ललित गर्ग
कुछ शक्तियां देश के आजादी के अमृतकाल को अमृतमय बनाने में जुटी है, वहीं कुछ संकीर्ण, साम्प्रदायिक, उन्मादी एवं अलगाववादी शक्तियां देश को तोड़ने एवं धुंधलाने में लगी है। वोटबैंक के नाम पर लोगों को अलग-अलग खेमों में बांटने, तुष्टिकरण एवं उन्मादी काली शक्तियों को प्रोत्साहन देने एवं ज्वाला बनाने का काम देश के लिये घातक एवं नुकसानदेह है। वोटबैंक की राजनीति सभी देशों में होती है, पर ऐसा करते हुए भी मर्यादा एवं देश की एकता का ध्यान भी रखा जाता है। कानून का राज कायम रखने और विश्व शांति के खतरों को कमतर करने के लिए ऐसा करना जरूरी है। जिन देशों में इसका ध्यान नहीं रखा जाता, वहां जल्दी ही लोकतंत्र भीड़तंत्र में बदल जाता है, टूट एवं बिखर कर रसातल में चला जाता है। धार्मिक कट्टरपंथियों एवं उन्माद के आगे नतमस्तक रहे पाकिस्तान को देखकर इस समस्या की गंभीरता को समझा जा सकता है। कनाडा में पिछले कुछ समय से और खासकर जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में, वहां बसे सिखों को साधने के लिए जिस तरह खालिस्तान समर्थकों को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह भारत के लिए निश्चित रूप से चिंता की बड़ी वजह है, लेकिन यह कनाड़ा के लोकतंत्र के लिये भी बड़ा खतरा बनने का संकेत हैं।
कनाडा में बेलगाम होते खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियां किसी से छिपी नहीं, लेकिन अब उनका दुस्साहस इतना अधिक बढ़ गया है कि वे भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का खुलेआम जश्न भी मनाने लगे हैं। कनाडा के ब्रैंपटन शहर में खालिस्तान समर्थकों ने जिस तरह एक परेड निकाली और उसमें इंदिरा गांधी की हत्या करते हुए दिखाया गया, इसमें दो सिखों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह को गोली मारते दिखाया गया। वह बेहद त्रासद, शर्मनाक और घिनौना है। यह परेड करीब पांच किमी तक निकाली गई। स्पष्ट है कि कनाडा की पुलिस आतंक का महिमामंडन करने वाली इस घिनौनी परेड को चुपचाप देखती रही। आतंकवाद का ऐसा खुला, लज्जाजनक और नग्न समर्थन कनाडा के साथ सभ्य समाज को शर्मसार करने वाला है। निश्चित ही इससे दुनिया में पनप रहे आतंकवाद को बल मिलेगा। यह आज सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय प्रश्न है।
भारत में भी कनाड़ा की ही भांति वोट बैंक ही पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद एवं जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवाद पनपने का बड़ा कारण बना था। इस घटना के सामने आने के बाद भारत सरकार की तीखी प्रतिक्रिया जायज है। ऐसी घटनाओं के कारण दोनों देशों के संबंधों पर असर पड़ सकता है। कांग्रेस नेताओं ने भी घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। यह एक ऐसी घटना है जिसमें बगैर किसी राजनीति के पक्ष व विपक्ष दोनों के सुर का एक होना जरूरी है। ऐसा ही दिखा भी, दिखना भी चाहिए। पंजाब में खालिस्तानी स्वर उग्र हो रहे हैं, इसको उग्रता देने में कनाड़ा आदि देशों में रह रहे खालिस्तान समर्थक सिखों से मिल रही आर्थिक मदद एवं अन्य प्रोत्साहन बड़े कारण है। अब एक बार फिर खालिस्तान समर्थक तत्व देश के अंदर और बाहर सक्रिय हो रहे हैं। कनाडा उनके लिए एक बड़ा केंद्र एवं आश्रय-स्थल बनकर उभरा है। और यह वहां अपनी तरह का कोई पहला मामला नहीं है। पिछले साल भी वहां से एक अलग देश खालिस्तान बनाए जाने के सवाल पर जनमत संग्रह करवाए जाने की खबर आई थी। खालिस्तान समर्थक कभी भारतीय उच्चायोग को घेरते हैं कभी भारतीयों पर हमले करते हैं और कभी मंदिरों को निशाना बनाते हैं।
कनाडा सरकार हर बार इन खालिस्तानी चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कहकर चुप्पी साध लेती है। सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे ताजा विडियो को हालांकि सबसे पहले कांग्रेस नेताओं ने मुद्दा बनाया, लेकिन फिर सरकार भी इस पर जागरूक हुई है। ऐसी घटनाएं न तो भारत-कनाडा रिश्ते के लिए अच्छी हैं और न कनाडा के लिए। बहरहाल, इससे यह साफ हो जाता है कि कनाडा में हिंसा की वकालत करने वाले अतिवादी और अलगाववादी तत्वों पर कोई अंकुश नहीं रह गया है। भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरन मैके ने हालांकि इस घटना की निंदा की और कहा कि उनके देश में नफरत, द्वेष और हिंसा के महिमामंडन के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन ऐसे औपचारिक बयान जारी कर देना काफी नहीं है। उनका बयान लीपापोती के अलावा और कुछ नहीं, क्योंकि सच यही है कि कनाडा में खालिस्तान समर्थकों की कट्टरता और नफरत को पालने-पोसने का काम बड़ी ही बेशर्मी से किया जा रहा है, वहां की सरकार खालिस्तान समर्थकों को बढ़ावा देने में लगी हुई है। इसी के चलते उनका दुस्साहस बढ़ता चला जा रहा है। वैसे तो उग्रपंथी खालिस्तान समर्थक दुनिया के कई देशों में सक्रिय हैं, लेकिन वे जितने कनाडा में बेलगाम हैं, उतने अन्यत्र कहीं नहीं। कनाडा को समझना होगा कि आतंकवाद, अलगाववाद, नफरत और हिंसा की आग सबसे पहले उन देशों को जलाती है जो इसे हवा देते हैं। ऐसे देशों की दुर्गति के उदाहरण सबके सामने हैं। उन देशों के अनुभव से समय रहते सबक लेना चाहिए।
कनाड़ा में खालिस्तान समर्थन का बड़ा कारण यह है कि कनाडा की वर्तमान सरकार उस राजनीतिक दल के समर्थन के भरोसे सत्ता में है, जिसमें खालिस्तान समर्थक भरे पड़े हैं। कनाडा की सरकार संकीर्ण राजनीतिक कारणों से खालिस्तान समर्थकों की भारत-विरोधी अराजक, घृणित और नफरत फैलाने वाली हरकतों की जानबूझकर अनदेखी कर रही है। यह अच्छा हुआ कि विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने बिना किसी लाग लपेट कहा कि कनाडा की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए हो रहा है और वहां खालिस्तान समर्थकों को मिल रहे समर्थन से दोनों देशों के संबंध खराब हो सकते हैं। चूंकि इसके आसार कम हैं कि भारत सरकार की आपत्ति के बाद कनाडा सरकार खालिस्तान समर्थक अराजक तत्वों को समर्थन देने से बाज आएगी, इसलिए यह आवश्यक है कि उस पर कूटनीतिक दबाव बढ़ाया जाए।
भारत के लिये जरूरी है कि यहां सभी राजनीतिक दल इन अति-संवेदनशील एवं देश तोड़क मुद्दों पर एकमत हो। राजनीति के पोषण के बिना खालिस्तानी आतंक उग्र नहीं हो सकता, उनको भड़काकर राजनीति करने वाले दलों से सावधान होने की जरूरत है। खालिस्तान समर्थक अपनी आतंकवादी गतिविधियों एवं हरकतों से देश की एकता एवं अखण्डता को खंडित करना चाहते हैं, ये तत्व अपनी इस तरह की हरकतों के जरिए उस आतंकवाद की ओर से ध्यान हटाने की कोशिश करते हैं, जिसकी वजह से ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसे कदम उठाने पड़े और जिसके चंगुल में पंजाब आगे भी कई साल तक फंसा रहा, त्रासदी झेलता रहा, डरा एवं सहमा रहा। न जाने कितने परिवार इस चक्कर में बर्बाद हो गए, कितने लोगों को जान देनी पड़ी। अनगिनत कुर्बानियों के बाद पंजाब जैसे-तैसे उस मुश्किल दौर से निकला और पहले की तरह अपने पराक्रम से विकास की नई कहानियां लिखने लगा। लेकिन अब पुनः पंजाब को उसी खूनी मंजर एवं खौफनाक दौर की ओर अग्रसर करना आजादी के अमृतकाल को धुंधला देगा। जरूरत है तुष्टिकरण हटे, संकीर्ण दायरों से बाहर आये एवं उन्माद भी हटे। अगर भारत माता के शरीर पर इतना बड़ा घाव करके हम कुछ नहीं सीख पाये, आस्था को उन्माद बनाने से नहीं रोका, वोट के लिये धर्म की राजनीति करना नहीं छोड़ा और सर्वधर्म समभाव की भावना को पुनः प्रतिष्ठापित नहीं किया तो यह हम सबका का दुर्भाग्य होगा।