- भाजपा वसुन्धरा राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा और कांग्रेस सचिन पायलट को कोई बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है
- गहलोत के कमर कसने से भाजपा में दहशत
गोपेंद्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली : भारत के सबसे बड़े भू-भाग वाले प्रदेश राजस्थान मेंइस वर्ष नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों प्रमुख दल अंतर्कलहों से जूझ रहें हैंफिर भी सत्ता पर क़ाबिज़ होने के लिए अपना-अपना गेम प्लानभी बना रहे है।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार कर्नाटका में मिली करारी हारके बाद अपनी नई रणनीति के अनुसार भाजपा राजस्थान मेंवसुन्धरा राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाना और कांग्रेस सचिनपायलट को कोई बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है।
प्रदेश में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में सत्ताधारी कांग्रेस इस बार अपनी सरकार को रीपिट करने में कोई कसर बाकी नहीरख रही है । कांग्रेस अपने चुनाव जन घोषणा पत्र और बजटघोषणाओं को ज़मीन पर उतारने के लिए युद्ध स्तर पर जुटी हुईहै। विशेष कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दिन रात महंगाई राहतशिविरों को सफल बनाने में जुटे हुए है।पूरा प्रदेश गहलोत केफ़ोटोज़ और उनकी योजनाओं की जानकारियों से अटा पड़ा है।मीडिया में भी बड़े-बड़े विज्ञापन सभी का ध्यान आकर्षित कर रहेंहैं।मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना के अन्तर्गत 25 लाख काबीमा और केश लेस ईलाज तथा 10 लाख रु. की दुर्घटना बीमायोजना एवं 100 यूनिट बिजली निःशुल्क योजना तथा पाँच सौरु. में घरेलू गैस सिलेण्डर एवं सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानीपेन्शन योजना जैसी कई योजनाओं की लोकप्रियता और उनकाप्रचार-प्रसार अब तक के सभी रिकार्ड्स को तोड़ रहा है।
हालाँकि कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी गहलोत और सचिनगुटों की लड़ाई से होने वाले नुक़सान की बताई जा रही है।साढ़ेचार वर्ष पहले कांग्रेस सरकार के गठन के साथ ही दोनों गुटों केमध्य चल रही तनातनी अभी भी रुकने का नाम नही ले रही है।हाल ही राहुल गाँधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की मध्यस्थता सेदोनों गुटों में सुलह की खबरें पार्टी को थोड़ी बहुत राहत देने वालीहै,लेकिन यह सुलह कितनी सार्थक रहेंगी यह तों आने वालासमय ही बतायेगा।
इसी तरह प्रदेश में प्रतिपक्ष की भूमिका अदा कर रही भाजपा केसामने इस बार के विधान सभा चुनाव में पार्टी का कोई घोषितबड़ा क्षेत्रीय चेहरा नही होना सबसे बड़ी समस्या है।गुलाब चन्दकटारिया को असम का राज्यपाल बनाने के बाद मेवाड़ तथाआदिवासी बहुल वागड़ इलाक़ों में भारी शून्यता पैदा होना भाजपाको भारी पड़ सकता है । कर्नाटका में बीजेपी की हार के बादपार्टी का शीर्ष नेतृत्व अब अपनी चुनाव रणनीति को बदलने परविचार कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल ही अजमेर मेंहुई जनसभा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को दिए गए महत्व सेलगता है कि राजे को प्रदेश में फिर से मुख्यमंत्री का अघोषितचेहरा बनाया जा सकता है। राजनीतिक पण्डितों का मानना हैकिवसुन्धरा राजे के बिना प्रदेश में भाजपा का चुनाव जीतनाअसम्भव नही तो मुश्किल अवश्य है।
भाजपा इस बार किसी प्रकार के मुग़ालते में नही रहना चाहती हैकि राजस्थान में पिछले तीन दशकों से चली आ रही परिपाटी केअनुसार प्रदेश में हर पाँच वर्ष में सत्ता का परिवर्तन हो जायेगालेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस बार चुनाव जीतने केलिए जिस प्रकार कमर कस रखी है इससे भाजपा में दहशत फैलीहुई है। हालाँकि भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी औरप्रतिपक्ष के नेता राजेन्द्र राठौड़ तथा पार्टी के अन्य क्षेत्रीय एवंराष्ट्रीय नेता भी बिना कोई विश्राम किए पूरे प्रदेश का व्यापकदौरा कर मोदी सरकार की नौ वर्षीय उपलब्धियों का बखान कररहें हैं लेकिन वसुन्धरा राजे जैसी लोकप्रियता और भीड़ जुटाने कीक्षमता प्रदेश के किसी नेता में नही दिखाई दे रही है । इसे देखतेहुए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के पास वसुन्धरा राजे को आगे लानेके अलावा अन्य कोई विकल्प नही है। वैसे संघनिष्ठ नेताओं कामानना है कि राजस्थान में इस बार भाजपा की जीत होंगी औरउनकी पसन्द के नेता को ही मुख्यमंत्री बनाया जायेगा। पार्टी काएक वर्ग ओबीसी वर्ग के मुख्यमंत्री की सम्भावनाओं को भी देखरहा है क्योंकि इस वर्ग के मतदाताओं की संख्या अन्य जातियों केमुक़ाबले सबसे अधिक है । राजनीतिक सूत्र यह बात भी बता रहेहै कि भाजपा की टोप लीडर शीप कांग्रेस के बग़ावती लीडर कोअपने पाले में लाकर कांग्रेस की जीती हुई बाजी को पलटने कीयोजना भी बना रहा है। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार इस युवा नेताको पहले उप मुख्यमंत्री और कालान्तर में मुख्यमंत्री बनाने कीपेशकश की जा रही है।इधर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी केसुप्रीमो और सांसद हनुमान बेनीवाल तीसरा मोर्चा बनाने केजुगाड़ में है । यदि वे जाट,मीणा और गुर्जर कोमबिनेशन बनाने मेंसफल हो जाते है तों कांग्रेस एवं भाजपा के लिए नई मुसीबत पैदाकर सकते है। इधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवालपंजाब में आप पार्टी की सरकार बनाने और गुजरात में तैरहप्रतिशत वोट लेने के बाद नए आत्म विश्वास के साथ राजस्थानके चुनाव समर में उतरना चाहते है। इस प्रकार लगता है राजस्थानविधान सभा के चुनाव पहले की तुलना में इस बार बहुत अधिक दिलचस्प रहने वाले है।