प्रभुनाथ शुक्ल
संयुक्त परिवार हमारी संस्कृति और संस्कार की पाठशाला रहे। लेकिन अब यह परिपाटी चटक रहीं है। एकल परिवार की संस्कृत बढ रहीं है। जिसकी वजह से जीवन में तमाम विसंगतियां पैदा होती दिखती है। लोग अवसाद का शिकार बन रहे हैं। फिर भी लोग मानते हैं कि तमाम चुनौतियों के बाद भी बदलते परिवेश में संयुक्त परिवार जीवन के लिए एक भरोसेमंद छत है। दुनिया भर में 15 मई संयुक्त परिवार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
पूर्वांचल में अधिकांश आबादी कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। लेकिन यहां के सबसे अधिक लोग रोजी-रोटी के लिए मुंबई जाते हैं। लेकिन फिर भी यहां संयुक्त परिवार की परंपरा कायम है। भदोही जनपद में ऐसे परिवारों की संख्या बहुतायत है। 25 से 30 लोग घर पर खेती बारी और दूसरे रोजी रोजगार में रह कर भी अपना जीवन यापन करते हैं। मुंबई या अन्य शहरों में रहने वाले लोग मांगलिक कार्यक्रमों और सुख-दु:ख में घर आते हैं। संयुक्त परिवार में जिन बुजुर्गों ने आधे तन पर कपड़ा पहन और मोटे अनाज खाकर बच्चों को देश-विदेश-पढ़ने के लिए भेजा, उन्हें अच्छा जीवन दिया। बदले परिवेश में आधुनिक जीवन शैली जीने वाले उन्हीं परिवारों में बुजुर्गों की हालत क्या है। एकल परिवार की वजह वह अकेले जीवन यापन करने को बाध्य हैं।
भदोही जनपद के सुरियावां ब्लॉक के हरीपुर गांव निवासी पेशे से अधिवक्ता संजय दुबे के पिता राधेश्याम दुबे (94) उनकी मां प्रभावती (90) हैं। दोनों बुजुर्ग परिवार की शान हैं। घर के दरवाजे पर बैठे रहते हैं। पिता राधेश्याम की मूछों पर पूरा परिवार गर्व करता है। इतनी उम्र में भी वह स्वस्थ और मस्त हैं। सुबह स्नान के बाद बगैर चश्मा के हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करते हैं। उन्होंने बताया कि संयुक्त परिवार से ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना जागृत होती है। लोग पैसे से सुख शांति चाहते हैं लेकिन संभव नहीं है। पुरानी पीढ़ी में लोग अभाव में भी सुख का आनंद लिया। महुआ मटर और मोटे अनाज खाकर मानसिक अवसाद और रोगों से दूर रहें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज खुद मोटे अनाज की वकालत करते हैं। उनके विचार में संयुक्त परिवार सबसे बड़ा धन है। संयुक्त परिवार से समाज राष्ट्र और देश को अच्छा संस्कार मिलता है। लोगों में समूह की भावना जागृत होती है।
राधेश्याम दुबे के पास चार लड़के हैं। सबसे बड़ी दशरथ दुबे दूसरे सुजीत दुबे और तीसरे पर आशीष दुबे। संजय भाइयों में सबसे छोटे हैं। सामाजिक दायित्व की जिम्मेदारी इन्हीं पर है। माता-पिता और भाइयों, महिलाओं और बच्चों को मिलाकर 30 परिवार का कुनबा है। 10 लोग मुंबई में रहते हैं। 20 लोग घर पर है। घर के पुरुष एक साथ मिलकर खेती करते हैं। परिवार की खपत के लिए सब्जी घर पर ही इफराद पैदा की जाती है। सभी युवा एम-एलएलबी हैं। संजय दुबे और भईयों आपस में अच्छा तालमेल है।
संजय दुबे के अनुसार संयुक्त परिवार आधुनिक जीवन की सबसे भरोसेमंद छत है। यहां आपसी तालमेल करके अपना जीवन सुख में बिता सकते हैं। किसी बड़े आर्थिक मोर्चे पर थोड़े-थोड़े सहयोग से बड़ा काम हो जाता है। सुख-दु:ख में एक साथ लोग खड़े होते हैं। किसी को किसी प्रकार की चिंता नहीं करनी पड़ती है। जीवन में अकेलापन महसूस नहीं होता है। अवसाद जैसी कोई समस्या नहीं पनपने पाती है। बच्चों और युवाओं को भरपूर संस्कार मिलता है। खेती बारी के काम एक साथ मिलकर लोग निपटा लेते हैं। मजदूरों पर जाने वाला पैसा बचता है। इसी बहाने लोगों का व्यायाम होता है। युवा पीढ़ी-खेती बारी के काम भी सीखती है। हालांकि बदलते परिवेश में संयुक्त परिवार एक चुनौती है। लेकिन फिर भी बेहतर और अच्छा है।
संजय दुबे ने बताया कि कोविड-19 में सबसे अधिक जरूरत संयुक्त परिवार की महसूस हुईं। एकल परिवार की वजह से लोगों में अवसाद बढ़ रहा है। लोक तनाव के शिकार हो रहे हैं। सुख -दुःख खुद झेलना पड़ रहा है। जीवन में बहुत सारी दौलत होने के बावजूद भी लोग दु:खी हैं। संजय मानते हैं कि आधुनिक जीवन की व्यस्तताओं और जरूरतों की वजह से संयुक्त परिवार में अब पहले जैसा प्रेम नहीं दिखता है। लेकिन आधुनिक जीवन में आज भी सुखी रहने का सबसे अच्छा तरीका संयुक्त परिवार है। उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवार जैसा प्रबंधन दुनिया का कोई भी मैनेजमेंट या इंस्टिट्यूट नहीं सिखा सकता है। सबसे बेहतर जीवन शैली, निरोगी काया और सुख शांति चाहते हैं तो संयुक्त परिवार की परंपरा हमें हर हालत में बढ़ानी होगी।