गोपेंद्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली : इस वर्ष के अंत में होने वाले राजस्थान विधान सभा के चुनाव को देखते हुए सभी राजनीतिक दलोंने चुनावी रण के लिए अपनी अपनी तैयारियां और कमर कसना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जुलाईके पहले सप्ताह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर में आने वाले है और उसके पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का उदयपुर तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा का कोटा दौरा भी तय हुआ है। दिल्लीऔर पंजाब की तरह राजस्थान में भी
सत्ता पाने की उम्मीद में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवन्त मान के साथही हरियाणा के अजय चौटाला की पार्टी जन नायक जनता पार्टी और अन्य छोटे बड़े दल भी राजस्थान की ओररुख कर रहे है।
राजस्थान विधानसभा चुनाव में अब बमुश्किल छह महीनों का समय ही बचा है, ऐसे में अब तक चुनाव कीतैयारियों के मामले में प्रदेश में प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रही भारतीय जनता पार्टी को भी पीछे छोड़ते हुएसत्ताधारी कांग्रेस सबसे आगे चल रही थी लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिनपायलट गुटों के आपसी संघर्ष ने कांग्रेस की चीते की चाल को थोड़ा मंद कर दिया और अब सोनिया, राहुल एवंप्रियंका गाँधी परिवार के विदेश से लौटने के बाद कांग्रेस की आगे की रणनीति लेकर खुलासा होगा लेकिन इसबीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश में चलाए जा रहे अपने महंगाई राहत शिविरों के माध्यम से राज्य केअधिकांश जिलों का दौरा कर सघन जन संपर्क अभियान चला रहे है । गहलोत इन शिविरों में अब तक सातकरोड़ से अधिक गारंटी कार्ड वितरित कर चुके है। इन गारंटी कार्ड्स में गहलोत की दस प्रमुख लोकप्रिययोजनाओं को शामिल किया गया है । इन योजनाओं में मुख्यमंत्री चिरंजीव स्वास्थ्य योजना के तहत पच्चीसलाख रु तक का बीमा और केश लेस ईलाज, दस लाख रु तक का दुर्घटना बीमा, पांच सौ रू में गैस सिलेंडर, 100 यूनिट तक घरेलू बिजली और 2000 यूनिट तक निः शुल्क कृषि बिजली ,मुफ्त राशन किट्स सहित ऐसीही अन्य योजनाएं शामिल है । जनता में इन गारंटी कार्ड्स की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस बार प्रदेश में अपनी बजट और अन्य घोषणाओं का अंबार लगा दिया है औरसमाज के प्रत्येक वर्ग और क्षेत्र की मांग पर हर रोज एक नई योजना की घोषणा कर रहें है। गहलोत अपनेभाषणों में लगातार कह रहे है कि उनकी राज्य कर्मचारियों के लिए लागू की गई पुरानी पेंशन योजना(ओपीएस) और अन्य योजनाओं की सारे देश में गूंज हो रही है तथा हिमाचल प्रदेश एवं कर्नाटक के चुनावों मेंकांग्रेस की जीत में इन योजनाओं का असर काम आया है। ओपीएस की मांग अब पूरे देश में हो रही है औरमोदी सरकार को भी इस मांग के आगे झुक कर एक समिति का गठन करना पड़ा है। वे कहते है कि राइट टूहेल्थ और शहरी मनेरगा आदि योजनाओं को लागू करने में राजस्थान देश का अग्रणी प्रदेश है। गहलोत इनदिनों भारत सरकार से अमरीका एवं यूरोप जैसे देशों की तर्ज पर आम अवाम को सोशल सिक्योरिटी काअधिकार देने की पैरवी भी कर रहे हैं। साथ ही पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों की पेयजल और सिंचाई कीमहत्वाकांक्षी परियोजना ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने सहित प्रदेश की अन्य कईपरियोजनाओं को लागू करने में केन्द्र सरकार द्वारा किए जा रहें कथित भेदभाव पर भी बहुत हमलावर हो रहे है।वे राजनीतिक हमले करने में भी पीछे नहीं है । सीबीआई,ईडी, इनकम टेक्स आदि केन्द्रीय ऐजेंसियों का कथितदुरुपयोग आदि का ज़िक्र करने से नही चूक रहें। उनके निशाने पर केन्द्र में राजस्थान के मंत्री भी है । विशेष करउनके गृह जिले से ताल्लुक रखने वाले एक मंत्री के संजीविनी सोसाइटी में कथित संलिप्तता पर भी रोज आरोपप्रत्यारोप सामने आ रहे हैं। राजनीति का जादूगर माने जाने वाले अशोक गहलोत इस बार प्रदेश में अपनीसरकार रिपीट करने के लिए पूरी तरह कमर कस कर प्रतिदिन बिना किसी विश्राम के ताबड़ तोड़ दौरे कर औरजन संपर्क में जुट कर मतदाताओं को लुभाने का हर संभव प्रयास कर रहे है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदि हाई कमान के हस्तक्षेप से सचिन पायलट का मामला समय रहतेसुलट जाता है और दोनों गुट फिर से एक साथ मिल कर चुनाव मैदान में उतरते हैं तो कोई संदेह नहीं कि इसबार गहलोत अपनी सरकार रिपीट भी कर सकते है और अपने विरोधियों द्वारा पुनः सरकार नहीं बनवाने केआरोप एवं रिकार्ड को इस बार तोड़ सकते है। हालाकि उनके समक्ष सचिन पायलट की बगावत के समयसंकट की घड़ी में उन्हें समर्थन देने वाले निर्दलीय और बीएसपी से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को कांग्रेसका टिकट दिलाने और पार्टी के बागियों से निबटने की चुनौती भी रहेगी।
इधर भारतीय जनता पार्टी ने भी चित्तौड़गढ़ के सांसद सी पी जोशी को जाट नेता डा सतीश पूनिया के स्थान परप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाने के बाद अपनी चुनावी तैयारियों को और अधिक तेजी से परवान पर चढ़ाया है।सीपी जोशी स्वयं प्रदेश पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद लगातार राज्य का सघन दौरे कर पुराने भाजपाइयों औरसभी गुटों को एक मंच पर लाने के प्रयासों में जुट हुए हैं। साथ ही जोशी के आने के बाद प्रदेश में पार्टी कीगुटबाजी पर भी अंकुश लगा है। विशेष कर पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे कापुनः पार्टी की मुख्य धारा से जुड़ना भाजपा के लिए एक शुभ संकेत माना जा रहा हैं। राजनीतिक पंडितों काकहना है कि वसुंधरा राजे को बड़ी जिम्मेदारी देकर पार्टी प्रदेश में अब तक हुए नुकसान की पूर्ति कर सकती हैक्योंकि प्रदेश में भैरों सिंह शेखावत के बाद वे ही एक मात्र ऐसी नेता है जिनकी पहचान पूरे प्रदेश के गांव-गांवऔर ढाणी-ढाणी तक है । महिलाओं में उनकी लोकप्रियता का कोई तोड़ नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कीतरह भीड़ जुटाने की भी उनमें अदभुत क्षमता है। साथ ही आज के हालातों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कीबढ़ती लोकप्रियता का मुकाबला करना भी राजे की ही बूते की बात बताई जाती है।
देश और प्रान्त की राजनीति में अब तक लगभग हाशिए पर रही वसुंधरा राजे का इन दिनों भाजपा के शीर्षनेतृत्व के साथ मुलाकातों, पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रदेश में हुई सभी सभाओं में मंचासीन रहनाऔर अन्य प्रदेशों की जिम्मेदारी वहन करना आदि सक्रियता प्रदेश भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी नया जोश भररही है। भाजपा के राजस्थान में सत्ता में वापसी का सारा दारोमदार इस बात पर बताया जा रहा है कि आने वालेचुनाव में राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे की भूमिका क्या रहने वाली है और भाजपा का शीर्ष नेतृत्वउनकी क्षमताओं का उपयोग किस प्रकार से करता है।
भाजपा के सामने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की लोकप्रिय योजनाओं की काट खोजने के अलावा पूर्वीराजस्थान की 96 सीटों में पिछली बार चुनाव में हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति के साथ ही दक्षिणी राजस्थान मेंमेवाड़ और आदिवासी बहुल वागड़ की कुल 48 सीटों पर अपने कद्दावर नेता गुलाब चंद कटारिया के असम काराज्यपाल बनने से पैदा हुई शून्यता को भरने तथा पश्चिम राजस्थान सहित प्रदेश के जाट बाहुल्य इलाकों मेंअपने ही पूर्ववर्ती नेता सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी की चुनौतियों से भी निपटना होगा।
राजस्थान के इस चुनावी रण पर इस बार भी पूरे देश की नजर रहेगी क्योंकि देश में भू भाग की दृष्टि से सबसेबड़े रेगिस्तान प्रधान इस प्रदेश के विविध रंगों की झलक आने वाले चुनाव में झलके बिना नहीं रहेंगी।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके चाणक्य अमित शाह के अपने पड़ोसी प्रदेश मरू भूमि राजस्थान में बढ़ते दौरेऔर चुनावी व्यूह रचना राजस्थान में चुनावी घमासान को और अधिक बढ़ाते हुए दिखाई दे रही है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि राजस्थान में राजनीति के जादूगर माने जाने वाले अशोक गहलोत के तिलस्म कोतोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके चाणक्य अमित शाह इस बार मरू भूमि पर किस प्रकार कीचुनावी चौसर बिछायेगे ?