निर्मल रानी
बावजूद इसके कि हमारा देश अब विकास और आधुनिकता की राह पर सरपट दौड़ रहा है। उसके बावजूद हमें अपने देश में व्याप्त सदियों पुराने अंधविश्वास से छुटकारा नहीं मिल पा रहा है। एक तरफ़ तो तमाम ठग व निठल्ले लोग अंधविश्वास में जकड़े लोगों से धन ऐंठ कर अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं तो दूसरी ओर पागलपने की हदें पार करता जा रहा यही अंधविश्वास इस कुचक्र में उलझे लोगों की जान का दुश्मन बन चुका है। निश्चित रूप से अशिक्षित लोग इस कुचक्र में कुछ ज़्यादा ही उलझे हुये हैं परन्तु स्वयं को शिक्षित कहने वाले लोग भी अंधविश्वास के कुप्रभाव से सुरक्षित नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर विगत कुछ वर्षों से महिलाओं ने अपने पैरों में काला धागा बांधना शुरू कर दिया है। जिसे देखो वही अपने एक पैर में काला धागा बांधे हुये है। क्या शिक्षित क्या अशिक्षित सभी अपने पैरों में काला धागा बांधकर न जाने क्या हासिल करना चाहते हैं और कौन सी सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं। महिलाओं तक फैला यह अन्धविश्वास अब धीरे धीरे देश के युवाओं को भी अपनी गिरफ़्त में लेता जा रहा है और इस की नक़ल कर युवा भी अपने पैरों में काला धागा बांधना शुरू कर चुके हैं। अंधविश्वास की लहर केवल अशिक्षित,गांव देहात अथवा ग़रीबों तक ही सीमित नहीं है बल्कि लगभग समग्र भारतीय समाज इसका शिकार है। और इसकी जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि इस चक्रव्यूह से बाहर निकल पाना भी अब मुश्किल नज़र आता है।
अपने घरों या व्यावसायिक ठिकानों पर नींबू मिर्च लटकाने से आख़िर किस समस्या का समाधान निकलता है कोई नहीं जानता परन्तु लटकाता ज़रूर है। जब नींबू मिर्च लटके लटके सूख जाती है तो उसे बदल कर नींबू मिर्च का नया ‘सेट’ लटका दिया जाता है। गली मोहल्लों में घूम घूम कर शनि देवता का भय दिखाकर लोगों से पैसे ऐंठने वाले निठल्ले हट्टे कट्टे लोग स्वयं प्रत्येक शनिवार को थोक के भाव से नींबू मिर्च की माला बनाये हुये सेट लेकर गली गली घूमते हैं। वे इसे बेचते नहीं बल्कि स्वयं लोगों के घरों पर लटका देते हैं। और नींबू मिर्च के लटकने में बरकत या सुरक्षा की उम्मीद रखने वाला व्यक्ति अपनी जेब ढीली कर शनि के उस ‘एजेंट’ को अपनी श्रद्धा अनुसार भुगतान कर देता है। और यही इस विश्वास व अंधविश्वास के पीछे छुपा हुआ असली व्यवसायिक खेल है।
अंधविश्वास का यह खेल उस समय और अधिक चिंताजनक हो जाता है जब यह लोगों की जान लेने पर उतारू हो जाये। आये दिन अंधविश्वास में जकड़े लोगों द्वारा अपनी या अपने परिवार के सदस्यों की जान देने, मानव बलि चढ़ाने या दूसरों की बलि लेने जैसे दिल दहलाने जैसी घटनायें अंजाम दी जाती हैं। पिछले दिनों गुजरात के राजकोट ज़िले के वीछिंया तालुका नामक एक गांव में इसी तरह का एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया। कथित तांत्रिक क्रिया करने के बाद एक दंपत्ति ने हवन कुंड में अपने सिर काटकर अपनी ही आहुति दे दी। बताया जा रहा है कि मृतक 38 /35 वर्षीय इस दंपति ने अपने सिर क़लम करने के लिए स्वयं ही एक ऐसा तेज़ धार हथियार तैयार किया था जिससे दोनों के सिर कटकर सीधे हवन कुंड में ही गिरें। हवन कुंड के पास ही एक सुसाइड नोट भी मिला है जिसमें इस दंपत्ति ने स्वेच्छा से अपनी जान देने की बात लिखी है। 50 रुपए के स्टांप पर लिखे गये इस सुसाइड नोट में लिखा है – ‘जय भगवान, जय भोलेनाथ, हम दोनों स्वेच्छा से अपने हाथों से अपने प्राण त्याग रहे हैं। हमारे घर वाले बहुत अच्छे से रह रहे हैं। मेरे भाई भी हम लोगों को बहुत चाहते हैं। आज तक उनकी मेरी पत्नी से कोई ग़लत बात नहीं हुई। वे सभी हमारा बहुत ख़याल रखते हैं। इसलिए उनसे किसी तरह की पूछताछ न की जाए। हम अपनी मर्ज़ी से अपने प्राण त्याग रहे हैं। इसलिए हमारे परिवार के किसी भी सदस्य को परेशान न किया जाए। इस सुसाइड नोट से यह भी ज़ाहिर है कि इस दंपत्ति को किसी तरह की परिवारिक परेशानी या तनाव भी नहीं था। बल्कि यह आत्म हत्याकांड पूरी तरह से केवल अन्धविश्वास से जुड़ा मामला था।
इसी तरह पिछले दिनों झारखण्ड राज्य के नक्सल प्रभावित ज़िले लातेहार के चंदवा थाना क्षेत्र के अंतर्गत हेसला गांव में एक दिल दहलाने वाली घटना सामने आई। यहां ग्रामीणों ने 76 व 72 वर्षीय एक वृद्ध दंपती की लाठी डंडों से पीट-पीटकर हत्या कर दी। ग्रामीण लोग इस वृद्ध दंपत्ति की पुत्रवधू बसंती देवी की भी हत्या करना चाह रहे थे परन्तु वह किसी तरह पास के जंगल में भाग कर छिप गयी और अपनी जान बचाने में सफल रही। घटना के संबंध में बताया जा रहा है कि घटना के दिन पड़ोस के दूसरे गांव का एक पाखंडी ओझा अपने कुछ साथियों के साथ हेसला गांव आया । यहां कुछ ग्रामीणों के साथ उनकी बैठक हुई।बैठक में ग्रामीणों ने ओझा के उकसाने पर इस वृद्ध दंपती पर डायन बिसाही होने का आरोप लगाया दिया और दंपती की पिटाई का फ़रमान सुना दिया। इस वृद्ध दंपति को उसी बैठक में उनके घर से बुलाकर पूछताछ की गई। इस दौरान वहां मौजूद ओझा और अन्य ने उन्हें दंडित करने की बात कही और साथ ही साथ उसी समय पूरी क्रूरता से लाठी-डंडे से उनकी पिटाई की जाने लगी। दो दर्जन से भी अधिक आक्रोशित ग्रामीण वृद्ध दंपत्ति की लाठी-डंडे से लगातार जमकर पिटाई करते रहे । पिटाई से बुरी तरह घायल वृद्ध दंपती लोगों से मदद गुहार लगाते रहे परन्तु निर्दयी ग्रमीणों ने उनकी एक न सुनी। आख़िरकार वे खून से लथपथ हो गये और अचेत हो होकर गिर गए। अफ़सोस यह कि उनके अचेतावस्था में गिरने के बाद भी लाठी डंडों से उनकी पिटाई का सिलसिला जारी रहा और आख़िरकार उनकी मौत हो गयी। ख़बर तो यह भी है कि ओझा ने बैठक के बाद लाठी-डंडो से पिटाई करने के साथ साथ उनके शरीर से सिर को अलग करने के लिए तेज़ धार हथियार भी मंगाया था। देश के किसी न किसी कोने में आय दिन होने वाली इसतरह की घटनायें हमें यह सोचने के लिये मजबूर करती हैं कि विकास और आधुनिकता की राह पर चलने का दावा करने वाला हमारा देश अभी भी जान लेवा अंधविश्वास में बुरी तरह जकड़ा हुआ है।