रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से अपने संबंधों को लेकर खुलासा क्या किया वसुंधरा राजे चुनाव से पहले ही परेशान नजर आने लगी है। राजस्थान में पिछले 25 वर्षों से एक बार अशोक गहलोत तो दूसरी बार वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनते आ रहें है। इस बार वसुंधरा राजे फिर मुख्यमंत्री बनना चाहती है। मगर अशोक गहलोत ने बयान देकर उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है।
हाल ही में धौलपुर जिले में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खुलासा किया था कि 2020 में सचिन पायलट द्वारा उनकी सरकार के खिलाफ बगावत करने के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व उनके समर्थक विधायकों ने सहयोग कर उनकी सरकार को गिरने से बचाया था। गहलोत ने कहा था कि धौलपुर से भाजपा विधायक शोभा रानी कुशवाहा ने तो राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद तिवारी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर खुले आम पार्टी नेतृत्व की अनदेखी की थी। शोभा रानी कुशवाहा वसुंधरा समर्थक विधायक मानी जाती रही है। इसके साथ ही गहलोत ने वसुंधरा समर्थक माने जाने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल का भी नाम लिया था।
विधानसभा में बजट पास करवाने के दौरान मुख्यमंत्री गहलोत ने प्रदेश में 17 नए जिले बनाने की घोषणा की थी। जिसमें उन्होंने कैलाश मेघवाल के विधानसभा क्षेत्र शाहपुरा को भी जिला बनाया है। विधानसभा में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कैलाश मेघवाल को शाहपुरा के जिला बनने पर बधाई देते हुए कहा था कि आप की मांग पूरी कर दी गई है। उस समय भी गहलोत के बयान की काफी चर्चा हुई थी तथा भाजपा बैकफुट पर आ गई थी।
राजस्थान की राजनीति में लोगों की धारणा रही है कि अंदर खाने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मिले हुए हैं। इसी के चलते जब कांग्रेस की सरकार बनती है तो अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बन जाते हैं और जब भाजपा की सरकार बनती है तो वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बन जाती है। मुख्यमंत्री पद पर रहते दोनों नेता एक दूसरे के हितों का ख्याल रखते हैं तथा जरूरत पड़ने पर मदद भी करते हैं।
नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल तो खुलकर यह आरोप लगाते रहे हैं। पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस नेता सचिन पायलट भी गहलोत को पत्र लिखकर वसुंधरा सरकार के दौरान हुए घोटालों की जांच की मांग कर रहे हैं। मगर मुख्यमंत्री गहलोत ने पायलट की मांगों पर कोई कार्यवाही नहीं की। जबकि एक माह पूर्व सचिन पायलट अपनी इसी मांग को लेकर जयपुर में एक दिन का धरना भी दिया था। इसके बाद पायलट ने इसी मांग को लेकर 5 दिनों तक अजमेर से जयपुर तक 125 किलोमीटर की जन संघर्ष पदयात्रा भी की है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा वसुंधरा राजे को लेकर किए गए खुलासे के बाद वसुंधरा राजे अपनी ही पार्टी के नेताओं पर के निशाने पर आ गई है। राजस्थान में वसुंधरा विरोधी खेमे के नेता गहलोत के बयान को लेकर मुखर हो रहे हैं। उनका कहना है कि वसुंधरा राजे समर्थक विधायकों के दम पर ही गहलोत बेखौफ होकर सरकार चला रहे हैं। राजस्थान में पिछले राज्यसभा चुनाव के दौरान कई वसुंधरा समर्थक विधायकों को मतदान से पहले गुजरात भेजा गया था। ताकि वह गहलोत के प्रभाव में आकर क्रास वोटिंग नहीं कर सकें।
हालांकि राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे सबसे बड़े कद के नेता मानी जाती है। दो बार प्रदेश की मुख्यमंत्री, तीन बार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तथा केंद्र में मंत्री रहने के कारण उनका पूरे प्रदेश में व्यापक जनाधार माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते वसुंधरा राजे को अपने ही राजपूत समाज के विरोध का सामना करना पड़ा था। राजपूत समाज के लोगों की गैंगेस्टर आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर करने को लेकर वसुंधरा राजे सरकार से गहरी नाराजगी थी।
2018 के विधानसभा चुनाव में राजपूत समाज ने कांग्रेस को वोट देकर जिताया था। उस समय चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भीड़ से वसुंधरा तेरी खैर नहीं मोदी तुम से बैर नहीं के नारे लगते थे। जो चुनावी परिणाम में सही साबित भी हुए थे। वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके नेतृत्व में लड़े गए 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 163 सीटों से सीमट का 73 सीटों पर पहुंच गई थी। उसके कुछ महीने बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की सभी 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
पिछले कुछ समय से वसुंधरा राजे व उनके समर्थक विधायक भाजपा आलाकमान पर लगातार दबाव बना रहे थे कि वसुंधरा को नेता घोषित कर उनके नेतृत्व में ही अगला विधानसभा चुनाव लड़ा जाए। वसुंधरा राजे के विरोध के चलते ही डॉक्टर सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया था। पार्टी के नेताओं को भी लगने लगा था कि वसुंधरा राजे के बिना विधानसभा चुनाव जितना मुश्किल होगा। ऐसे में ऐसे में उन्हें चुनाव के दौरान महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी। मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान ने वसुंधरा राजे व उनके समर्थकों के पूरे मंसूबों पर पानी फेर दिया। अब वसुंधरा राजे व उनके समर्थकों की स्थिति ना निगलते बन रही है ना उगलते बन रही है वाली हो गई है। आम जनता में भी गहलोत के बयान से वसुंधरा राजे के प्रति नकारात्मकता पैदा हुई है।
2018 में विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान कांग्रेस के नेता सत्ता में आने पर वसुंधरा राजे सरकार द्वारा किए गए हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार की जांच करवाने की बातें कहते थे। मगर सरकार बनने के बाद वसुंधरा राजे के खिलाफ किसी भी तरह की कोई जांच नहीं की गई। इससे लोगों को विश्वास हो गया कि अशोक गहलोत वसुंधरा राजे आपस में मिले हुए हैं।
राजस्थान विधानसभा के चुनाव में कुछ महीनों का ही समय रह गया है। ऐसे में मौके की नजाकतता को भांपकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी चाल चल दी है। गहलोत को पता है कि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर भाजपा का पलड़ा भारी रह सकता है। इसीलिए उन्होंने बड़े सलीके से वसुंधरा राजे को ठिकाने लगा दिया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत फिर से राज बनाने के लिए पूरी ताकत से जुटे हुए हैं। उनका पूरा प्रयास है कि इस बार प्रदेश में हर पांच साल बाद सत्ता बदलने के रिवाज को बदला जाए। इसीलिए वह अपनी सधी हुई चाले चल रहे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत ने पहले पार्टी में सचिन पायलट को किनारे लगा कर पार्टी के एकछत्र नेता बन गए। अब विपक्ष की मजबूत नेता वसुंधरा राजे के खिलाफ बयान देखकर उनको भी संदिग्ध बना दिया है।
मुख्यमंत्री गहलोत के बयान के बाद माउंट आबू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा में वसुंधरा राजे उनके बगल की सीट पर बैठी थी। इसके बावजूद भी ना तो उनको प्रधानमंत्री ने कोई विशेष तवज्जो दी और ना ही उनको जनसभा को संबोधित करने का मौका दिया गया। जबकि प्रधानमंत्री से पहले प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने जनसभा को संबोधित किया था। इन सब बातों से लगता है कि आने वाला समय वसुंधरा राजे के लिए राजनीतिक रूप से कुछ अच्छा नहीं रहने वाला है। उन्हें समय रहते अपनी गहलोत समर्थक छवी को तोड़ना होगा तभी वह राजनीति के मैदान में आगे बढ़ पाएगी।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)