फूट चुका है न खाऊंगा न खाने दूंगा का ‘ग़ुब्बारा’

निर्मल रानी

दो करोड़ रोज़गार और सभी के खातों में 15 -15 लाख रूपये डालने जैसी तमाम बातें हवा हवाई साबित हो चुकी हैं। 15 -15 लाख रूपये खातों में डालने वाली चर्चा पर तो स्वयं गृह मंत्री ने यह कह कर विराम लगाने की कोशिश की थी कि ‘यह तो एक जुमला ‘ था। तभी से कई आलोचक सरकार को ‘जुमला सरकार’ भी कहने लगे हैं। गंगा सफ़ाई,सौ स्मार्ट सिटी बनाने जैसे अनेक वादों की तो कब की हवा निकल चुकी है। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण नारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था,’न खाऊंगा न खाने दूंगा ‘। सरकार दावे भी करती है कि 2014 से लेकर अब तक भ्रष्टाचार में काफ़ी कमी आई है। आए दिन विपक्षी दलों के नेताओं के ठिकानों पर पड़ने वाले ई डी,सी बी आई व इनकम टैक्स विभाग के छापे और कई जगहों पर होने वाली अकूत धन संपत्ति की बरामदगी से ऐसा सन्देश भी जाता है कि सरकार भ्रष्टाचार रोकने के लिये काफ़ी गंभीर है। कुछ गोदी मीडिया भी ऐसी ख़बरों को बढ़ा चढ़ाकर पेश कर यह माहौल बनाना चाहता है कि सरकार भ्रष्टाचार को लेकर ज़ीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है। परन्तु वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के अनुसार ‘ यू पी ए सरकार की तुलना में भ्रष्टाचारियों की सज़ा की दर इस सरकार में कम हो गयी है। तथ्य यह है कि 2013 में 1136 व्यक्तियों को भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराया गया। जबकि 2014 में 993 ,2015 में 878 और 2016 में केवल 71 लोगों को दोषी ठहराया गया। कोई व्यक्ति झूठ बोल सकता है परन्तु तथ्य नहीं। आख़िर भ्रष्टाचारियों को कौन बचा रहा है ‘?

हक़ीक़त तो यह है कि वर्तमान सरकार के दौर में सत्ता से जुड़े व सत्ता का संरक्षण प्राप्त कई भ्रष्टाचारियों के चेहरे बेनक़ाब हुए हैं । जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने स्वयं यह कहा कि नरेंद्र मोदी को भ्रष्टाचार से नफ़रत नहीं है। मलिक ने यह भी कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष उनके एक मंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले उठाए थे, जिस पर उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बजाय आनन-फ़ानन में उनका तबादला करके मेघालय भेज दिया। यहां तक कि कश्मीर का राज्यपाल होते उन्होंने आर एस एस के वरिष्ठ नेता व प्रवक्ता रह चुके राम माधव का नाम लेकर भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर किये। इससे ऊँचे स्तर पर भ्रष्टाचार की मिसाल और क्या हो सकती है ? कर्नाटक चुनाव में भाजपा की पराजय का मुख्य कारण ही राज्य के भाजपा नेताओं पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोप ही थे। राज्य में यह बात जन जन तक पहुँच चुकी थी कि किसी भी काम के लिये 100 में से 40 रुपए मंत्री-विधायक की रिश्वत निर्धारित थी।

वह कर्नाटक ही था जहां चुनाव से कुछ ही समय पूर्व भाजपा के तत्कालीन विधायक मदल विरुपक्षप्पा के एक अधिकारी स्तर के पुत्र प्रशांत कुमार को 40 लाख रुपये घूस लेते रंगे हाथों गिरफ़्तार किया गया। भाजपा विधायक पुत्र प्रशांत कुमार कर्नाटक प्रशासनिक सेवा के 2008 बैच का अधिकारी है । उसने साबुन और अन्य डिटर्जेंट बनाने के लिए कच्चे माल को ख़रीदने की डील के लिए एक ठेकेदार से 80 लाख रुपए की रिश्वत मांगी थी। परन्तु ठेकेदार ने इसकी शिकायत लोकायुक्त से कर दी। लोकायुक्त अधिकारियों ने विरुपक्षप्पा के बेटे प्रशांत कोकर्नाटक सोप एंड डिटर्जेंट लिमिटेड (केएसडीएल) कार्यालय में 40 लाख रुपये की रिश्वत लेते पकड़ा और उसे गिरफ़्तार कर लिया। इसके बाद लोकायुक्त ने के एस डी एल के कार्यालय व प्रशांत के घर पर छापा मारा तो वहाँ से 8 करोड़ रूपये नक़द बरामद हुये। ग़ौरतलब है कि भाजपा विधायक मदल विरुपक्षप्पा स्वयं के एस डी एल के प्रमुख थे जबकि उनका बेटा बंगलुरु जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड में मुख्य लेखाकार है। परन्तु विधायक पिता जिस सरकारी कंपनी का अध्यक्ष था उसका बेटा उसी कंपनी के काम के लिये रिश्वत लेता था।

भ्रष्टाचार के इसतरह के और भी कई मामले कर्नाटक में ही उजागर हो चुके थे। अन्यथा जब चुनाव में भाजपा पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे उस समय वह इन आरोपों का सामना करने के बजाये बजरंगबली,91 गालियां व साम्प्रदायिकता का ज़हर फैलाकर वोट न मांगती। गत वर्ष 30 अक्टूबर 2022 को गुजरात के मोरबी नगर में मच्छु नदी पर बना झूला पुल टूट गया था। इस हादसे में कम से कम 135 लोग अपनी जानें गँवा बैठे थे और क़रीब 200 लोगों को गंभीर चोटें आई थीं। यह घटना भी घोर भ्रष्टाचार का ही नतीजा थी। अभी कुछ दिनों पहले ही किरण पटेल नाम का एक गुजरात का ही व्यक्ति प्रधानमंत्री कार्यालय का फ़र्ज़ी अफसर बनकर जम्‍मू कश्‍मीर में ज़ेड प्‍लस सुरक्षा लेकर घूमते पकड़ा गया था। जब इस ठग को लेकर गुजरात मुख्‍यमंत्री कार्यालय के जनसंपर्क अधिकारी हितेश पंड्या के पुत्र अमित का बिज़नेस पार्टनर होने की बात सामने आई उसी समय पांड्या ने अपने पद से इस्‍तीफ़ा दे दिया।

जनसंपर्क अधिकारी हितेश पंड्या लगभग 2 दशक से गुजरात के मुख्‍यमंत्री कार्यालय से जुड़े थे। आरोप है कि वे यहां बैठकर अपने एनजीओ नेशन फ़र्स्ट फ़ाउंडेशन के लिए धन जुटाते थे। और इसी एनजीओ के माध्‍यम से किरण पटेल विविध कार्यक्रमों का आयोजन कर बड़ी हस्तियों से सांठगांठ करता था । ये दोनों सीसीटीवी से जुड़ा व्यापार भी करते हैं। अहमदाबाद पुलिस में किरण पटेल के विरुद्ध एक वरिष्ठ नागरिक का बंगला हड़पने के मामले में प्राथमिकी भी दर्ज है। उसने बंगले का नवीनीकरण कराने के नाम पर एक बुज़ुर्ग से 35 लाख रूपये ऐंठ लिए तथा बाद में ख़ुद ही उस मकान में क़ब्ज़ा जमाकर रहने लगा। क्या ऐसे ठगों को बिना सत्ता संरक्षण के ज़ेड प्लस सेक्युरिटी और तमाम सरकारी व पांच सितारा सुविधायें मिलना संभव हैं ?

इन दिनों संजय राय शेरपुरिया नामकएक सफ़ेद पोश ठग का नाम चर्चा में है। शेरपुरिया पर भारतीय स्टेट बैंक से 350 करोड़ रुपये का गबन करने का आरोप है। ख़बर तो यह भी है कि उसने रेस कोर्स रोड पर घर ले रखा था और उसका वाईफ़ाइ नेटवर्क भी पीएमओ वाला ही था। आश्चर्य है कि शेरपुरिया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर लोगों को लूट रहा था और पीएम को पता तक नहीं चला? कहा तो यह भी जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस ठग से 25 लाख रुपये का क़र्ज़ लिया है। यूपी एसटीएफ ने करोड़ों रुपये की ठगी के एक मामले में ठग संजय राय शेरपुरिया का भंडाफोड़ करते हुए उसे गिरफ़्तार किया है। अब इन रुपयों, और उसके कथित एनजीओ की जांच में केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय भी सक्रिय हो चुकी है। ईडी ने दिल्ली, बनारस, लखनऊ और ग़ाज़ीपुर जैसे चार शहरों में संजय के ठिकानों पर छापेमारी की है। ईडी के छापे मारी में शेरपुरिया की कंपनियों और उसके एनजीओ यूथ रूरल एंटरप्रिन्योर फाउंडेशन से जुड़े दस्तावेज़ बरामद किए गए हैं। ऐसे और भी अनेक उदाहरणों से यह स्पष्ट हो चुका है कि न खाऊंगा न खाने दूंगा का ग़ुब्बारा दरअसल अब फूट चुका है।