कलेक्टरों को ताकतवर करने और जनप्रतिनिधियों को कमजोर करने का आरोप भी लगता रहा है। कोरोनाकाल से सरकारी तंत्र में जनप्रतिनिधियों की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। यह सत्ताधारी दल के विधायक, मंत्री, नेताओ का दर्द भी है, जो अनेको बार इन नेताओं की जुबां पर भी आ चुका है। शिवराज सिंह चौहान प्रदेश का सबसे चर्चित ओर विश्वनीय चेहरा रहे है। उनकी घोषणावीर छवि जनसामान्य में उनकी कम होती विश्वनीयता का उदाहरण है। प्रदेश में खनिज माफिया, राशन माफिया ओर शराब माफियाओं का बोलबाला है। सरकार का अपराधियो पर नियंत्रण कम हुआ है। इन सबके बावजूद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को विश्वास है कि लाडली बहना योजना महिला मतदाताओं को भाजपा की तरफ आकर्षित करेंगी, 2023 के अंत मे होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा को विजय श्री अर्जित करने में मदद करेंगी। शिवराज की लाडली बहना के समकक्ष कमलनाथ की नारी सम्मान योजना में अधिक राशि और 500 रु में गैस टँकी प्रदाय की व्यवस्था बड़ा लालीपाप साबित हो सकता है। हिमाचल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब की सरकारों का पुरानी पेंशन स्कीम को लागू किया जाना शिवराज के खिलाफ सरकारी कर्मियों के विरोध का कारण भी बन सकता है। कमलनाथ मंचो से पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की बात कह रहे है। राजनीति के इन दोनों धुरंधरों का अपना राजनीतिक प्रभाव है। शिवराज को जनता देख चुकी है। उनकी राजनीतिक शैली से भलीभांति परिचित भी है। अब शिवराज की राजनीतिक शैली अधिक उबाऊ और दोहराई प्रतीत होती है। इसके एवज में कमलनाथ का चेहरा अधिक भोला, विश्वनीय और साफ प्रदर्शित हो रहा है। यही कारण है कि भाजपा के नेता कमलनाथ के नैतृत्व में भरोसा व्यक्त कर रहे है। हाटपिपल्या के पूर्व विधायक दीपक जोशी, दतिया के पूर्व विधायक राधेलाल बघेल ने बीजेपी के बगावती नेताओ को कांग्रेस का घर बता दिया है। सिंधिया गुट के नेताओ ने भाजपा के कद्दावर नेताओं की राजनीतिक जमीन को हथिया लिया है। इन कद्दावर भाजपाई नेताओं को अपनी राजनीतिक विरासत के खो जाने का डर सता रहा है। चुनाव आते-आते भाजपा के ये कद्दावर नेता अपने राजनीतिक भविष्य को सुनिश्चित करने की हर सम्भव कोशिश करेंगे। कमलनाथ प्रदेश की कांग्रेस सरकार के गिरने के बाद से ही इसे खरीद फरोख्त कर बनाई सरकार होने का आरोप लगा रहे है। जब से अब 2023 के विधानसभा चुनाव के करीब आने तक उन्होंने कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश बना रखा है। एमपी में शिवराज और कमलनाथ का चेहरा दांव पर है। शिवराज दोहराओ और उबाऊ प्रतीत होने लगे है। कमलनाथ के चेहरे के प्रति आकर्षण बढ़ता दिख रहा है। चुनाव आते-आते तक भाजपा और शिवराज इसमे कितना बदलाव कर पाते है। कमलनाथ स्वयं को कितना निखार पाते है। फिलहाल तो कमलनाथ मजबूत दिखाई पड़ रहे है। मुकाबला कड़ा ओर रोचक है, इन दोनों अनुभवी नेताओं में जनता के मन को कौन भाता है। समय का चक्र तेजी से घूम रहा है, राजनीति भी तेजी से बदल रही है। एमपी में भाजपा के लिए वरदान साबित हुए सिंधिया 2023 में भी वरदान बने रहेंगे ? यह बड़ा प्रश्न बन गया है। भाजपा की खदबदाती जमीन को शिवराज कितना सम्भाल पाते है, कमलनाथ अपनी सरकार के गिरने का कितना बदला ले पाते है। वर्ष 2023 का विधानसभा चुनाव इन सभी विषयों के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहा है। शिवराज के मुकाबले कमलनाथ की राजनीति कितनी सफल होगी यह वक्त तय करेगा। किंतु कमलनाथ का चेहरा सीधी, सपाट और विकास की राजनीति का चेहरा नजर आता है। इस प्रकार के चेहरे जनता को पंसद आतें है। यह राजनीति का आजमाया हुआ सच है।