गोपेंद्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली : गुजरात और अन्य प्रदेशों के समुद्रीय तटों से टकरा रहा ज़बर्दस्त बिपरजायँ चक्रवात का भयंकर तूफ़ान देश प्रदेश से हालाँकि एक दो दिनों में गुजर कर शान्त हो जायेगा लेकिन देश और राजस्थान के राजनीतिक समर का बिपरजायँ इतनी जल्दी शान्त नही होने वाला है बल्कि इस वर्ष के अंत में होने वाले चारराज्य विधान सभा चुनावों और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव तक इसकी गति के निरन्तर बढ़ने कीअवश्यम्भावी सम्भावनाएँ दिखाई दे रही है।
हालाँकि इस राजनीतिक तूफ़ान में न जाने कितने वटवृक्ष गिरेंगे और कितने छोटे-बड़े नेता और राजनीतिक दलधराशायी होंगे यह देखना अभी भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है लेकिन ज्यों-ज्यों चुनाव नज़दीक आ रहें है यह राजनीतिक तूफ़ान लगातार बढ़ता जा रहा हैं और इसकी तीव्रता और अधिक बढ़ती ही जायेंगी ऐसा लगता है ।
हाल ही दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में यह अफ़वाहें तैरने लगी है कि मोदी सरकार द्वारा लोकसभा के आमचुनाव समय से पूर्व इस साल के अन्त में होने वाले विधान सभा चुनावों के साथ ही करायें जा सकते है। बतायाजारहा है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और आरएसएस हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटका में भी पार्टी को मिलीकरारी हार के कारण इस बारे में विचार कर रहा है। हालाँकि एक पक्ष ऐसा भी है जो अटल बिहारी वाजपेयी के समय प्रमोद महाजन के शाइनिंग इण्डिया के नारे के हश्र को देखते हुए इसके पक्ष में नही है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पिछलें लोकसभा चुनाव में वैसे भी भाजपा विभिन्न प्रदेशों में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुकी हैं। कई प्रदेशों में तों लोकसभा की सभी सीटों पर उसे विजय मिली थी लेकिन2024 के लोकसभा चुनावों में इस प्रदर्शन को पुनः दोहराना पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती बताई जा रही है ।वर्तमान हालातों में सम्भावना इस बात की अधिक है कि लोकसभा के चुनावों में भाजपा सांसदों की मौजूदासंख्या पहलें के मुक़ाबलें कम हों जाएँ ।राजनीतिक पण्डितों का मानना है कि यदि पीएम नरेन्द्र मोदी भी इन्दिरागाँधी द्वारा बांग्ला देश बनाने जैसे कारनामें की तर्ज पर आम चुनाव से पूर्व पाक अधिकृत कश्मीर को कब्ज़ानेजैसे बड़े मुद्दे को हकीकत में बदल कर देश में राष्ट्रीयता की भावना फैला दें तों भाजपा के पक्ष में फिर से फ़िज़ाबन सकती है और भाजपा पहलें से भी अधिक बहुमत से सत्ता में आ सकती है।
इधर कांग्रेस सहित अन्य प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की केन्द्र में लगातार तीसरी विजय यात्रा को रोकने के लिएएक मंच पर एकत्रित होकर वोटों का ध्रुवीकरण करने की रणनीति बनाने में जुटे हुए है, लेकिन राजनीतिकपण्डित बताते है कि यह काम इतना भी आसान नही है। वैसे भी देश 1977 से पिछलें दशकों में कई गैर कांग्रेसीप्रधान मंत्री और विपक्षी एकता की जमीनी हकीकत देख चुका है।अटल बिहारी वाजपेयी के बाद नरेन्द्र मोदी हीऐसे प्रधानमंत्री है जो लगातार दूसरी बार भाजपा को केन्द्र की सत्ता में लाने में कामयाब रहें है और वे अपनीतीसरी जीत को भी दस्तक दें रहें है लेकिन कर्नाटका में महँगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर मिलीहार ने पार्टी और आरएसएस दोनों को हिला कर रख दिया है । इसी कारण उन्होंने अपनी भावी रणनीति के बारेमें पुनर्विचार शुरू कर दिया है। उन्हें क्षेत्रीय नेताओं को नजरअन्दाज़ कर सभी जगह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कीसांख को दाँव पर लगाना अब उचित नही लग रहा। इसी वजह से भाजपा और आरएसएस दोनों का ध्यान इनदिनों विधान सभा चुनावों में विजय पाने से ज़्यादा लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर अधिक लगा हुआ है तथासंघ और पार्टी चुनाव जीतने की रणनीति को बदलने पर गंभीर मन्थन कर रहें हैं। इसी कड़ी में भाजपा ने अबतक किनारे किए हुए अपने भूलें बिसरें नेताओं को चुनाव अभियान में झोंक दिया है। भाजपा द्वारा अपनेजनाधार वाले खाँटी नेताओं को पुनः पार्टी की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए इन दिनों की जा रही कसरत इसी बात को दर्शा रहीं है । इसका सबसे बड़ा उदाहरण राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिन्धिया हैं जिन्हेंझारखण्ड में मोदी सरकार की उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करने और इस प्रदेश के मतदाताओं को फिर सेबीजेपी की ओर मोड़ने की जिम्मेदारी दी गई है। पार्टी के ऐसे ही अन्य नेताओं को भी इसी प्रकार के काम मेंलगाया गया हैं। वसुन्धरा राजे पूरी शिद्दत के साथ इस इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने के काम में जुट गई है।हालाँकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि वर्तमान हालातों में राजस्थान विधान सभा का क़िला जीतने केलिए वसुन्धरा राजे को राजस्थान में पार्टी की मुख्य धारा में सक्रिय करना अधिक जरुरी है। हाल ही वसुन्धराराजे की अनुपस्थिति में जयपुर में शासन सचिवालय के महाघेराव कार्यक्रम में अपेक्षा के अनुरूप भीड़ नहीजुटना इसे साबित करता है । राजनीतिक पण्डित राजस्थान भाजपा में वसुन्धरा राजे की लोकप्रियता और भीड़जुटाने की क्षमता को सबसे अधिक अधिक होने को कोई अतिशयोक्तिपूर्ण बात नही मानते है।
राजस्थान में इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार को रीपिट कराने और चौथी बार मुख्यमंत्रीबनने के प्रयासों में कोई कसर बाकी नही छोड़ रहें है। उन्होंने प्रदेश में लोकप्रिय योजनाओं और घोषणाओं काअम्बार लगा दिया है तथा उन्हें अमली जामा पहनाने में कोई कसर बाकी नही रख रहें है लेकिन सचिन पायलटगुट के साथ उनकी अदावत इस बार भी पार्टी को शत प्रतिशत जीत दिलाने के मार्ग में बड़ी बाधा बनी हुई है।इसी प्रकार भाजपा भी अंतर्कलह और गुटबाज़ी से अछूती नही हैं और प्रदेश में पार्टी द्वारा सीएम का चेहरासामने नही लाना भी भाजपा के राजस्थान के रण में विजय होने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ बताया जा रहा है।